विस्थापित कश्मीरी पंडितों को जोड़ रहा सामुदायिक रेडियो ‘शारदा’, समस्याएं उठा सरकार तक पहुंचाते हैं...
सार्थक साबित हुआ कार्यक्रम वागूजवोर सांस्कृतिक विरासत और पहचान को संजोए रखने का किया काम।
रोहित जंडियाल, जम्मू। बीती सदी के नौवें दशक में कश्मीर से विस्थापित लाखों पंडित जम्मू सहित देश के विभिन्न हिस्सों में जा बसे थे। इनकी सांस्कृतिक विरासत पीछे छूट गई, जिसे लुप्त होने से बचाने को सामुदायिक रेडियो ‘शारदा’ की स्थापना हुई। हाल ही में इसे दो राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया है। इस कम्युनिटी रेडियो की शुरुआत गैर सरकारी संगठन पीर पंजाल ने 2011 में जम्मू से की थी, जो अब कश्मीरी पंडितों की आवाज बन गया है।
तीन दशक पहले कश्मीर में आतंक के सिर उठाते ही पंडित समुदाय को अपनी मिट्टी से बिछड़ना पड़ा। विस्थापन का दर्द लिए लाखों परिवार यहां से पलायन को बाध्य हुए। उनकी सांस्कृतिक पहचान पर गंभीर संकट उत्पन्न हो गया। बुजुर्गों को समुदाय की बरसों पुरानी संस्कृति के लुप्त होने की आशंका सताने लगी। हालात के थपेड़े खाकर जब कुछ संभले तो अपनी थाती को सहेजने के लिए आगे बढ़े। कुछ कश्मीरी पंडितों ने मिलकर ‘पीर पंजाल’ नामक गैर सरकारी संगठन बनाया और प्रयास शुरू किए। जम्मू में पांच दिसंबर 2011 को सामुदायिक रेडियो ‘शारदा’ की शुरुआत इसी क्रम में की गई।
रेडियो के संस्थापक और संगठन के प्रधान रोमेश हंगलू बताते हैं, मकसद था कि जम्मू संभाग में बसे पंडितों को अपनी संस्कृति से जोड़कर रखा जा सके। हमने एक कार्यक्रम शुरू किया- वांगूजवोर। इसका कश्मीरी भाषा में अर्थ है- घर खोकर सड़क पर रहना...। इस कार्यक्रम के जरिये हमने कश्मीरी पंडितों के दर्द और हितों की बात शुरू की। रोजमर्रा के तमाम मुद्दों के अलावा अपनी संस्कृति और समाज से जुड़े अन्य पहलुओं पर चिंतन और विमर्श शुरू किया। समाज के लोग अपने समक्ष खड़े गंभीर प्रश्नों पर चर्चा करते और समाधान पर जोर देते। हमारे इस कार्यक्रम की ख्याति जल्द ही राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी। बीते सप्ताह सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कश्मीरी संस्कृति के संरक्षण के लिए शुरू किए गए हमारे कार्यक्रम के लिए हमारे सामुदायिक रेडियो को दो राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा। स्थानीय स्तर पर फंड जुटाकर रेडियो शारदा शुरू किया गया था। लोग इसके साथ जुड़ें, इसके लिए विस्थापित पंडितों की ओर ध्यान केंद्रित करने के अलावा पंजाबी और डोगरी भाषा में भी कार्यक्रम शुरू किए गए, ताकि हर वर्ग के लोगों को इसके साथ जोड़ा जा सके।
रमेश हिंगलू ने दावा किया कि 370 हटाए जाने के बाद अपने घर से दूर रहने वाले कई कश्मीरियों ने घाटी में सगेसंबंधियों के बारे में सूचना पाने के लिए रेडियो स्टेशन से संपर्क किया। 2014 में भी कश्मीर में आई बाढ़ के दौरान भी लोग सूचना पाने के लिए हमसे संपर्क में थे।
समस्याएं उठा सरकार तक पहुंचाते हैं...
रेडियो शारदा के संस्थापक रोमेश हंगलू का कहना है कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि एक दिन इतनी सफलता मिलेगी। वह लोगों की छोटी-छोटी समस्याएं उठाकर सरकार तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। इसके आज परिणाम सामने आ रहे हैं।
ऐसे कर रहे संस्कृति का संरक्षण...
जम्मू में रह रहे विस्थापित पंडितों के घरों में जानकर उनकी संस्कृति के बारे में बात की जाती है। वह युवा पीढ़ी जो कभी कश्मीर में नहीं रह पाई, वे अपनी संस्कृति को जान सकें और उसे बढ़ावा देने के लिए काम करें, यही इसका मकसद है।
90.4 फ्रीक्वेंसी पर उपलब्ध, 104 देशों तक पहुंच,...
इसे 90.4 फ्रीक्वेंसी पर सुना जा सकता है। इस रेडियो स्टेशन का दायरा बेशक 20 किलोमीटर में सिमटा है, लेकिन इंटरनेट के माध्यम से इसके कार्यक्रम 104 देशों में सुने जा सकते हैं।