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बड़ा मुद्दा: सियासी दांवपेंच में फंस गया जम्मू का कैंसर इंस्टीट्यूट

केंद्र ने राज्य से स्पष्ट कर दिया है कि जिस योजना के तहत जम्मू में कैंसर इंस्टीट्यूट स्थापित होना था वह योजना खत्म हो गई है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sat, 30 Mar 2019 11:31 AM (IST)Updated: Sat, 30 Mar 2019 11:31 AM (IST)
बड़ा मुद्दा: सियासी दांवपेंच में फंस गया जम्मू का कैंसर इंस्टीट्यूट
बड़ा मुद्दा: सियासी दांवपेंच में फंस गया जम्मू का कैंसर इंस्टीट्यूट

जम्मू, रोहित जंडियाल। चुनाव से पहले जनता से राजनीतिक पार्टियां कई लोकलुभावनी घोषणाएं करती हैं, लेकिन सत्ता में आते ही वे अमलीजामा पहनाना भूल जाते हैं। यह योजनाएं सिर्फ कागजों तक ही सीमित होकर रह जाती हैं। इनमें से एक घोषणा है जम्मू में कैंसर इंस्टीट्यूट की स्थापना। यह इंस्टीट्यूट पांच साल बाद भी नहीं बन पाया। अब केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि जिस योजना के तहत यह इंस्टीट्यूट स्थापित होना था, वह योजना बंद हो गई है।

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वर्ष 2014 में आम चुनावों से पहले यूपीए सरकार के समय तत्कालीन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद ने जम्मू कश्मीर के लिए दो कैंसर इंस्टीट्यूट और पांच मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा की थी, लेकिन इनमें से एक भी प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो पाया। इस साल अगस्त-सितंबर में पांच मेडिकल कॉलेज खुलने जा रहे हैं। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की टीम निरीक्षण के लिए आ रही है, लेकिन जम्मू में बनने वाले एक अहम प्रोजेक्ट कैंसर इंस्टीट्यूट की अब बनने की संभावना लगभग खत्म हो चुकी है। 120 करोड़ की लागत से जम्मू के सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में बनने वाला यह प्रोजेक्ट खटाई में पड़ गया है।

जम्मू में कैंसर इंस्टीट्यूट बनने की संभावना बहुत कम

केंद्र ने राज्य से स्पष्ट कर दिया है कि जिस योजना के तहत जम्मू में कैंसर इंस्टीट्यूट स्थापित होना था, वह योजना खत्म हो गई है। सेंट्रल गवर्नमेंट स्टैंडिंग काउंसिल संदीप गुप्ता ने इस मामले में दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान कहा था कि कैंसर के नियंत्रण के लिए शुरू हुए राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत तृतीय देखभाल केंद्र में सुविधाएं बढ़ाई जा रही थीं। यह योजना खत्म हो गई है। इसे बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इसलिए जम्मू को मिलने वाले 120 करोड़ जारी नहीं हुए हैं। इससे साफ है कि जम्मू में कैंसर इंस्टीट्यूट बनने की संभावना बहुत कम है। अब अगली केंद्र सरकार पर निर्भर करेगा कि वह यहां पर इंस्टीट्यूट बनाती है या नहीं।

श्रीनगर में इंस्टीट्यूट की इमारत हो चुकी है तैयार

जम्मू और श्रीनगर दोनों ही जगहों पर एक साथ कैंसर इंस्टीट्यूट मंजूर हुए थे। कश्मीर में इस पर कार्रवाई हुई और केंद्र सरकार ने श्रीनगर में बनने वाले इंस्टीट्यूट के लिए वर्ष 2015 में 47.25 करोड़ की पहली किस्त जारी कर दी थी। श्रीनगर में इमारत तैयार हो गई है। हालांकि अभी वहां पर सुविधाओं की कमी है, लेकिन जम्मू में किसी ने इस पर कार्रवाई नहीं की। पूर्व मंत्री सिर्फ इंस्टीट्यूट बनाने की घोषणाएं ही करते रहे और पांच साल तक लोगों को इसके नाम पर गुमराह करते रहे।

