जम्मू-कश्मीर: आतंकी संगठन अब युवाओं के खिलाफ नशे को बना रहे हैं हथियार
जम्मू-कश्मीर नशे की राजधानी बनता जा रहा है। आतंकी संगठन युवाओं को नशे के गर्त में धकेल रहे हैं। आतंकी संगठनों और सीमापार बैठे उनके आकाओं ने राज्य को नशे की मंडी में तब्दील किया
जम्मू, राज्य ब्यूरो। जम्मू-कश्मीर नशे की राजधानी बनता जा रहा है। आतंकी संगठन युवाओं को नशे के गर्त में धकेल रहे हैं। पहले आतंकी संगठनों और सीमापार बैठे उनके आकाओं ने राज्य को नशे की मंडी में तब्दील किया और फिर नशे के बाजार के तौर पर। यही वजह है कि नशेडि़यों की एक जमात पैदा हो गई है। सीमापार से चल रहे नशे के कारोबार पर शिकंजा कसने के कुछ प्रयास हुए भी हैं पर इस कुचक्र में फंस चुके युवाओं को बाहर निकाल लाने की तैयारी अभी सही से शुरू ही नहीं हो पाई है।
इस राह में सबसे बड़ा रोड़ा है संसाधनोे की कमी। केंद्र सरकार द्वारा इस मद में की जाने वाली वित्तीय मदद भी नाकाफी साबित हो रही है। बीते पांच सालों में केंद्र सरकार ने राज्य को नशा निषेध (एंटी ड्रग एब्यूज) कार्यक्रम के लिए मात्र 76 लाख रुपये की ही सहायता दी है। इस वर्ष भी अभी तक केंद्र ने नशा निषेध कार्यक्रम के तहत कोई सहायता नहीं दी है। वहीं महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश को क्रमश: 148 व 154 लाख रुपये जारी किए जा चुके हैं।
इस योजना के तहत केंद्र सरकार नशे की रोकथाम के लिए नशा उन्मूलन केंद्र संचालित करने, नशे के कारोबारियों के खिलाफ अभियान चलाने के लिए वित्तीय मदद प्रदान करता है। इसके तहत राज्य सरकार का स्वास्थ्य विभाग व पुलिस स्वयंसेवी संगठनों के साथ मिलकर कई तरह के अभियान चलाती है। अभियान से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि वर्ष 2018 में केंद्र ने राज्य को मात्र 20 लाख रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की दी थी जबकि वर्ष 2017 में एक भी पैसा नहीं मिला था। उससे पहले वर्ष 2016 में भी नशे के खिलाफ लड़ाई के लिए केंद्र ने राज्य को 20 लाख रुपये ही दिए थे। लेकिन वर्ष 2016 में उत्तर प्रदेश, मणिपुर, कर्नाटक को क्रमश: 296 लाख, 276 लाख और 393 लाख रुपये की राशि दी गई है।
वर्ष 2015-16 के दौरान केंद्र ने प्रिवेंशन ऑफ ड्रग एंड सबस्टांस एबयूज स्कीम के तहत 36.15 करोड़ की राशि जारी की गई थी और इसमें से जम्मू कश्मीर को सिर्फ 4.97 लाख हीमिले थे।
अब नशे को हथियार बना रहे आतंकी
आतंकियों ने नशे के हथियार से युवा पीढ़ी को निशाना बनाना शुरू किया है। सुरक्षा एजेंसियों ने माना कि आतंकी संगठन और सीमापार बैठे उनके आका नई पीढ़ी को नशे के गर्त में धकेलने की साजिश रच रहे हैं। केंद्रीय एजेंसियों की जांच में हिजबुल और अन्य संगठनों की इसमें खुली भागेदारी भी दिखी है। राज्य सरकार नशे के खिलाफ अभियान चलाने का एलान करती है पर पर्याप्त संसाधनों के अभाव में इसके शिकंजे में फंस चुके युवाओं का बाहर निकालने की कोई ठोस रणनीति नहीं बन पा रही है।
मात्र एक पुनर्वास केंद्र
यहां यह बताना असंगत नहीं होगा कि जम्मू कश्मीर में नशेड़ियों के पुनर्वास के लिए एक ही समेकित पुनर्वास केंद्र है। इसके भरोसे नशे आतंक के खिलाफ लड़ाई जारी रख पाना मुश्किल है। उसमें भी सुविधाओं का अभाव है और अकसर कई तरह की चुनौतियां झेलनी पड़ती हैं।
महामारी की तरह फैल रहा नशा
जम्मू कश्मीर में नशे की लत एक महामारी की तरह फैल रही है। मंगलवार को दक्षिण कश्मीर में दो युवकों की नशे के ओवरडोज से मौत हुई है। रोजाना पुलिस नशीले कैप्सूल, प्रतिबंधित दवाएं, भुक्की, चरस और हेरोइन की बड़ी खेप बरामद कर रही है। सिर्फ कश्मीर घाटी में ही इस साल करीब 180 लोगों को पुलिस ने एनडीपीएस अधिनियम के तहत गिरफ्तार भी किया है।
हुर्रियत भी आया नशे के खिलाफ
हालात की भीषणता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अलगाववादी संगठन हुर्रियत के नेता मीरवाईज मौलवी उमर फारुक को जामिया मस्जिद के मंच से लोगों से अपील करनी पड़ी कि वह अपने बच्चों को नशे के जाल से दूर रखें। उन्होंनें लोगों से आग्रह किया है कि सभी मिलकर नशे के खिलाफ प्रशासन का भी सहयोग करें और अगर किसी जगह उन्हें कोई नशे का कारोबारी नजर आता हैतो उसके बारे में तुरंत पुलिस को सूचित करें।
कश्मीर के सबसे बड़े अस्पताल एसएमएचएस अस्पताल में बने समेकित पुनर्वास केंद्र में बीते वर्ष 6476 नशेडियों ने इलाज के लिए संपर्क किया था। इनमें से 755 को सेंटर में भर्ती किया गया । कश्मीर में नशेडियों में 35 प्रतिशत हेरोइन का सेवन करते हैं जबकि चरस का सेवन करने वाले 30 प्रतिशत हैं। अन्य नशेड़ी प्रतिबंधित दवाओं,शराब व दूसरे नशों के आदि हैं।