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Jammu Kashmir : 70 साल का दंश झेलकर मिली 'पहचान'

जम्मू-कश्मीर में 70 साल से अनुच्छेद-370 का दंश झेल रहे पश्चिमी पाकिस्तान से आए लोगों गोरखा और वाल्मीकि समाज के लोगों की जिंदगी एक साल में ही बदल गई है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sun, 02 Aug 2020 10:04 AM (IST)Updated: Sun, 02 Aug 2020 10:04 AM (IST)
Jammu Kashmir : 70 साल का दंश झेलकर मिली 'पहचान'
Jammu Kashmir : 70 साल का दंश झेलकर मिली 'पहचान'

जम्मू , सतनाम सिंह : जम्मू-कश्मीर में 70 साल से अनुच्छेद-370 का दंश झेल रहे पश्चिमी पाकिस्तान से आए लोगों, गोरखा और वाल्मीकि समाज के लोगों की जिंदगी एक साल में ही बदल गई है। हजारों परिवारों को पहचान मिली है। युवा पीढ़ी सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन भरने, संपत्ति खरीदने से लेकर हर सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। अन्य राज्यों में ब्याही इनकी बेटियों को भी अधिकार मिल गए हैं। दरअसल, अनुच्छेद-370 की आड़ में कश्मीर केंद्रित पाॢटयों की भद्दी सियासत में ये लोग पिसकर रह गए थे। अनुच्छेद-370 हटने के बाद डोमिसाइल कानून अस्तित्व में आया। इसके तहत 15 वर्ष स्थायी रहने वालों को डोमिसाइल मिल रहा है।

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जब देश का विभाजन हुआ तो उस समय पश्चिमी पाकिस्तान से हजारों लोग जम्मू, पंजाब व अन्य राज्यों में बस गए। इनमें से जो लोग जम्मू-कश्मीर में आए। उन्हें 70 साल तक संपत्ति रखने के अधिकार, राज्य सरकार में रोजगार, पंचायत, नगर पालिकाओं और विधानसभा चुनावों में भागीदारी, सरकारी शिक्षा संस्थानों में दाखिला जैसे कई अधिकारों से वंचित रखा गया। रिफ्यूजियों ने अपने हक के लिए दिल्ली तक प्रदर्शन किए। पश्चिमी पाकिस्तानी रिफ्यूजी एक्शन कमेटी के प्रधान लब्बा राम गांधी का कहना है कि रिफ्यूजियों के 21,200 परिवार पजीकृत हैं। डोमिसाइल मिलने के बाद आज हमारे बच्चे भी जम्मू-कश्मीर में नौकरियां करने के हकदार बन गए हैं। प्रधानमंत्री विशेष स्कॉलरशिप योजना के लिए आवेदन कर रहे है। वह कहते हैं कि रिफ्जूयियों में हमारे देश के दो प्रधानमंत्री भी हैं। इनमें डॉ. मनमोहन सिंह और इंद्र कुमार गुजराल शामिल हैं। साल 2004 में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था कि मैं जम्मू-कश्मीर में बसे रिफ्यूजियों को नागरिकता मिलनी चाहिए, लेकिन कश्मीर की पाॢटयों ने कुछ नहीं किया।

वाल्मीकि समाज को मिला हक :

वर्ष 1957 में जम्मू-कश्मीर की तत्कालीन सरकार ने पंजाब के गुरदासपुर से वाल्मीकि समाज के लोगों से जम्मू-कश्मीर में बसने का न्योता दिया। ये लोग सफाई का काम करते थे। वेतन, घर, नौकरी और बच्चों को बेहतर शिक्षा देने का वादा किया गया। आश्वासन पर 250 परिवार पंजाब छोड़कर जम्मू आ गए। अनुच्छेद-370 के कारण न ही स्थायी नागरिकता मिली और न सरकारी नौकरियां। इनके शिक्षित बच्चे दरबदर होकर रह गए। जम्मू शहर में विभिन्न क्षेत्रों में समाज के तीन हजार लोग रहते हैं। आज वे जम्मू-कश्मीर का नागरिक बनने से खुश हैं।

गोरखा समाज को पीड़ा से मिली आजादी :

गोरखा समुदाय डोगरा शासकों की सेनाओं में जांबाजी के लिए जाना जाता था। वर्ष 1857 महाराजा गुलाब सिंह की टुकड़ी में गोरखा सैनिकों की रेजीमेंट भी थी। समुदाय के कई सैनिक बड़े ओहदों तक पहुंचे। बड़े सम्मान भी मिले। गोरखा समाज की अध्यक्ष करुणा छेत्री कहती हैं कि देश आजाद होने के बाद समुदाय की अनदेखी शुरू हो गई। स्थायी नागरिकता से लेकर हर क्षेत्र में समुदाय को प्रताडि़त किया गया। गत वर्ष पांच अगस्त को 70 साल की पीड़ा से आजादी मिली है। समुदाय की जम्मू में गोरखा कॉलोनी भी है। आज इनकी आबादी करीब 50 हजार है।

युवा बोले, जो बीत गया सो बीत गया :

जम्मू जिला की तहसील खौड़ के नीरज कुमार शर्मा डोमिसाइल पाकर खुश है। वह कहते हैं कि मैंने बीकॉम, एमकॉम किया है। पहले मैं नौकरी नहीं कर सकता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। मैंने अकाउंट असिस्टेंट पद के लिए आवेदन किया है। 70 साल के बाद हमें इंसाफ मिला है। एक साल पहले तक तो लगता था कि पढ़ाई किसी काम नहीं आएगी, लेेकिन अब उम्मीद बंध गई है। जम्मू विश्वविद्यालय में पढ़ रहे राजेश ने कहा कि उन्हेंं महसूस हो रहा है कि वह अब सम्मानजनक जिंदगी जी सकेंगे।

वाल्मीकि समाज की बेटी सोनाली सीए बनकर जम्मू-कश्मीर की सरकारी नौकरी में उच्च पद को पाना चाहती है। इसके लिए वह अपने सपने को साकार करने में जुट गई है। क्योंकि डोमिसाइल प्रमाणपत्र मिलने के बाद अब जम्मू-कश्मीर की कोई भी नौकरी उससे दूर नही रही। सोनाली का कहना है कि जो बीत गया सो बीत गया। अब नए जमाने की बात की जाए। हम पढ़ लिख गए हैं, अब हमें भी अपने तरीके से जीने, कुछ बनने का अधिकार है।


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