Jammu Kashmir LG Manoj Sinha ने कहा- मकबूल सहित जांबाजों के किस्से स्कूल पाठ्यक्रम में भी होंगे शमिल
कश्मीर का पहला शहीद कहलाने वाले मकबूल के लिए वतनपरस्ती ही ज्यादा अहमियत रखती थी। इतिहास का मानना है कि अक्टूबर 1947 के अंतिम सप्ताह के दौरान मुजफ्फराबाद चकौटी को रौंदते हुए कबाइली जब बारामुला पहुंचे तो उन्होंने दरिंदगी का खेल खेला।
जम्मू, राज्य ब्यूरो : उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा कि वर्ष 1947 में पाकिस्तानी हमलावरों से कश्मीर को बचाने वाले बारामुला के मकबूल शेरवानी सहित जांबाज सैनिकों की वीरता के किस्से अगले साल से स्कूल पाठ्यक्रम का हिस्सा होंगे। इसमें नई पीढ़ी को बताया जाएगा कि किस तरह से इस प्रदेश के लिए कुर्बानियां दीं गई। उन्होंने इतिहास में इन वीरों को गुमनाम रखने पर किसी का नाम लिए बिना पूर्व सरकारों को आड़े हाथ लिया।
उपराज्यपाल इन्फैंट्री दिवस पर श्रीनगर एयर फील्ड में कश्मीर के रक्षक ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह व मकबूल शेरवानी की प्रतिमा के अनावरण के लिए आयोजित कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे। श्रीनगर एयर फील्ड में लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय की प्रतिमा पहले से स्थापित थी। अब कश्मीर के रक्षक ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह व मकबूल शेरवानी की प्रतिमा भी स्थापित की गई है। उपराज्यपाल ने कहा कि कश्मीर में पाकिस्तान की बर्बरता की कहानियों को क्यों सुनाया नहीं गया। क्यों बच्चों को यह जानकारी नहीं दी कि मकबूल शेरवानी, मेजर सोमनाथ ब्रिगेडियर राजेन्द्र ङ्क्षसह व लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय कौन थे।
पड़ोसी देश के असली चेहरे को सामने लाया जाए : उपराज्यपाल ने कहा कि इतिहास की गलतियों को सुधारते हुए लोगों को बताना होगा कि 27 अक्टूबर 1947 को कश्मीर में क्या हुआ था। यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि इन बहादुरों की कहानियों के बारे में स्कूली विद्यार्थियों को पता लगे। सच यह है कि पाकिस्तानी सेना ने कबाइलियों की आड़ में बेगुनाह लोगों की हत्याएं करने के साथ उनके घरों को जलाया व साथ बहन-बेटियों से दुष्कर्म किया था। सिन्हा ने कहा कि लोगों को यह समझना चाहिए कि कि पड़ोसी देश न सिर्फ आज आतंकवाद का पर्याय है, वह देश के आजादी के बाद से आतंकवाद को शह दे रहा है। न सिर्फ 1999 के कारगिल युद्ध अपितु पिछले 75 साल से पाकिस्तान नापाक साजिशें रच रहा है। यह जरूरी है कि पड़ोसी देश के असली चेहरे को लोगों के सामने लाया जाए।
हमलावर खबरदार, हम कश्मीरी हैं तैयार...नारा फिर बुलंद करें : उपराज्यपाल ने कहा कि यह समय सतर्कता बरतने का है। पाकिस्तान लोगों को नुकसान पहुंचाने के लिए अपने नापाक मंसूबों पर काम कर रहा है। उपराज्यपाल ने कहा कि उन्हें सेना पर गर्व है। आज सेना के प्रयासों के कारण जम्मू कश्मीर विकास व प्रगति की राह पर अग्रसर है। यह केंद्र की प्राथमिकता है कि जम्मू कश्मीर का प्राथमिकता पर विकास किया जाए। कश्मीर पर कबाइलियों के हमले के बाद लोगों द्वारा दिए नारे, हमलावर खबरदार, हम कश्मीरी हैं तैयार, का हवाला देते हुए उपराज्यपाल ने कहा कि समय की मांग है कि कश्मीर के लोग इस नारे को फिर से दोहराते हुए उन ताकतों को खत्म करें जो क्षेत्र की शांति में बाधा पैदा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सेना ने जम्मू कश्मीर के लोगों को बचाने के लिए बहुत कुर्बानियां दी हैं इसे याद रखने की जरूरत है। सेना की 15 कोर के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल डीपी पांडे के साथ वायुसेना की पश्चिमी कमान के एयर आफिसर कमांङ्क्षडग इन चीफ, एयर मार्शल अमित देव, डीजीपी दिलबाग सिंह व कश्मीर प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी कश्मीर के रक्षकों को श्रद्धासुमन अर्पित किए।
मकबूल के लिए वतनपरस्ती से बढ़कर कुछ और नहीं था: देश-प्रेम की खातिर कुछ करना हमें शहीद मकबूल शेरवानी के व्यक्तित्व से भी सीखने को मिलता है। बारामुला जिले के मकबूल शेरवानी का भी कश्मीर को बचाने में बड़ा योगदान रहा, लेकिन इस बहादुर को इतिहास में जगह नहीं मिली। अनुच्छेद 370 हटने के बाद अब 'द हीरो ऑफ बारामूला' शहीद मक़बूल शेरवानी के शौर्य के किस्से बच्चे भी अपनी किताबों में भी पढ़ेंगे।
कौन थे मकबूल शेरवानी : कश्मीर का पहला शहीद कहलाने वाले मकबूल के लिए वतनपरस्ती ही ज्यादा अहमियत रखती थी। इतिहास का मानना है कि अक्टूबर 1947 के अंतिम सप्ताह के दौरान मुजफ्फराबाद, चकौटी को रौंदते हुए कबाइली जब बारामुला पहुंचे तो उन्होंने दरिंदगी का खेल खेला। उनका अगला मकसद श्रीनगर था। मकबूल उन्हें रास्ते में मिल गया। कई लोग दावा करते हैं कि मकबूल खुद बारामुला में डेरा डाले कबाइलियों के पास गया था ताकि उन्हें किसी तरह से रोक सके। उसने कबाइली फौज के आमीर (सरदार) से कहा था कि अगर वह सीधे रास्ते से श्रीनगर की तरफ बढ़ेंगे तो श्रीनगर तक पहुुंच चुकी भारतीय फौज उन्हें रोक लेगी। वह एक रास्ता जानता है जो छोटा और सुरक्षित है। इससे चलकर वह भारतीय फौज पर अचानक हमला कर सकते हैं। चार दिनों तक वह बारामुला के आस-पास ही खेतों,बागों और जंगलों में घुमाता रहा। इस बीच, भारतीय फौज श्रीनगर से आगे बढ़ते हुए शाल्टेंग तक पहुंच गई। इससे बारामुला में बैठे कबाइली दस्ते के आमीर का माथा ठनक गया। वह समझ गया कि उनका गाइड बना मकबूल उन्हें मूर्ख बना गया है। मकबूल उस समय बारामुला से निकल चुका था। कहा जाता है कि वह सुंबल इलाके में था और कबाइलियों के साथ आए पाकिस्तानी फौजियों ने उसे पकड़ कर बारामुला लाया और फिर जो हुआ वह किसी को भी दहला दे। उसे सलीब पर टांग गोलियां मारी गई और उसके सिर पर कील ठोंकी। भारतीय सेना ने बारामुला में उसके नाम पर शेरवानी मेमोरियल ऑडिटोरियम भी बनाया है।