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J&K Darbar Move: खजाने पर भारी सरकार के दरबार की खातिरदारी

राज्य की दोनों राजधानियों में कर्मचारियों को ठहराने खाने और सुरक्षा के तामझाम पर खर्च होने से खजाने पर बोझ पड़ता है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Thu, 25 Apr 2019 03:30 PM (IST)Updated: Thu, 25 Apr 2019 03:30 PM (IST)
J&K Darbar Move: खजाने पर भारी सरकार के दरबार की खातिरदारी
J&K Darbar Move: खजाने पर भारी सरकार के दरबार की खातिरदारी

जम्मू, राज्य ब्यूरो। ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में सरकार के दरबार की खातिरदारी राज्य के खजाने पर भारी पड़ रही है। महंगाई के कारण हर साल दरबार मूव पर खर्च में बढ़ोतरी हो रही है। साल में दो बार दरबार मूव का खर्च पिछले नौ वर्षो में दो सौ करोड़ रुपये से बढ़कर छह सौ करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। 11 दिनों के बाद श्रीनगर से दरबार काम करने लगेगा। ऐसे में इस समय श्रीनगर में सरकारी कर्मचारियों को ठहराने के लिए युद्ध स्तर पर कार्रवाई की जा रही है। जम्मू में रिकॉर्ड का पैकअप हो रहा है, जबकि श्रीनगर में कर्मचारियों के रहने और खाने का बंदोबस्त किया जा रहा है।

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सरकार का दरबार जम्मू में 26 अप्रैल को बंद होकर श्रीनगर में छह मई से काम करने लगेगा। राज्य की दोनों राजधानियों में कर्मचारियों को ठहराने, खाने और सुरक्षा के तामझाम पर खर्च होने से खजाने पर बोझ पड़ता है। इस समय भी जम्मू से श्रीनगर जा रहे सचिवालय के 35 विभागों, अन्य मूव कार्यालयों, पुलिस विभाग के दस हजार से अधिक अधिकारियों व कर्मचारियों को सौ से अधिक होटलों, निजी मकानों और सरकारी क्वार्टरों में ठहराने की व्यवस्था की जा रही है। श्रीनगर में राज्य सचिवालय, सरकारी क्वार्टरों की सफाई, रंग रोगन और मरम्मत कार्य चल रहा है। श्रीनगर नगर निगम के कर्मी शहर में सफाई व्यवस्था को दुरुस्त बनाने और स्ट्रीट लाइट ठीक करने के साथ ही सड़कों की मरम्मत की मुहिम में जुटे हैं।

इस्टेट विभाग के निदेशक तारिक गनई ने बताया कि दरबार मूव की प्रक्रिया को कामयाब बनाने की मुहिम जारी है। पूरी कोशिश की जा रही है कि श्रीनगर में कर्मचारियों को कोई मुश्किल पेश न आए।

दरबार मूव का स्वरूप बदलने की दिशा में नहीं हो रहा काम

डिजिटलाइजेशन के दौर में दरबार मूव के स्वरूप को बदलने के नाम पर जम्मू कश्मीर में कुछ खास नहीं हो रहा है। यह कंप्यूटरों को लाने और ले जाने की प्रथा तक ही सीमित है। दरबार मूव की प्रक्रिया 147 साल पहले महाराजा रणबीर सिंह के समय में शुरू हुई थी। क्षेत्रवाद की राजनीति के चलते कश्मीर केंद्रित सरकारों ने इस व्यवस्था को बरकरार रखा है। कश्मीर में आतंकवाद के चलते कई बार बिगड़े हालात सचिवालय के कामकाज को भी प्रभावित करते हैं। दरबार मूव कश्मीर की पार्टियों को रास आ रहा है। वर्ष 2018 में दरबार को श्रीनगर से जम्मू लाने की प्रक्रिया के तहत पहली बार कंप्यूटर नहीं लाए गए थे। जम्मू सचिवालय के लिए नए कंप्यूटर खरीद कर कंप्यूटरों का स्थायी बुनियादी ढांचा विकसित किया गया है। आइटी विभाग के प्रभारी सौगात विश्वास के निर्देश पर विभागों को हार्ड ड्राइव व पैन ड्राइव दिए गए हैं ताकि डिजिटल रिकॉर्ड को श्रीनगर ले जाया जाए।

दरबार मूव बंद करने की उठ रही जोरशोर से मांग

भविष्य की जरूरतों को देखते हुए दरबार मूव की प्रथा बंद करने की मांग जम्मू में काफी समय से उठ रही है। डोगरा सदर सभा व नेशनल पैंथर्स पार्टी समेत कई संगठन यह मांग बुलंद कर रहे हैं। उनकी मांग है कि राज्य की दोनों राजधानियों में स्थायी सचिवालय स्थापित हों, यहां पर कर्मचारी पूरा साल स्थायी तौर पर काम करें। उनका तर्क है कि विभाग अपनी अपनी जगहों पर काम करे और सिर्फ मुख्य सचिव व प्रशासनिक सचिव ही मूव कर सुनिश्चित करें कि कामकाज सामान्य रूप से चल रहा है। पैंथर्स पार्टी के प्रधान बलवंत सिंह मनकोटिया का कहना है कि वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौर में अधिकारी अपने कार्यालय में बैठकर दूसरे शहरों में अधिकारियों व कर्मचारियों से बैठकें कर कामकाज की निगरानी कर सकते हैं। अगर यह नई व्यवस्था बनती है तो इससे सालाना करोड़ों रुपये खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। होटल व निजी मकान किराये पर लेने की जरूरत ही नहीं रहेगी।


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