Move to Jagran APP

सरकार की महत्त्वाकांक्षी उदय योजना भी जम्मू-कश्मीर की बिजली सप्लाई व्यवस्था को नहीं सुधार पाई

प्राकृतिक साधनों से मालामाल और केन्द्र से दूसरे राज्यों के मुकाबले अधिक वित्तीय सहायता मिलने के बाद भी जम्मू-कश्मीर विकास में पिछड़ रहा है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 06 Sep 2018 02:08 PM (IST)Updated: Thu, 06 Sep 2018 02:08 PM (IST)
सरकार की महत्त्वाकांक्षी उदय योजना भी जम्मू-कश्मीर की बिजली सप्लाई व्यवस्था को नहीं सुधार पाई
सरकार की महत्त्वाकांक्षी उदय योजना भी जम्मू-कश्मीर की बिजली सप्लाई व्यवस्था को नहीं सुधार पाई

जम्मू, राहुल शर्मा। केंद्र सरकार की महत्त्वाकांक्षी उदय योजना भी जम्मू-कश्मीर की खस्ताहाल बिजली सप्लाई व्यवस्था को सुधार नहीं पाई है। जम्मू-कश्मीर का नाम भी देश के उन आठ राज्यों में शामिल है, जिनका कुल ट्रांसमिशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन लॉस उदय में शामिल होने के बाद घटने के बजाय और बढ़ गया है। शर्मनाक बात यह है कि जम्मू-कश्मीर 61.6 प्रतिशत के साथ पहले स्थान पर है।

loksabha election banner

देश भर में अब तक कुल 26 राज्य ऋण पुनर्गठन योजना उदय से जुड़ चुके हैं। ट्रांसमिशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन लॉस का उच्च प्रतिशत इस बात का प्रतीक है कि जम्मू-कश्मीर में बिजली आपूर्ति और वितरण का बुनियादी ढांचा अभी भी बुरी तरह चरमराया हुआ है। यही नहीं इसके कारण बिजली खरीद लागत और राजस्व में अंतर भी बढ़ गया है।

तीन सालों में 0.14 प्रतिशत का सुधार

जम्मू-कश्मीर ने उदय में शामिल होने के लिए मार्च 2016 में केंद्र सरकार से समझौता किया था। समझौते के दौरान राज्य में ट्रांसमिशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन नुकसान 61.74 प्रतिशत के करीब था। अभी तीसरा वित्तीय वर्ष चल रहा है और इस अविध के दौरान इस नुकसान में मात्र 0.14 फीसद का मामूली सुधार ही हुआ। हालांकि पूर्व भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार में बिजली मंत्री रहे स्पीकर निर्मल सिंह ने दावा किया था कि वर्ष 2019 तक इस नुकसान को 15 फीसद तक ले जाया जाएगा। परंतु मौजूदा स्थिति को देख यह स्पष्ट हो जाता है कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अभी बहुत कुछ करना है।

जम्मू-कश्मीर को उदय से जोड़ने का उद्देश्य

बिजली सचिव पीके पुजारी ने जम्मू-कश्मीर को उदय में शामिल करते हुये ये घोषणा की थी कि इस समझौते के बाद हम देश में डिस्कॉम के कुल कर्ज के 50 प्रतिशत पर काबू पाने में सक्षम होंगे। उदय योजना के लिए समझौते पर हस्ताक्षर से जम्मू कश्मीर को सस्ती दरों पर कर्ज मिल सकेगा। यही नहीं सीपीएसयू के करीब 3538 करोड़ रुपये कर्ज को खत्म करने में मदद मिलेगी। ब्याज पर आने वाले सालाना 1200 करोड़ रुपये खर्च भी कम होगा। यही नहीं समझौते की अवधि के दौरान यदि ट्रांसमिशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन में 15 प्रतिशत और 4 प्रतिशत कम होता तो उससे भी करीब 7150 करोड़ रुपये की बचत होती।

