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करवाचौथ: शारीरिक शुद्धता के साथ मन की पवित्रता का भी रखें ध्यान

अपने पति की लंबी उम्र के लिये इससे श्रेष्ठ कोई उपवास अथवा व्रत आदि नहीं है। इस दिन महिलाएं श्रृंगार करके पूजा करने जाती हैं और फिर घर आकर बड़ों का आशीर्वाद लेती हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Thu, 25 Oct 2018 06:15 PM (IST)Updated: Fri, 26 Oct 2018 09:30 AM (IST)
करवाचौथ: शारीरिक शुद्धता के साथ मन की पवित्रता का भी रखें ध्यान
करवाचौथ: शारीरिक शुद्धता के साथ मन की पवित्रता का भी रखें ध्यान

जम्मू, जेएनएन। सनातन धर्म में व्रत, पर्वो एवं त्यौहारों की मान्यता बहुत अधिक है। करवाचौथ का उपवास सुहागन स्त्रियों के लिए बहुत अधिक विशेष महत्व रखता है। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाए जाने वाला यह पर्व इस वर्ष 27 अक्टूबर शनिवार को मनाया जा रहा है। उत्तर भारत खासकर जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश आदि में तो इस त्यौहार की अलग ही रौनक देखने को मिलती है। अपने पति की लंबी उम्र के लिये इससे श्रेष्ठ कोई उपवास अथवा व्रत आदि नहीं है। इस दिन महिलाएं श्रृंगार करके पूजा करने जाती हैं और फिर घर आकर बड़ों का आशीर्वाद लेती हैं। चांद देखने के बाद ही महिलाएं अपना व्रत खोलती हैं।

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चतुर्थी तिथि कब शुरू होगी

  • चतुर्थी तिथि का आरंभ 27 अक्टूबर को शाम 6.38 बजे से शुरु होगी। चतुर्थी तिथि की समाप्ति 28 अक्टूबर शाम 4.55 बजे को होगी।

करवाचौथ पूजन का शुभ मुहूर्त

  • इस दिन सुबह 7.24 बजे से शाम 6.38 बजे तक भद्रा रहेगी। ऐसे में शाम 6.38 बजे से 7.30 बजे के बीच करवाचौथ का पूजन करना सबसे कल्याणकारी होगा।

चंद्र दर्शन का समय

  • जम्मू में 27 अक्‍टूबर को चंद्र दर्शन रात करीब 8.28 बजे होगा।

करवाचौथ व्रत कैसे शरू करें

  • करवा चौथ व्रत के दिन व्रती सुबह जल्दी उठ कर शुद्ध जल से स्नान करें। घर में पूजा स्थान या घर में कोई पवित्र स्थान में गंगाजल का अभिषेक कर के शुद्ध आसान पर बैठ कर आत्म पूजा करें। यह संकल्प ‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रत महं करिष्ये’ बोलकर करवाचौथ के व्रत को शुरू करें।

पूजन के बाद क्या करें

  • इस दिन सुबह उषाकाल पूजन कर सबसे पहले कुछ खाना तथा पीना चाहिए। जम्मू कश्मीर में उषाकाल से पहले सरगी में फैनी, कतलमे, नारियल, दूध, रबड़ी, मीठी कचौरी खाने का प्रचलन है। इस मिश्रण के सेवन से पूरे दिन बिना पानी पीये रहने में मदद मिलती है।

करवाचौथ पूजन व्रत विधि

  • शाम 6.39 बजे से 7.30 बजे के बीच दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। नहीं तो आज कल मार्किट से भी चित्र मिलते हैं। आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। मीठा और साथ में अलग-अलग तरह के पकवान बनाएं। गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी मैयां का श्रृंगार करें। जल से भरा हुआ लोटा रखें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। रोली से करवा पर स्वास्तिक बनाएं। श्री गणेश, भगवान शिव, स्वामी कार्तिकेय, चंद्रदेव और चित्रितकरवा की विधि अनुसार पूजा करें।

खुद करें करवाचौथ की पूजा

  • करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवाचौथ की कथा खुद करें। कथा करने अथवा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपने सास-ससुर तथा सभी बड़ो का आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दें। तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा अलग रख लें। रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें। चन्द्रमा को अघ्र्य दें यानि उन्हें जल चढ़ाएं। पति की लंबी आयु की कामना करे और जिंदगी भर आपका साथ बना रहे इसकी कामना करें। इसके बाद पति के पैरों को छुएं और आशीर्वाद लें। उनके हाथ से जल पीएं, उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।

करवा चौथ की पूजन सामग्री

  • शुद्ध मिट्टी, चॉदी, सोने या पीतल आदि किसी भी धातु का टोंटीदार करवा व ढक्कन, देसी घी का दीपक, रुई, गेहू्ं, शक्कर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, कुमकुम, शहद, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, दूप, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, नारियल, मेंहदी, मिठाई, गंगाजल, चंदन, चावल, सिन्दूर, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, हलुआ, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, फूल माला श्रद्धा स्वरुप दान के लिए दक्षिणा।

करवाचौथ व्रत उद्यापन (मोख) क्यों नहीं होगा?

  • इस वर्ष 16 अक्टूबर से शुक्रास्त (तारा डूबा) है। इसी कारण 27 अक्टूबर को करवाचौथ व्रत का उद्यापन नहीं होगा। यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियां आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं।

करवाचौथ व्रत कथा

  • कहा जाता है कि इसी व्रत के प्रभाव से पाण्डव महाभारत में विजयी हुए। द्रौपदी का सौभाग्य सुरक्षित रहा। सर्वप्रथम इस व्रत को श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को बताया था। महाभारत काल में एक बार अजरुन नील गिरी पर्वत पर तपस्या करने गए। द्रौपदी ने सोचा कि यहां हर समय जीव-जंतु सहित विघ्न-बाधाएं रहती हैं। उसके शमन के लिए अजरुन तो यहां नहीं हैं। यह सोचकर द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया और अपने कष्टों का निवारण पूछा। उन्होंने करवाचौथ के बारे में द्रौपदी को बताया था। करवाचौथ की और भी कथाएं है। 

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