हदबंदी नही हो पाने से सिकुड़ रहे जम्मू के वेटलैंड
अंतरराष्ट्रीय वेटलैंड दिवस पर जहां देश दुनियां में वेटलैंड स्थलों को बचाने व यहां पर आने वाले पक्षियों को बेहतरीन वातावरण दिलाने की बातें होती हैं और इस दिशा में कदम भी उठाए जाते हैं।
जम्मू, जागरण संवाददाता। अंतरराष्ट्रीय वेटलैंड दिवस पर जहां देश दुनियां में वेटलैंड स्थलों को बचाने व यहां पर आने वाले पक्षियों को बेहतरीन वातावरण दिलाने की बातें होती हैं और इस दिशा में कदम भी उठाए जाते हैं। मगर वहीं जम्मू के वेटलैंड क्षेत्रों के मंदे हाल हैं। वेटलैंड रिजर्व की घोषणा के साढ़े तीन दशक गुजर जाने के बाद भी इन वेटलैंडों की हदबंदी नही हो पाई है। ऐसे में वेटलैंड सिकुड़ते ही जा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित घराना के अलावा परगवाल, कुकरेयाल वेटलैंड का भी यही हाल है। अनदेखी के कारण नंगा वेटलैंड तो पहले ही मिट चुका है और अब वहां पर वेटलैंड का स्थल नजर नही आता। अगर यही हाल रहा तो घराना, परगवाल, कुकरेआल वेटलैंडों के अस्तित्व को भी बचाना मुश्किल पड़ जाएगा।
प्रसिद्ध घराना वेटलैंड जोकि सरकारी कागजों में 0.75 वर्ग किलोमीटर है, वास्तव में महज 200 वर्ग मीटर के तालाब के रूप में ही बचा है। इस को भी बचाना मुश्किल सा पड़ा हुआ है क्योंकि इसकी भी तारबंदी नही हो पाई है। हालांकि कोर्ट के दिशा निर्देश के बाद यहां पर निशानदेही तो की गई थी मगर उसके बाद काम आगे नही बढ़ पाया। यहीं वेटलैंड जम्मू में ऐसा है जोकि प्रवासी पक्षियाें के लिए जाना जाता है। प्रवासी पक्षी निक्की और बड़ी तवी नदी के किनारे कुकरेयाल वेटलैंड पर भी अपना बसेरा बनाते हैं मगर यहां भी वेटलैंड क्षेत्र की निशानदेही नही है और न ही तारबंदी की गई है। वहीं जम्मू के अखनूर सेक्टर में लगभग 49 वर्ग किलोमीटर में फैला सबसे बड़ा परगवाल वेटलैंड भी धीरे धीरे अपनी अहमियत खोने लगा है। वेटलैंड का क्षेत्र कहां से कहां तक फैला है, का जानकारी स्थानीय क्षेत्र के रहने वाले लोगों को भी नही है। हालांकि वेटलैंडों का बेहतरीन प्रबंधन के लिए वन्यजीव संरक्षण विभाग ने पिछले समय में यहां पर प्रतिष्ठित एजेंसियाें से सर्वेक्षण भी कराया था मगर उसके बाद भरी तारबंदी करने का कदम वन्यजीव संरक्षण विभाग आज तक नही उठा पाई है।
क्या कहते हैं पर्यावरणविद्
पर्यावरणविद् बृजमोहन गुलाटी ने कहा कि यह वेटलैंड अगर सुरक्षित रहेंगे तो पर्यटकों का रुझान भी इस तरफ बढ़ेगा। जैसे घराना में प्रवासी पक्षी बढ़चढ़ कर आते हैं, इन्ही पक्षियों के कारण ही यहां पर पर्यटक भी आते हैं। स्थानीय लोगों का रोजगार बढ़ता है। इसलिए वेटलैंड को सुरक्षित करना जरूरी है। पेड़ परिचर्चा के सक्रिय सदस्य स. मंजीत सिंह का कहना है कि वेटलैंड की महत्तता हमें समझनी होगी। इसका संबंध पर्यावरण से है। वेटलैंड रहेंगे तो पर्यावरण बना रहेगा। डा. दुष्यंत का कहना है कि वेटलैंड पर आने वाले प्रवासी पक्षी हमारे मेहमान हैं, इनकी रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी है।
वेटलैंड को संरक्षित करने में विभाग गंभीर
वन्यजीव संरक्षण विभाग के क्षेत्रिय वार्डन ताहिर शाल का कहना है कि वेटलैंड क्षेत्रों को सुरक्षित करने में विभाग जुटा हुआ है। घराना वेटलैंड में भी वेटलैंड संरक्षण का काम आगे बढ़ाया गया है। हालांकि भूमि को लेकर वहां पर स्थानीय लोगों की अड़चनें है। लेकिन लोगों से समय समय पर बात की जा रही हैं। बहरहाल घराना वेटलैंड पर आने वाले प्रवासी पक्षियों को बेहतरीन वातावरण उपलब्ध कराया गया है। वहीं आने वाले पर्यटकों के बैठने के लिए भी सुविधाएं जुटाई गई हैं।
आखिर क्यों जरूरी हैं यह वेटलैंड
-वेटलैंड यानी नम भूमि जिसके कारण आसपास के क्षेत्र में हरियाली बनी रहती है।
-वेटलैंड की नम भूमि के कारण ही प्रवासी पक्षी आते हैं और यहां नर बीट के जरिए पूरे क्षेत्र के खेतों में खाद उपलब्ध कराते हैं।
-वेटलैंड की भूमि नम होने के कारण जमीन व मिट्टी में कई किस्म के कीट उत्पन्न हो जाते हैं, प्रवासी पक्षी इनको खाकर क्षेत्र की सफाई करते हैं व पर्यावरण शुद्ध होता है।
-वेटलैंड तो लोगों की कमाई का जरिया बन सकता है। वर्डस वाचिंग का बड़ा क्षेत्र बन सकता है और क्षेत्र में रहने वाले लोगों का काम धंधा भी चलने लगता है।
-कुछ प्रदेशों में तो वेटलैंड के पानी को खेताें में इसलिए उतारा जाता है क्योंकि इससे पक्षियों की फीड मिली होजी है और पानी में ताकत बन जाती है।