Jammu Kashmir Police: .. जब पुलिस थाने में रची गई थी मंत्री की हत्या की साजिश
वर्ष 2002 में राज्य के तत्कालीन गृहमंत्री मुश्ताक लोन की सोगाम में एक चुनावी सभा में हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने जून 2003 में अपने ही विभाग के कुछ लोगों को पकड़ा।
जम्मू, नवीन नवाज। जम्मू कश्मीर पुलिस का कुर्बानियों का लंबा इतिहास रहा है। डीएसपी अमन ठाकुर जैसे बहादुर देश के लिए कुर्बान होकर जम्मू कश्मीर पुलिस की शान बढ़ा गए, वहीं आतंकियों के एजेंट बन दे¨वदर सिंह जैसे अफसरों ने वर्दी के सम्मान को तार-तार कर दिया। नतीजा पूरी फोर्स को शर्मसार होना पड़ा। अब सुरक्षा एजेंसियों वर्दी की आड़ में छिपे ऐसे भेड़ियों की तलाश में जुट गई हैं।
तीन दशक से पाक प्रायोजित इस्लामिक जिहादियों से मुकाबला कर रही जम्मू कश्मीर पुलिस के लिए यह आज भी बड़ी चुनौती है। करीब 17 साल पहले जो हुआ, उससे पूरा तंत्र हिल गया था। मंत्री की हत्या की साजिश थाने में रची गई थी। आधिकारिक तौर पर राज्य पुलिस और गृह विभाग के अधिकारी ऐसे मामलों की पुष्टि से परहेज करते हैं पर दबे मुंह स्वीकारते हैं कि ऐसे मामलों की संभावना को नकारना मुश्किल है। संबधित सूत्रों की मानें तो आतंकियों का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष तौर पर साथ देने के आरोप में अब तक करीब सात दर्जन पुलिस अधिकारियों और जवानों के खिलाफ कार्रवाई की जा चुकी हैं।
वर्ष 2002 में राज्य के तत्कालीन गृहमंत्री मुश्ताक लोन की सोगाम में एक चुनावी सभा में हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने जून 2003 में अपने ही विभाग के कुछ लोगों को पकड़ा। यह पुलिसकर्मी एक पुलिस चौकी और एक सुरक्षा शिविर पर हमले की साजिश रच रहे थे। पूछताछ से सामने आया चला कि इन्होंने लालपोरा और सोगाम में पुलिस थाने को ही कथित तौर पर आतंकी ठिकाना बना रखा था। लोन की हत्या की साजिश स्थानीय आतंकियों ने थाने में ही रची थी। उनका साथ सब इंस्पेक्टर सुलेमान और अब्दुल अहमद राथर, एएसआई गुलाम रसूल वानी, कांस्टेबल शाह हुसैन, फारुक अहमद अंद्राबी, सनाउल्लाह डार और अब्दुल अहद ने दिया था।
आतंकी बन वारदात करता रहा पुलिसकर्मी : 2012 में दो पुलिसकर्मियों की गिरफ्तारी से वर्दी में छिपे भेड़ियों की हकीकत सामने आ गई। पुलिसकर्मी कोड नाम से आतंकी बन वारदात को अंजाम देता रहा और हमलों की जिम्मेवारी लेता रहा। पुलिस कांस्टेबल अब्दुल रशीद शिगन और इम्तियाज ने वर्ष 2011 से लेकर अगस्त 2012 में श्रीनगर में 13 बड़े हमलों को अंजाम दिया। इन दोनों ने पुलिस के एक रिटायर्ड डीएसपी समेत पांच पुलिसकर्मियों की हत्या करने के अलावा तत्कालीन कानून मंत्री अली मोहम्मद सागर पर भी हमला किया था। इन्होंने पूर्व आतंकी शबनम की हत्या की थी और दो बार सीआरपीएफ जवानों पर भी हमले किए। शिगन कोड नाम उमर मुख्तार और जनरल उस्मान के नाम से हिंसा करता और मीडिया में जिम्मेदारी लेता था। पुलिस ने पांच पुलिसकर्मियों को इस मामले में बलि का बकरा बना दिया। इनको ऑपरेशन विशेष के लिए आतंकी संगठन में मुखबिर बनाने का जिम्मा सौंपा था।शिगन बच जाता, अगर वह इनके पकड़े जाने पर कुछ समय तक शांत रहता। आखिर पुलिस को उसकी खबर हो गई और वह पकड़ा गया।
गिरफ्तारी के समय वह बांडीपोर में तत्कालीन एसएसपी बशीर अहमद खान के सुरक्षा दस्ते में तैनात था। शिगन की गिरफ्तारी के बाद ही पांच पुलिसकर्मी छूटे। शिगन को 1998 में पुलिस में भर्ती के बाद आतंकी संबंधों के आरोप में निकाल दिया गया था। वह पीएसए के तहत बंदी भी रहा, लेकिन अदालत के हस्तक्षेप पर वह दोबारा पुलिस का हिस्सा बन गया। दो वर्ष पूर्व भी राज्य पुलिस ने गांदरबल और शोपियां में दो पुलिसकर्मियों शब्बीर मलिक और नजीर अहमद को आतंकियों के लिए हथियारों का बंदोबस्त करने के एक मामले में पकड़ा था।
पूरी फोर्स पर सवाल नहींः जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार आसिफ कुरैशी ने कहा कि तीन दशक में पुलिस के कई कर्मचारी नौकरी छोड़ आतंक की राह पर फिसल गए। संगठन में रहते हुए आतंकियों की मदद करने वाले भी पकड़े गए हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे चेहरे किसी भी संगठन में हो सकते हैं। इसलिए आप डीएसपी दे¨वदर सिंह या शिगन जैसे लोगों के कारण पूरी फोर्स पर सवाल नहीं उठा सकते। इन लोगों को भी पुलिस ने ही पकड़ा है। जम्मू कश्मीर पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर बताया कि भर्ती के समय प्रत्येक अधिकारी और जवान के अतीत, वर्तमान को खंगाला जाता है। अगर कोई लालच का शिकार हो जाए तो उनसे बचने के लिए स्क्रीनिंग की जाती है।