Article 370: जम्मू-कश्मीर में नए युग की शुरूअात, अब विकास के पथ पर होगी कदमताल
स्वास्थ्य शिक्षा रोजगार उद्योग खेल कृषि के अलावा कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां राज्य प्रगति नहीं कर पाया है। यही कारण है कि 10 फीसद से अधिक लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं।
जम्मू, रोहित जंडियाल। आजादी के बाद सोमवार से जम्मू कश्मीर में एक नए युग की शुरुआत हुई है। यहां के लोग अब देश के अन्य राज्यों की तरह विकास के पथ पर कदमताल करते नजर आएंगे। केंद्र सरकार के अनुच्छेद 370 समाप्त करने के ऐतिहासिक फैसले से जम्मू-कश्मीर में कई बदलाव आएंगे। इससे राज्य के लोगों को उम्मीद बंध गई है कि राज्य में विकास की नई इबारत लिखी जाएगी। सात दशक तक जम्मू कश्मीर विकास के लिहाज से काफी पिछड़ा रहा है। इसका मुख्य कारण कश्मीर केंद्रित सरकारों ने विकास की तरफ गंभीरता से ध्यान न देकर सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए काम किया है।
स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, उद्योग, खेल, कृषि के अलावा कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां राज्य प्रगति नहीं कर पाया है। यही कारण है कि 10 फीसद से अधिक लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं। इसके लिए राज्य में अनुच्छेद 370 और व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार को जिम्मेदार है। अब जम्मू कश्मीर दो केंद्र शासित राज्यों में बदल गया है। 370 और 35ए को खत्म कर दिया है। जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश होगा, लेकिन इसकी अपनी विधानसभा होगी। लद्दाख के भी केंद्र शासित प्रदेश बनने से वहां पर विकास को गति मिलेगी। लोगों को मूलभूत सुविधाएं मिलने के साथ-साथ उनकी समस्याओं का भी समाधान हो पाएगा।
जम्मू कश्मीर में केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी सुविधाएं बढ़ेंगी। केंद्रीय फंड का दुरुपयोग रुकेगा और जरूरतमंदों को इसका सीधा लाभ मिलेगा। आतंकवाद और अलगाववाद पर अंकुश लगेगा। इसके साथ ही कश्मीर केंद्रित पार्टियों का वर्चस्व खत्म होगा और जम्मू संभाग को न्याय मिलेगा।
अब पूरे देश में सिर्फ तिरंगा लहराएगा
पहले जम्मू-कश्मीर का अपना अलग झंडा था। राष्ट्रीय ध्वज के साथ-साथ राज्य सचिवालय में राज्य का ध्वज भी फहराता था, लेकिन जम्मू कश्मीर का अलग झंडा नहीं होगा। सिर्फ तिरंगा ही लहराएगा। इसका अपमान राष्ट्रीय अपमान होगा और इसके लिए कड़ी सजा मिलेगी।
अन्य राज्यों के लोग कर सकेंगे मताधिकार का प्रयोग
पहले जम्मू कश्मीर में वोट डालने का अधिकार सिर्फ यहां के स्थायी नागरिकों को था। देश के दूसरे राज्यों के नागरिकों को यहां की मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराने का अधिकार नहीं था। देश के दूसरे राज्यों के नागरिक भी जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करा सकते हैं और वोट कर सकते हैं। इससे दूसरे राज्यों के रहने वाले लोगों को पसंदीदा उम्मीदवार चुनने का मौका मिलेगा।
रिफ्यूजियों को अधिकार
वर्षो से पश्चिमी पाकिस्तान के रिफ्यूजियों को राज्य विधानसभा में वोट डालने का अधिकार नहीं था। उन्हें भी अब यह अधिकार मिल जाएगा। रिफ्यूजी काफी समय से संघर्ष कर रहे थे।
पांच साल का होगा कार्यकाल
विधानसभा का कार्यकाल पांच साल का होगा। अनुच्छेद 370 के समाप्त होते ही छह साल का कार्यकाल खत्म हो जाएगा।