न्यूक्लियर मेडिसीन विभाग को मंजूरी

राज्य प्रशासनिक परिषद ने मेडिकल कॉलेज जम्मू में न्यूक्लियर मेडिसीन विभाग को मंजूरी देकर मरीजों को जरूर राहत देने की कोशिश की, लेकिन यह विभाग अभी तक खुल नहीं पाया। इसके तहत न तो फैकल्टी की भर्ती हुई और न ही पेट स्कैन मशीन खरीदने की प्रक्रिया शुरू हो पाई। यह मशीन जम्मू संभाग में सिर्फ श्री माता वैष्णो देवी नारायणा सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में ही उपलब्ध है। वहां पर भी टेस्ट करवाने के लिए मरीज को 16 हजार से अधिक रुपये देने पड़ते हैं। यहां पर मशीन लगने से टेस्ट निशुल्क होगा। अगर इसके रुपये लिए भी गए तो निजी अस्पतालों की तुलना में एक चौथाई ही होंगे, लेकिन यह मशीन भी नहीं लग पाई।

बीमार मशीनों से हो रहा रोगियों का इलाज

कैंसर इंस्टीट्यूट बनने से न्यूक्लियर मेडिसीन विभाग, रेडिएशन आनकोलॉजी, मेडिकल आनकोलॉजी व सर्जिकल आनकोलॉजी विभाग बनने थे। कश्मीर में तो यह सभी हैं, लेकिन जम्मू में न तो न्यूक्लियर मेडिसीन विभाग मंजूरी के बावजूद बन पाया है और न ही सर्जिकल आनकोलॉजी में कोई नियुक्त है। वहीं, इंस्टीट्यूट बनने से करोड़ों रुपयों की आधुनिक मशीनरी भी आती। इस समय जिन मशीनों के सहारे मरीजों का इलाज होता है, वे बीमार पड़ी हुई हैं। सभी प्रमुख मशीनें 15 से 20 साल पुरानी हैं। कई मरीज ऐसे हैं, जिन्हें रेडिएशन की जरूरत रहती है। जिन मशीनों में मरीजों को रेडिएशन दी जाती है या फिर रेडियोथैरेपी की जाती है, उनकी हालत भी दयनीय बनी हुई है। रेडियोथैरेपी सिमुलेटर 20 साल पुरानी है। इसे रेडियोथैरेपी में इस्तेमाल किया जाता है। इसकी अनुमानित कीमत इस समय करीब तीन करोड़ रुपये है। इसी तरह रेडिएशन को मोनीटर करने वाले उपकरण 15 साल से अधिक पुराने हैं। इसकी अनुमानित कीमत 50 लाख रुपये है। इसी तरह टेली कोबाल्ट थैरेपी मशीन 20 साल से भी पुरानी है। इसकी अनुमानित लागत पांच करोड़ रुपये है।

यह है नुकसान

जम्मू में हर साल दो से ढाई हजार कैंसर के मरीज इलाज करवाने के लिए आते हैं। अभी तक कैंसर इंस्टीट्यूट न होने के कारण इन मरीजों को निजी अस्पतालों में भी इलाज के लिए जाना पड़ता है। जो गरीब मरीज हैं, उन्हें सबसे अधिक परेशानी हो रही है। उन्हें जीएमसी के आनकोलॉजी विभाग में पुरानी मशीनों के सहारे ही इलाज करवाना पड़ता है। अभी तक जीएमसी में पेट स्कैन मशीन तक नहीं है।

  • कैंसर इंस्टीट्यूट के लिए हमने अपने समय में काफी प्रयास किया। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जेपी नड्डा के साथ बात की और उन्होंने जम्मू के लिए राशि मंजूर करने की बात भी की। उन्होंने कहा था कि आप काम शुरू करवाओ। इसके बाद राज्य में गठबंधन सरकार नहीं रही। अब जम्मू में कैंसर इंस्टीट्यूट का क्या स्टेटस है, इस बारे में कुछ भी नहीं कह सकता। - डॉ. डीके मन्याल, पूर्व स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री
  • कैंसर इंस्टीट्यूट को जम्मू में कांग्रेस की यूपीए सरकार ने मंजूरी दी थी। अगर जम्मू में यह इंस्टीट्यूट नहीं बन पाया है तो इसके लिए वर्तमान सरकार जिम्मेदार है। राज्य में पांच मेडिकल कॉलेज भी यूपीए सरकार ने ही मंजूर किए थे। -रवीन्द्र शर्मा, मुख्य प्रवक्ता कांग्रेस
  • वर्तमान सरकार की जम्मू में किसी भी प्रोजेक्ट को शुरू करने में कोई रुचि नहीं है। यही कारण है कि पांच साल बाद भी जम्मू में कैंसर इंस्टीट्यूट नहीं बन पाया है। इसकी जांच होनी चाहिए कि इतने साल बाद भी आखिर यह प्रोजेक्ट क्यों नहीं बना। - हर्ष देव सिंह, चेयरमैन पैंथर्स पार्टी 

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