कॉरपोरेशन नहीं बनने से हो रहा नुकसान

राज्य खजाने के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहे पावर डेवलपमेंट डिपार्टमेंट को जवाबदेह बनने के लिए पूर्ववर्ती सरकार ने पीडीडी को तीन कंपनियों स्टेट ट्रांसमिशन कंपनी (ट्रांस्को), स्टेट डिस्ट्रिब्यूशन कंपनी (डिस्काम) और ट्रेडको में बदलने की कैबिनेट मंजूरी तो दी है, लेकिन इसे अमल में नहीं लाया गया। राज्य में पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार बनने पर उपमुख्यमंत्री डॉ. निर्मल सिंह ने पुरानी देनदारी को समाप्त करने के लिए नई स्कीम उज्ज्वल डिस्काम अशोरेंस योजना (उदय) शुरू करने की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक इस पर अमल न हो पाने के कारण विभाग पर वास्तविक देनदारी के साथ 1266.54 करोड़ का ब्याज बढ़ता जा रहा है।

हर महीने 18 फीसद पड़ रहा ब्याज

राज्य सरकार बिजली की मांग को पूरा करने के लिए 70 फीसद बिजली बाहर से खरीद रही है। इसकी खरीदारी पर राज्य बजट का 8 फीसद से अधिक खर्चा हो जाता है। इस पर भी राजस्व वसूली का निर्धारित लक्ष्य पूरा न कर पाने के कारण विभाग नियमित बिजली बिल की अदायगी नहीं कर पाता। यदि विभाग तीन दिन के भीतर खरीदी गई बिजली का भुगतान कर देता है तो उसे दो फीसद छूट मिलती है। एक महीने बाद देनदारी पर 18 फीसद ब्याज लग जाता है, जिसके कारण यह देनदारी हर माह करोड़ों में बढ़ती जाती है।

जेके बैंक 9.15 फीसद पर देगा ऋण

जम्मू-कश्मीर सरकार स्टेट लोड डिस्पैच सेंटर विंग को कॉरपोरेशन में बदलने की तैयारी कर रही है। कॉरपोरेशन बनने पर यही विंग पावर ट्रेडिंग कंपनियों से बिजली खरीदने और बेचने का काम करेगा। जेके बैंक ने कॉरपोरेशन बनने पर 9.15 फीसद दर पर बिजली बिल चुकता करने के लिए ऋण देने की मंजूरी दे दी है। यदि ऐसा होता है तो इससे राज्य को हर माह नौ फीसद तक लाभ होगा। इससे आर्थिक स्थिति सुधरेगी।

पड़ोसी राज्यों से पिछड़ रहा जम्मू-कश्मीर

प्राकृतिक साधनों से मालामाल और केन्द्र से दूसरे राज्यों के मुकाबले अधिक वित्तीय सहायता मिलने के बाद भी जम्मू-कश्मीर अपने पड़ोसी राज्यों के मुकाबले विकास में पिछड़ रहा है। जम्मू-कश्मीर की तुलना यदि हिमाचल से करें तो साधनों के रूप से दोनों पड़ोसी राज्यों में बिजली उत्पादन करने की क्षमता एक जैसी है। दोनों में ही 20-20 हजार मैगावाट की बिजली परियोजनाओं की निशानदेही की गई थी।

हिमाचल ने इनसे 7 हजार मैगावाट का लक्ष्य हासिल करते हुये और कई अन्य परियोजनाओं के निर्माण कार्य शुरू किए हैं। यही नहीं बिजली की घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ हिमाचल प्रदेश अतिरिक्त बिजली बेच अपनी आय में वृद्धि भी कर रहा है।

वहीं अगर बात जम्मू-कश्मीर की करें तो हम निजी तौर पर 2 हजार मैगावाट बिजली उत्पादन करने का लक्ष्य भी प्राप्त नहीं कर पाये हैं। और तो और बिजली की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हम 70 प्रतिशत बिजली बाहर से खरीद रहे हैं। बिजली की किल्लत और कुछ अन्य कारणों से जम्मू-कश्मीर में मध्य और बड़े 86 औद्योगिक संस्थान स्थापित हो पाए हैं। हिमाचल में ऐसे संस्थानों की संख्या 600 से भी अधिक हो गई है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.