राज्य में अब जमीन खरीद सकेंगे
अनुच्छेद 370 के खत्म होते ही दूसरे राज्यों के लोग भी जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीद सकेंगे। पहले ऐसा नहीं था।
पहले थी दोहरी नागरिकता
जम्मू कश्मीर देश का इकलौता ऐसा राज्य था जहां पर नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती थी। अब जम्मू कश्मीर के लोगों के पास सिर्फ भारतीय नागरिकता होगी। इसके अलावा पहले देश के अन्य भागों के लोगों को जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने की इजाजत नहीं थी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश मान्य होंगे
भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर में मान्य नहीं होते थे। अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में भी भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश मान्य होंगे।
पीआरसी मान्य नहीं
पहले जम्मू कश्मीर के स्थायी नागरिक के लिए स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र जरूरी था। इससे वह सरकारी सुविधाएं हासिल कर सकता था, लेकिन अब यह मान्य नहीं होगी।
महिलाओं को नागरिकता
पहले जम्मू-कश्मीर की कोई महिला अगर भारत के किसी अन्य राज्य में विवाह कर लेती थी तो उसकी नागरिकता समाप्त हो जाती थी। अब ऐसा नहीं होगा।
बीमार स्वास्थ्य विभाग
स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज से राज्य आज भी पिछड़ा हुआ है। स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार एक हजार लोगों के लिए एक डॉक्टर होना चाहिए। राज्य में दो हजार लोगों के लिए एक डॉक्टर है। विशेषज्ञ डॉक्टरों की सबसे अधिक कमी है। उनकी नियुक्ति के लिए यहां कोई भी नीति नहीं बनाई गई है। एसआरओ 202 के तहत 1100 मेडिकल ऑफिसर्स की नियुक्ति हुई, उनमें अधिकांश ने नौकरी छोड़ दी। इसका एक कारण यहां डॉक्टरों का कम वेतन होना और उनकी नियुक्ति के लिए कोई भी नीति नहीं होना भी है।
10 फीसद से अधिक गरीब
राज्य में तमाम सरकारी दावों के बावजूद आज भी ज्यादातर आबादी दो समय की रोजी-रोटी के चक्कर से बाहर ही नहीं आ पा रही। राज्य में दस फीसद से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। इनसे ऊपर आ चुकी आबादी का बड़े हिस्से की स्थिति बेहतर नहीं कही जा सकती। इन लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकालने के लिए कई योजनाएं शुरू की गई थीं। इनका लाभ इन्हें कम ही मिलता है। इनकी स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है। यह लोग राज्य सरकार के स्थान पर पूरी तरह से केंद्रीय योजनाओं के सहारे ही टिके हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों की आय 891 रुपये प्रति महीना है। शहरी क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों की संख्या 988 रुपये प्रति माह है।
बेरोजगारों की फौज
राज्य में तीन दशक से जारी आतंकवाद, सीमित संसाधन, 370 के कारण बाहर से कम निवेश और रोजगार नीति न होने के कारण बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। राजनीतिक दल भी इस मुद्दे को दठाते आए हैं, परंतु किसी ने भी इसके समाधान के लिए प्रयास नहीं किए। नतीजतन जम्मू कश्मीर में बेरोजगारी की दर देश में सबसे अधिक है। सेंटर फार मोनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी की दो साल पहले की रिपोर्ट के अनुसार जम्मू कश्मीर में बेरोजगारी की दर 12.7 प्रतिशत थी। इस समय राज्य के रोजगार केंद्रों में ही एक लाख के करीब युवाओं ने पंजीकरण करवाया हुआ है। जबकि गैर अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार बेरोजगारों की संख्या छह लाख को भी पार कर चुकी है। इनमें डाक्टर, इंजीनियर, पीएचडी, पोस्ट ग्रेजुएट, ग्रेजुएट और अन्य शामिल हैं।
