Jammu and Kashmir Reorganization Day: सूबे के पुनर्गठन का पूरा हुआ साल, क्रांतिकारी कदम से अवाम खुशहाल
जम्मू कश्मीर और लद्दाख के केंद्रशासित प्रदेश के तौर पर अस्तित्व में आने का एक साल पूरा हो चुका है। इस दौरान सरकारों के फैसलों से सूबे का विलय न सिर्फ संभव हो पाया बल्कि यहां के लोगों में खुशहाली लाने का माध्यम भी बना है।
प्रो हरि ओम। सूबे को लेकर मोदी सरकार के ऐतिहासिक फैसलों के पीछे चार कारण पहली नजर में समझ में आते हैं। सबसे महत्वपूर्ण वजह यह थी कि चीन और पाकिस्तान से सटे संवेदनशील जम्मू कश्मीर को पूरी तरह से देश के साथ जोड़ना। अर्थव्यवस्था में अभूतपूर्व बदलाव आने की उम्मीद है। जम्मू कश्मीर और लद्दाख भारत के अभिन्न अंग हैं। प्रदेश सभी आठ सौ केंद्रीय कानूनों के दायरे में आ चुका है। यहां के लिए प्रासंगिकता खो चुके सभी कानून समाप्त किए जा चुके हैं या फिर उनमें संशोधन हो चुका है। नए कानून के अस्तित्व में आने के बाद लाखों लोगों को डोमिसाइल का हक मिला है। अब 26 अक्टूबर 2020 को नए भूमि स्वामित्व कानून लागू होने से इस लक्ष्य को पूरी तरह पा लिया गया है। अब कृषि भूमि को छोड़ कर देश का कोई भी व्यक्ति यहां बस सकता है और व्यापार के लिए जमीन खरीद सकता है।
दूसरा कारण था, कश्मीर से आतंकवाद और अलगाववाद से प्रभावी तरीके से निपटना। सुरक्षाबलों और केंद्रीय एजेंसियों के संयुक्त प्रयास से अलगाववाद की कमर टूट चुकी है। उनके राष्ट्रविरोधी एजेंडे पर करारा प्रहार किया जा रहा है। इसका ही असर है कि भटके युवा अब हथियार छोड़ मुख्यधारा में लौट रहे हैं। तीसरा मुख्य लक्ष्य था, लद्दाख की सत्तर साल पुरानी कश्मीर से आजादी की मांग। इस फैसले से वहां कुछ लोगों को छोड़कर सब खुश हैं और विकास का एजेंडा तेजी से आगे बढ़ रहा है। सड़कों और पुलों के निर्माण के अलावा स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव की तैयारी चल रही है।
जम्मू कश्मीर के साथ भारत को जोड़ने की प्रक्रिया पूरी हुई है। इस पूरे मामले का अहम पहलू प्रोत्साहित करने वाला है। जम्मू संभाग, के लोगों, पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों, गोरखा और विस्थापित हंिदूुओं समेत समाज के अन्य वर्गो के लोगों ने जम्मू कश्मीर में बदलावों का स्वागत किया है। इस बीच लद्दाख के लोगों ने दलगत राजनीतिक से ऊपर उठकर केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि भारतीय संविधान के छठे अनुच्छेद को लागू किया जाए ताकि स्थानीय लोगों के भूमि और नौकरियों के अधिकारों की रक्षा हो सके।
अभी भी कुछ कश्मीरी सियासी दल अलगाववाद के मसले पर सियासत को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। कभी चीन और कभी गुपकार घोषणापत्र के बहाने शांति भंग करने की साजिशें जिंदा हैं। सत्ता की चाबी पर दशकों तक कुंडली मारे बैठे रहे परिवारों के लिए अब निश्चिततौर पर आसान नहीं होगा। केंद्रीय कानून लागू होने से भविष्य में उनके स्वार्थ और डर का एजेंडा विफल रहने वाला है। इसीलिए आवश्यक है कि अब ऐसे तत्वों को पोषण के किसी प्रयास को केंद्र सरकार को कठोरता से झटक देना चाहिए तभी जम्मू कश्मीर विकास की नई डगर पर तेजी से छलांग लगा सकेगा।
[पूर्व डीन, सामाजिक विज्ञान विभाग, जम्मू विश्वविद्यालय]