विदेशी कारों के शौकीन थे महाराजा हरि सिंह, उनके काफिले की शान थी 24 से अधिक विदेशी कारें
वर्ष 1926 में महाराजा की ताजपोशी हुई तब उन्होंने दो दर्जन रॉल्स-राॅयस खरीदी थी। इतिहासकारों का मानना है कि महाराजा को इन कारों से काफी लगाव था।
जम्मू, राहुल शर्मा। महाराजा हरि सिंह द्वारा खरीदी गई विंटेज स्पोर्टस कार की लंदन में नीलामी की खबर चर्चा का विषय बनी हुई है लेकिन जो विदेशी आज महाराजा की कार खरीदने की ख्वाहिश रखते हैं, वो इस बात से अंजान हैं कि कभी महाराजा भी ऐसे ही विदेशी कारों के शैकीन थे। वर्ष 1926 में महाराजा की ताजपोशी हुई तब उन्होंने दो दर्जन रॉल्स-राॅयस खरीदी थी।
इतिहासकारों का मानना है कि महाराजा को इन कारों से काफी लगाव था। ताजपोशी के वक्त इन कारों ने उनकी राजशाही में चार चांद लगाए थे। रॉल्स-राॅयस के शौकीन महाराजा ने जब श्रीनगर छोड़ा उसके बाद भी वे इन कारों के काफिले के साथ जम्मू आ गए। महाराजा की मृत्यु के बाद अधिकतर कारें प्रदर्शनी रही और अधिकतर कारों की नीलामी भी हो चुकी है। उनकी यह विदेशी कारें इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई हैं। इन विंटेज कारें दुनिया भर में होने वाली प्रदर्शनी में शामिल होती हैं।
वर्ष 2012 और 2014 में जर्मनी में आयोजित कारों की प्रदर्शनी में महाराजा की रॉल्स-राॅयस कारों को भी शामिल किया गया। कारों के इतिहास में रॉल्स-राॅयस ने तीन कारों को तर्जुबे के तौर पर बाजार में उतारा था। जिसमें 1928 आरआर फेंटम आई - 17 ईएक्स ऐसी आखिरी गाड़ी थी। इसे बाद में स्पोट्स फेंटम का नाम दिया गया। महाराजा हरि सिंह ने भी इस कार को खरीदने से पहले काफी टेस्ट ड्राइव ली और टेक्नाेलॉजी के बारे में जाना। महाराजा इन विदेशी कारों को खरीदा और भारत ले आए। रॉल्स-राॅयस शुरूआत में बनाई गई इन कारों को बेचने के हक में नहीं थे परंतु कंपनी महाराजा को निराश नहीं करना चाहती थी क्योंकि महाराजा ने 1930 में कंपनी से छोटे अंतराल में ही 25 से अधिक कारें खरीदने की इच्छा जाहिर की थी।
रॉल्स-राॅयस की 17 ईएक्स फेंटम कार 1920 में बनी। इसके अलावा अन्य 10ईएक्स, 15ईएक्स और 16ईएक्स ये सभी अलग-अलग डिजाइन और रंगों में उतरी। यह एक दूसरे से हटकर दी। 17ईएक्स मॉडल की रॉल्स-रॉयस विमल्डन के जार्विस ने भी खरीदी थी। जिसमें बड़ी खूबसूरती से इसकी कपड़े की छत तैयार की गई और इसका लुक भी स्पोट्स कार की तरह दिया गया। रॉल्स-राॅयस ने वर्ष 1928 में इस कार को बेचने से पहले 4500 मील चलाया भी।
कुछ साल पहले यह कार कोलकाता के पी मित्रा ने खरीदी और बाद में इसे बेच दिया। रॉल्स-राॅयस कंपनी ने इस कार को 1960 में ढूंढ निकाला। वर्ष 1976 में ये कारें दो इटेलियन नागरिकों ने शौकिया तौर पर खरीदी। इसे इटेलियन कोलेक्टर डॉ वेनिरो मोलारी ने खरीदा और स्पाइकर के मालिक विक्टर मूलर को बेच दिया। बाद में उन्होंने भी गाड़ी को नीलाम कर दिया। तत्पश्चात इसे आस्ट्रियन नागरिक एलेक्सजेंडर शॉफलर ने खरीदा।
वर्ष 2004 में इटली में ये कारें फिरी दिखी। यह एक इतेफाॅक ही था कि रॉल्स-राॅयस की 100वीं शताब्दी पर इन कारों को इटली से ढूंढ निकाला गया। डच कोलेक्टर ने कार को खरीदा और इसे इटली ले आया। वर्ष 2009 से लेकर अब तक शॉफलर ने 24000 किलोमीटर कार में सफर किया है। शॉफलर विभिन्न कार प्रदर्शनी में इस कार को अपने साथ रखते हैं।
महाराजा हरि सिंह की 930 मर्सेडिज बैंज एसएस भी गैरेज की शोभा रही है। इस कार को जर्मनी में आयोजित प्रदर्शनी में देखा गया था। इसकी चेसिस छोटी और नीचे होने की वजह से यह अपने वक्त की सुपर स्पोट्स कार थी। महाराजा ने लेफ्ट हैंड ड्राइव फोर सिटर यह कार वर्ष 1930 में बर्लिन के पेरिस सैलून से खरीदा था। क्योकि भारत में राइट हैंड ड्राइव होती है इसीलिए कंपनी ने इसे राइट हैंड में तबदील किया। इसके लिए इंजन और स्टेयरिंग को भी बदला गया। 7.1 लीटर इंजन वाली विंटेज कार मॉडल एम 06 यूनिट का डिजाइन डॉ फर्डिनेंड रॉशे ने किया था। यह कार 1972 तक राज घराने के पास रही और फिर इसे भारत के नीलाम कर दिया गया। बाद में इस विंटेज कार को मर्सेडिज बैंज ने अस्ट्रेलिया में खरीद और वर्ष 2012 में इस कार को नए नुक में पेबल बीइच में कार प्रदर्शनी में देखा गया।
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