खेल नीति नहीं
राज्य में खेल का बजट मात्र दो करोड़ है। जबकि पड़ोसी राज्यों में बजट 200 करोड़ से लेकर 400 करोड़ है। राज्य में खेल नीति न होने के कारण प्रतिभाशाली खिलाड़ी उपेक्षा का शिकार हैं। हमेशा कश्मीर के खिलाडिय़ों को ही तरजीह मिली है। जबकि जम्मू संभाग के खिलाड़ी हर वर्ष राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन करते हैं, लेकिन उन्हें प्रोत्साहन नहीं मिलता है।
शिक्षा भी पटरी पर नहीं
राज्य में शिक्षा की हालत भी बेहतर नहीं है। सरकारी स्कूलों में करीब चार हजार से अधिक शिक्षकों के पद खाली पड़े हुए हैं। उच्च शिक्षा में सरकार ने पिछले कुछ समय से करीब सौ नए डिग्री कॉलेज खोले हैं लेकिन इनमें भी असिस्टेंट प्रोफेसर नहीं हैं। अधिकांश एडहाक स्तर पर नियुक्त हैं।
उद्योगों की हालत बेहतर नहीं
राज्य में उद्योगों की हालत भी बेहतर नहीं है। धारा 370 के कारण बाहर से यहां पर उद्योग लगाने के लिए कोई भी नहीं आता। अगर कोई आता भी था तो वे सिर्फ सब्सिडी लेकर उद्योग बंद करके चला जाता था। यही कारण है कि यहां पर कोई भी बड़ा उद्योग स्थापित नहीं हो पाया। सैकड़ों उद्योग यहां पर बंद पड़े हुए हैं। इसका असर रोजगार पर भी पड़ रहा है।
किसानों को नहीं मिलते उचित दाम
कृषि क्षेत्र में भी जम्मू कश्मीर आगे नहीं बढ़ा है। इसका कारण प्रगतिशील खेतीबाड़ी से किसान अंजान हैं। अधिकतर हिस्सा गैर संचित इलाका है जहां नहरों और नदियों का पानी नहीं पहुंच पाता। कश्मीर में हमेशा सरकारें बागवानी पर मेहरबान रहीं। राज्य से बाहर निर्यात होने वाले सेब, ड्राईफ्रूट पर टैक्स नहीं लगता है। जबकि जम्मू की बासमती पर टैक्स लगाया जाता है। संबंधित विभाग भी कृषि के विकास के लिए गंभीर नहीं हो पाया है। जम्मू के किसानों को सबसे बड़ी मार उनको अपने उत्पाद के उचित दाम नहीं मिलते हैं।
पर्यटन स्थलों की उपेक्षा
जम्मू कश्मीर में पर्यटन की अपार संभावनाएं है लेकिन राज्य सरकार ने कश्मीर को छोड़ कर जम्मू में कभी भी पर्यटन को बढ़ावा नहीं दिया। यही कारण है कि जम्मू संभाग में कई प्रोजेक्ट वर्षो बाद लटके हुए हैं। कइयों के विकास के लिए कोई भी योजनाएं नहीं बनी। बार्डर टूरिज्म को विकसित करने के लिए वषों से योजनाएं बनी, लेकिन आज भी हाल पहले की तरह ही है।
जम्मू कश्मीर के कुछ अहम आंकड़े
- राज्य की कुल जनसंख्या एक करोड़ पच्चीस लाख है। इसमें से 73 फीसद आबादी गांवों और 27 फीसद शहरों में रहती है।
- राज्य की कुल जनसंख्या में 10.35 फीसद लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। गांवों में 11.54 फीसद और शहरी क्षेत्रों में 7.20 फीसद लोग गरीबी रेखा से नीचे थे।
- प्राथमिक शिक्षा में अभी भी 10.30 प्रतिशत बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं।
- शिक्षा पर कुल सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 1.99 प्रतिशत ही खर्च होता है।
- राज्य में स्वास्थ्य के क्षेत्र पर कुल सकल घरेलू उत्पाद का 0.66 प्रतिशत ही खर्च होता है।
- अस्पतालों में 855 लोगों के लिए एक बिस्तर है।
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