एक साल में बदल गई 70 साल की सियासत, जम्मू-कश्मीर में थम चुका सेल्फ रूल, रायशुमारी के एजेंडे की सियासत का शोर
जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने पर कश्मीर में तिरंगा थामने वाला नहीं मिलेगा की धमकी देने वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती को भी कोई याद नहीं करता।
नवीन नवाज, श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर में 70 साल से चली आ रही सियासत बीते एक साल में पूरी तरह बदल गई है। अब स्थानीय राजनीतिक दल कश्मीर मसले को हल करने की बात नहीं करते। मतलब साफ है, अब कश्मीर उनके लिए कोई विवाद नहीं रहा है। स्वायत्तता, सेल्फ रूल, रायशुमारी और आजादी के एजेंडे पर चलने वाली सियासत का शोर थम चुका है। ऐसा नहीं है कि केंद्र शासित प्रदेश में सियासत खत्म हो चुकी है, लेकिन मुद्दे बदल गए हैं। यह संभव हुआ है पांच अगस्त 2019 को केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को लागू करने के बाद। यह सब हुआ अनुच्छेद-370 के उन सभी प्रावधानों को समाप्त करने से, जो जम्मू-कश्मीर को भारत में ही एक अलग राष्ट्र बनाते थे।
कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ प्रो. हरि ओम ने कहा कि जब भी जम्मू-कश्मीर को लेकर सियासी चर्चा होती थी तो कश्मीर समस्या के समाधान के लिए कोई नेशनल कांफ्रेंस का समर्थन करते हुए स्वायत्तता लागू करने पर जोर देता था तो कुछ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के सेल्फ रूल को सही मानता था। पाकिस्तान के एजेंडे को हवा देने वाली अलगाववादी सियासत ही जम्मू-कश्मीर मेें हावी थी। इससे आतंकवाद को भी संरक्षण मिलता था। इसी के चलते जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र को सही तरीके से फलने-फूलने नहीं दिया। वहीं, आज कोई इनकी बात नहीं करता। वहीं, स्वायत्तता को ही जम्मू-कश्मीर समस्या का हल मानने वाले नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुल्ला अब पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली की बात कर रहे हैं।
वहीं, जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने पर कश्मीर में तिरंगा थामने वाला नहीं मिलेगा की धमकी देने वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती को भी कोई याद नहीं करता। वह इस समय जन सुरक्षा अधिनियम के तहत कैद हैं। उनके खास सियासी सिपहसालार भी उनसे किनारा कर चुके हैं। सज्जाद गनी लोन और पूर्व नौकरशाह डॉ. शाह फैसल जिस तेजी से अलगाववाद की सियासत के सहारे ऊपर पहुंचे थे, उतने ही नीचे गिरे। इसके अलावा आतंकियों को शहीद बताने वाले पूर्व विधायक इंजीनियर रशीद आतंकी फंडिंग के सिलसिले में जेल में बंद हैं।
अब घरों से निकलने से भी कतराते हैं अलगाववादी : अपने एक इशारे पर कश्मीर में जिंदगी की रफ्तार थामने का दावा करने वाले कट्टरपंथी अलगाववादी सैयद अली शाह गिलानी और उदारवादी हुर्रियत गुट के प्रमुख मीरवाइज मौलवी उमर फारूक एंड कंपनी इस समय मुंह छिपाती फिर रही है। पुलिस ने कोई पाबंदी नहीं लगाई है। इसके बावजूद वह अपने घरों से निकलने से कतराते रहे हैं, क्योंकि डर है कि कहीं लोग बीते 30 सालों के दौरान कश्मीर में जगह-जगह बने कब्रिस्तानों का हिसाब न मांग लें।
भाजपा को सबसे ज्यादा फायदा : जम्मू कश्मीर की सियासत में आए इस बदलाव के बीच अगर कोई फायदे में नजर आता है तो वह है भाजपा। कश्मीरियों में उसके प्रति नजरिया बदला है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिसे जिहादी तत्व अपना सबसे बड़ा दुश्मन कहते हैं, उससे कश्मीरी मुस्लिमों का बढ़ता समन्वय उन लोगों के मुंह पर तमाचा है जो कहते हैं कि कश्मीरी मुस्लिम भारत नहीं पाकिस्तान के साथ जाना चाहते हैं।
कश्मीर में आज साफ दिखता है असर : कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ सलीम रेशी ने कहा, उमर अब्दुल्ला ने अनंतनाग में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मौजूदगी में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि कश्मीर मसला रोजगार या पैकेज का मसला नहीं है, यह सियासी मसला है। वह जो सियासी हल चाहते थे, सभी जानते हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह ने सियासी हल ही निकाला और आज उसका असर आप देख सकते हैं।
आज 4जी, विकास और पूर्ण राज्य के दर्जे की हो रही मांग : कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार अहमद अली फैयाज ने कहा कि हुर्रियत कांफ्रेंस हो, नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी या फिर अन्य लोग, आज सभी 4जी, विकास और जम्मू-कश्मीर के लिए पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली की मांग कर रहे हैं। वाकई, 70 साल से चली आ रही सियासत एक साल में पूरी तरह बदल गई।