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Jammu Kashmir: दिल्ली में अपनाई वास्तविकता से अब मुंह नहीं फेर पाएगा गुपकार गठबंधन

पांच अगस्त 2019 के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्वदलीय बैठक में नेशनल कांफ्रेंस पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और पीपुल्स कांफे्रंस के नेताओं से मुलाकात या बातचीत की है। बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इनकी सिर्फ सुऩी है और फैसला अपना सुनाया है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sat, 26 Jun 2021 09:48 AM (IST)Updated: Sat, 26 Jun 2021 02:45 PM (IST)
Jammu Kashmir: दिल्ली में अपनाई वास्तविकता से अब मुंह नहीं फेर पाएगा गुपकार गठबंधन
बेग पीडीपी छोड़कर सज्जाद गनी लोन की पीपुल्स कांफ्रेंस में शामिल हो चुके हैं।

श्रीनगर, नवीन नवाज: तारीख 24/6 इतिहास का हिस्सा बन गई है। जम्मू कश्मीर के संदर्भ में दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक अपना लक्ष्य साधने में कामयाब रही है। अब नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, पीपुल्स कांफ्रेंस, माकपा, कांग्रेस सरीखे दलों को अपनी कश्मीर नीतियों की नए सिरे सेे समीक्षा करते हुए उन्हेंं उस वास्तविकता को, जिसे वह अपना चुके हैं, जनता को भी बताना होगा। अन्यथा, दिल्ली से लौटे यह लोग जम्मू कश्मीर में भी पूरी तरह अप्रासंगिक हो जाएंगे।

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बैठक में स्पष्ट हो गया कि जम्मू कश्मीर में तुष्टिकरण, ब्लैकमेल और अलगाववाद के नाम पर तथाकथित मुख्यधारा की सियासत के लिए अब जगह नहीं बची है। दिल्ली में हुई इस बैठक के बाद जम्मू कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया तेज होने के साथ विधानसभा चुनावों के लिए विभिन्न राजनीतिक दल अपनी कमर कसते हुए नजर आएंगे। इनमें वह भी होंगे जो कल तक कहते थे कि 370 की बहाली तक वह चुनाव नहीं लड़ेंगे।

पांच अगस्त, 2019 के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्वदलीय बैठक में नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और पीपुल्स कांफे्रंस के नेताओं से मुलाकात या बातचीत की है। बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इनकी सिर्फ सुऩी है और फैसला अपना सुनाया है। उन्होंने पहले परिसीमन और चुनावों की बात की, उसके बाद जम्मू कश्मीर के लिए राज्य का दर्जा और उसके बाद बाकी बातेें। अनुच्छेद 370, 35ए और या फिर राजनीतिक कैदियों की रिहाई से उन्होंने सीधा इन्कार किया है।

कश्मीर में लोग सवाल पूछ रहे हैं कि जब यह होना था तो फिर पांच अगस्त, 2019 को लागू पुनर्गठन अधिनियम के विरोधी लेने क्या गए थे? जवाब है सिर्फ और सिर्फ जम्मू कश्मीर में खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए। अन्यथा, यह लोग बैठक में जरूर पाकिस्तान और अलगाववादियों से बातचीत के अलावा 370 की पुनर्बहाली पर जोर देते। ऐसा कुछ नहीं हुआ, पाकिस्तान की वकालत किसी ने नहीं की, अनुच्छेद 370 का जिक्र किया तो इस अफसोस के साथ कि इसे नहीं हटाया जाना चाहिए था और अगर हटाना था तो सभी को विश्वास में लेना था।

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने जब इस मुद्दे को तूल देने का प्रयास किया तो पूर्व उपमुख्यमंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग जो पीडीपी के संस्थापक सदस्यों में एक हैं, ने उन्हेंं टोक दिया। उन्होंने कहा कि यह मामला अब अदालत में है, अदालत में ही रहनें दे, यहां जिक्र करने की जरूरत नहीं है। बेग पीडीपी छोड़कर सज्जाद गनी लोन की पीपुल्स कांफ्रेंस में शामिल हो चुके हैं।

बैठक में किसी ने नहीं कहा कि जब तक अनुच्छेद 370 की बहाली नहीं होगी, वह चुनाव नहीं लड़ेंगे। सभी चुनाव लडऩे को तैयार नजर आए हैं। बैठक में उन्होंने जम्मू कश्मीर के लिए एजीएमयूटी कैडर को समाप्त कर फिर से आइएएस व आइपीएस कैडर बहाल करने की मांग की। महबूबा ने भी बड़ी सावधानी के साथ क्रास एलओसी ट्रेड और पाकिस्तान के साथ संबंधों का जिक्र किया, लेकिन पाकिस्तान की पैरोकारी से बची रहीं।

अब सेल्फ रूल, 370 का नारा नहीं दे पाएंगे कश्मीर के दल: कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ प्रो. हरि ओम ने कहा कि आम लोगों की भाषा में कहें तो केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर के तथाकथित ठेकेदारों के सिर पर हाथ फेरते हुए उन्हेंं बड़े आराम के साथ बेनकाब किया है। नेकां, पीडीपी, पीपुल्स कांफ्रेंस और उन जैसे दलों के लिए अब लोगों के बीच जाकर आटोनामी, सेल्फ रूल, 370 का नारा देना मुश्किल हो जाएगा। अगर वह यह नारा देंगे तो लोग सवाल करेंगे कि बैठक में इन मुद्दों पर वह चुप क्यों रहे, पाकिस्तान के साथ बातचीत पर जोर क्यों नहीं दिया। इसलिए वह अब लोगों के बीच अगर जाएंगे तो पाकिस्तानी नमक और हरा रुमाल नहीं लहराएंगे, बल्कि उन्हेंं तिरंगा दिखाएंगे और समझाएंगे कि हमारी नियति इसके नीचे है। हमारे बुजुर्गों ने 1947 में जो भारत में विलय का फैसला लिया था, वह सवाल से परे है, वह सही है।

गुपकार गठबंधन को अच्छा बनने का मौका: कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ मुख्तार अहमद बाबा ने कहा कि जब सर्वदलीय बैठक का एलान हुआ था तो मुझे लगा था कि इतिहास खुद को दोहराने जा रहा है, नरेंद्र मोदी वही गलती करने जा रहे हैं जो पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने 1975 में की थी। उन्होंने शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के साथ समझौता कर जम्मू कश्मीर की सत्ता और यहां का भविष्य उन्हेंं एक प्लेट में केक की तरह सौंप दिया था। उसका परिणाम सभी ने देखा है। नरेंद्र मोदी ने इतिहास से सबक लिया है और उन्होंने पीपुल्स एलांयस फार गुपकार डिक्लेरेशन में शामिल दलों को एलायंस फार द बेटरमेंट आफ जम्मू कश्मीर बनने का मौका दिया है। केंद्र ने साफ कर दिया है कि कश्मीर मुद्दे पर अगर उसे बात करनी होगी तो वह अपने तरीके से करेगा, कश्मीर के भीतर किसी भी दल को पाकिस्तान का वकील बनने की जरूरत नहीं है। उन्हेंं अगर अपनी बात कहनी है तो सिर्फ भारतीय संविधान के दायरे के भीतर। यह सच अब यह लोग स्वीकार कर चुके हैं। बस, इंतजार उस दिन का है, जिस दिन यह सच लोगों के बीच जाकर बोलेंगे। 


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