कभी हर पल गूंजते थे यहां मां Vaishno Devi के जयकारे, अब कंटीली झाडि़यां और खंडहर राह ताकते हैं
मां वैष्णो देवी के श्रद्धालुओं के लिए जम्मू से कटड़ा का 22 किलोमीटर लंबा पैदल ट्रैक अब लगभग खंडहर में बदल चुका है। इस मार्ग में आने वाले कुएं और बावलियां लगभग सूख चुके हैं और सराय खंडहर बन चुके हैं।
ललित कुमार, जम्मू : शारदीय नवरात्र में मां वैष्णो के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ जुट रही है। वैष्णो देवी के आधार शिविर में कटड़ा में कतारें लगी हैं पर कभी मां के भक्तों से गुलजार रहने वाला जम्मू से ट्रैकिंग मार्ग आज सुनसान पड़ा है। एक समय था जब यहां दिनरात भक्तों के जयकारे सुनाई देते थे। टोलियां पैदल ही निरंतर आगे बढ़ती दिखती थी। रास्ते में बनी सराय, बावलियां और तालाब श्रद्धालुओं को कुछ पल का सुकून देते थे। सदा बहते हुए नाले और झरने उनमें नई ऊर्जा भर देते। आज इस ट्रैक को बिसरा दिया गया है, सूखी बावलियां और सुनसान सराय भक्तों की राह ताकते हैं। 22 किलोमीटर के इस यात्रा ट्रैक पर झाडिय़ां उगी हैं और मंदिरों में सन्नाटा ही पसरा दिखता है।
यात्रा मार्ग पर श्रद्धालुओं के लिए कुएं और बावलियां बनाई गई थीं। इनमें से ज्यादातर सूख रही हैं।
उस दौर में न सड़कों का नेटवर्क था और न सुविधाओं का अंबार पर भक्तों की श्रद्धा और उत्साह में कभी कोई कमी नहीं रही। जम्मू के नगरोटा से आरंभ होकर कटड़ा तक श्रद्धालुओं के जत्थे जोश के साथ आगे बढ़ते दिखते थे। समय-समय पर इसका मुद्दा भी उठा पर न श्रीमाता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड और प्रदेश प्रशासन पारंपरिक मार्ग से जुड़े इतिहास को समेट नहीं पाया।
नगरोटा के कोल कंडोली को पहला दर्शन माना जाता है। कोल कंडोली से जगटी और पंगाली से होते हुए श्रद्धालु बम्याल पहुंचते थे। वहां से देवा माई (वर्तमान में रियासी में) और फिर कटड़ा के पास नुमाई पहुंचते। फिलहाल देवा माई तक मार्ग दिखता है पर उसके आगे ट्रैक ही गायब है।
दिल्ली और लाहौर से आए श्रद्धालुओं ने बनाई थी सराय
उस समय दिल्ली, लाहौर व देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले श्रद्धालुओं ने रास्ते में कई सराय बनाई। अब उनके खंडहर ही दिखते हैं। इन्हीं श्रद्धालुओं ने मार्ग पर ठहरने की व्यवस्थाएं की।
नगरोटा के कोल कंडोली में बना मंदिर।
यात्रा मार्ग पर हैं ये महत्वपूर्ण स्थल
- पंगाली गांव में एक मंदिर है और सराय भी बनी है। यहां जल संरक्षण के लिए तालाब बनाया गया है।
- ठंडा पानी में प्राचीन शिव मंदिर है और अब केवल स्थानीय लोग पूजा-अर्चना करते हैं।
- गुंदला गांव में कालिका माता का मंदिर है
- बम्याल में बस स्टैंड के निकट ठाकुरद्वारा के अवशेष आज भी नजर आते हैं।
- अपर बम्याल में शिव मंदिर है जिसकी दीवारों पर की गई पेंङ्क्षटग प्राचीन कारीगरी को उजागर करती है। बम्याल में एक ओली मंदिर है।
- ओली मंदिर के 500 मीटर दूर रियासी जिले में शिव मंदिर व सराय है।
- नौमाई में देवा माई का मंदिर है, जहां आज भी श्रद्धालु जाते हैं।
राणा के प्रयासों से हुआ था सर्वे : भाजपा नेता देवेंद्र राणा ने इस ऐतिहासिक मार्ग के संरक्षण के साथ इसे पर्यटन मानचित्र पर लाने के लिए प्रयास किए। उनके प्रयासों से इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज के जम्मू चैप्टर ने इस रूट का विजन डाक्यूमेंट भी तैयार किया लेकिन उसके बाद कोई काम नहीं हो पाया। स्थानीय फंड से कुछ मंदिरों का जीर्णोद्धार कार्य अवश्य शुरू हुआ।
जब मै पर्यटन विभाग का निदेशक था, तब इस मार्ग को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया। इस मार्ग का सर्वे भी करवाया गया। हमने रिपोर्ट तैयार करके सरकार को भी सौंपी थी। यह मार्ग पर्यटन की ²ष्टि से महत्वपूर्ण है। यहां पुराने मंदिर व सराय है जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर सकती है।
-- अजय खजूरिया, पूर्व निदेशक, पर्यटन विभाग, जम्मू
कई बार इस मार्ग को विकसित कर इसे हेरिटेज टूरिज्म के केंद्र के तौर पर विकसित करने का आग्रह किया गया है पर आज तक न श्राइन बोर्ड ने सुना और न प्रदेश प्रशासन ने। अगर इसे विकसित कर इसका प्रसार किया जाए तो यह एक टूरिस्ट सर्किट बन सकता है।
-- पवन गुप्ता, प्रधान, आल जम्मू होटल एवं लाज एसोसिएशन