Jammu Kashmir: मेडिकल कालेजों के फैकल्टी के प्राइवेट प्रैक्टिस पर प्रतिबंध को लेकर मंथन
जीएमसी के एक वरिष्ठ फैकल्टी सदस्य ने बताया कि जम्मू-कश्मीर में पहले से ही उनका वेतनमान कम है। कई पड़ोसी राज्यों में वेतनमान अधिक है। अगर सरकार वेतनमान बढ़ाती है और निजी प्रेक्टिस पर प्रतिबंध लगाती है तो इससे सभी के पास दो में एक से एक विकल्प होगा।
जम्मू, रोहित जंडियाल: जम्मू-कश्मीर के मेडिकल कालेजों में नियुक्त फैकल्टी की निजी प्रेक्टिस पर प्रतिबंध को लेकर एक बार फिर से मंथन शुरू हो गया है। हाईकोर्ट के निर्देशों पर बनी विशेषज्ञों की समिति इसकी संभावना तलाश रही है। मकसद मरीजों को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध करवाना है। समिति अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपेगी।
हाईकोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका पर मेडिकल कालेजों में सुविधाओं का जायजा लेने के लिए कोर्ट ने समिति गठित की थी। समिति पीजीआई चंडीगढ़ के पूर्व डायरेक्टर डा. योगेश चावला की अध्यक्षता में बनी। इसमें पीजीआई के मेडिकल सुपरिटेंडेंट, जीएमसी जम्मू के पूर्व प्रिंसिपल डा. एचएल गाेस्वामी और आचार्य श्री चंद्र मेडिकल कालेज जम्मू के पूर्व प्रिंसिपल डा. आरपी कुडियार शामिल हैं।
पीजीआई के मेडिकल सुपरिटेंडेंट इस बार समिति में नहीं आए हैं। लेकिन समिति अपना काम कर रही है। समिति ने गत सोमवार को राजकीय मेडिकल कालेज डोडा में सुविधाओं का निरीक्षण किया था। वहीं मंगलवार को समिति ने राजकीय मेडिकल कालेज जम्मू में भी ढांचागत सुविधाओं के अलावा फैकल्टी के बारे में भी जानकारी ली। इससे पहले समिति मेडिकल कालेज कठुआ का भी निरीक्षण कर चुकी है।
समिति इस पर मंथन कर रही है कि जम्मू-कश्मीर में मरीजों को किस तरह से बेहतर सुविधाएं मिल सकें। इसीलिए इसकी संभावना भी तलाश की जा रही है कि अगर फेक्ल्टी सदस्यों की निजी प्रेक्टिस पर प्रतिबंध लगा दिया जाए तो इसका क्या असर होगा। सूत्रों का कहना है कि समिति के सदस्य सभी मेडिकल कालेजों में काम का समय सुबह आठ बजे से लेकर शाम को पांच बजे तक करने और फैकल्टी सदस्यों की निजी प्रेक्टिस पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश कर सकती है। इसके लिए फैकल्टी सदस्यों के वेतन में वृद्धि करने का प्रस्ताव भी दिया जा सकता है। अगर फैकल्टी सदस्यों का वेतन बढ़ता है तो इससे उन्हें निजी प्रेक्टिस पर प्रतिबंध पर भी कोई ऐतराज नहीं होगा। इस पर उनकी राय भी ली जा ारही है।
जीएमसी के एक वरिष्ठ फैकल्टी सदस्य ने बताया कि जम्मू-कश्मीर में पहले से ही उनका वेतनमान कम है। कई पड़ोसी राज्यों में वेतनमान अधिक है। अगर सरकार वेतनमान बढ़ाती है और निजी प्रेक्टिस पर प्रतिबंध लगाती है तो इससे सभी के पास दो में एक से एक विकल्प होगा। जो सरकारी नौकरी करना चाहता है,, वे नौकरी करे और जो नहीं करना चाहता , वे निजी प्रेक्टिस करे। इस समय हालात ऐसे हैं कि जो नौकरी कर रहे हैं, वे ही निजी प्रेक्टिस कर रहे हैं। इस कारण भी नौकरी के साथ इंसाफ नहीं होता। इस समय मेडिकल कालेजों में इक्का-दुक्का डाक्टर ही ऐसे हैं जो कि निजी प्रेक्टिस नहीं करते हैं। पूर्व में भी डाक्टरों की निजी प्रेक्टिस पर प्रतिबंध लगाने का कई बार प्रयास हुआ लेकिन अधुरे प्रबंधों के कारण प्रतिबंध लगाना संभव नहीं हो पाया।
इवनिंग क्लीनिक खोले पर सफल नहीं हुए: कुछ वर्ष पहले सरकार ने मरीजों की सुविधा के लिए मेडिकल कालेज जम्मू व सहायक अस्पतालों में इवनिंग क्लीनिक खोले। शाम के समय वरिष्ठ डाक्टर बैठक कर मरीजों की जांच करते थे लेकिन यह अधिक देर तक नहीं चल पाया। कुछ महीनों में ही यह प्रयास विफल हो गया और क्लीनिक बंद हो गए। अब दो वर्ष में तीन नए मेडिकल कालेज खुले हैं। ऐसे में फिर से फैकल्टी सदस्यों की निजी प्रेक्टिस पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास हो सकता है।