Move to Jagran APP

अच्छे दिनों की उम्मीद में टूट रहे सपने, वीरान सीमा की फिजा में बारूद की गंध

वीरान सीमा की फिजा में बारूद की गंध है। अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे रिहायशी इलाकों में दहशत भरी शांति डरा रही है। ऐसे में आदमी तो क्या माल मवेशी भी सीमा की ओर जाने से कतरा रहे हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 25 May 2018 08:48 AM (IST)Updated: Sat, 26 May 2018 09:11 AM (IST)
अच्छे दिनों की उम्मीद में टूट रहे सपने, वीरान सीमा की फिजा में बारूद की गंध
अच्छे दिनों की उम्मीद में टूट रहे सपने, वीरान सीमा की फिजा में बारूद की गंध

जम्मू, जेएनएन। वीरान सीमा की फिजा में बारूद की गंध है। अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे रिहायशी इलाकों में दहशत भरी शांति डरा रही है। ऐसे में आदमी तो क्या माल मवेशी भी सीमा की ओर जाने से कतरा रहे हैं। यह मंजर नौ दिन तक पाकिस्तान की गोलाबारी झेलने वाले सीमांत क्षेत्र में एक दिन की शांति का है। लोग सुरक्षित जगहों पर पलायन कर गए हैं और गांव, घर खाली पड़े हुए हैं।

loksabha election banner

बुधवार दोपहर बाद से जम्मू संभाग में करीब दो सौ किलोमीटर अंतरराष्ट्रीय सीमा पर गोले नहीं गिरे हैं। ऐसे हालात में पाकिस्तान की नीयत पर शक करने वाले करीब डेढ़ लाख सीमांतवासी अपने घरों से दूर रिश्तेदारों के घरों या जिला प्रशासन की ओर से बनाए गए राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं। जब तक दोनों देशों के बीच फ्लैग मी¨टग में गोलाबारी बंद करने का फैसला नहीं होता है तब तक वे अपने घरों में नहीं लौटेंगे।

ऐसे हालात में जम्मू जिले के बिश्नाह के अरनिया इलाके में वीरवार को भुतहा सन्नाटा था। मंदिर भी वीरान पड़े हुए हैं। 41 हजार की आबादी वाले अरनिया कस्बे में 10 आदमी को भी तलाशना मुश्किल है। जो थोड़े लोग बचे हैं, उन्होंने इस हालात से समझौता कर लिया है और परिवारों के सुरक्षित स्थानों पर जाने के बाद अब उन्हें किसी चीज का खौफ नहीं है। कस्बे में हर तरफ तबाही का मंजर है। जहां-तहां मोर्टार फटने से बर्बाद घर व घायल माल मवेशी के खून के निशान हैं। त्रेवा के देस राज भी गोलाबारी होने के बावजूद घर छोड़ कर नहीं गए। उनका कहना है कि पाकिस्तान ने कस्बे में अधिक से अधिक खून-खराबा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। वह सीमा पर अस्थायी शांति में पाकिस्तान की साजिश देखते हैं। उनका कहना है कि कई बार ऐसा होता है कि पाकिस्तान शांत होकर सीमांतवासियों के घर लौटने का इंतजार करता है। जब लोग आ जाते हैं तो फिर गोले दागने लगता है।

खाली गांवों पर गोले दागकर उसे क्या मिलेगा।नौ दिन की गोलाबारी में जम्मू संभाग के कठुआ, सांबा व जम्मू जिले के दो सौ से अधिक गांव प्रभावित हैं। गोलाबारी से दो सीमा प्रहरियों समेत 12 लोगों की मौत हुई है, जबकि करीब 60 लोग घायल हैं। जम्मू के राजकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पिछले कुछ दिनों में 54 घायलों को इलाज के लिए दाखिल किया गया। इस समय भी करीब 30 लोग इलाज करवा रहे हैं। जम्मू के अतिरिक्त जिलाधीश अरुण मन्हास ने बताया कि पाकिस्तानी गोलाबारी में सबसे अधिक जानमाल का नुकसान जम्मू जिले में हुआ है।

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार जिले में सीमा के पांच किलोमीटर के दायरे में आने वाले 114 गांवों में से 80 गांवों के 1.15 लाख लोग प्रभावित हैं। इनमें से 72,500 लोगों ने मंगलवार तक पलायन कर लिया था। नुकसान का आंकलन किया जा रहा है। जिले में सात मौतें हुई हैं और 30 लोग घायल हुए हैं। इसके साथ ही 72 घरों को नुकसान पहुंचा है। 27 मवेशी मारे गए और 60 घायल हैं। लोगों के साथ ही सीमा सुरक्षा बल के जवान भी पाकिस्तान की ओर से शांति को शक की नजर से देख रहे हैं। जम्मू फ्रंटियर के आइजी राम अवतार का कहना है कि सीमा प्रहरी किसी भी हालात का सामना करने के लिए तैयार हैं। सीमा पार से किसी भी शरारत का सीमा प्रहरी कड़ा जवाब देंगे।

अच्छे दिनों की उम्मीद में टूट रहे सपने

चार साल पहले केंद्र में बनी भारतीय जनता पार्टी की सरकार से अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसे लोगों को बहुत उम्मीदें थीं। उन्हें लग रहा था कि उनके अच्छे दिन आएंगे, लेकिन समय बीतने के साथ ही उनकी उम्मीदें और सपने टूटते जा रहे हैं। सीमांत वासियों का कहना है कि उनकी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया। उल्टा सीमा पार से होने वाली गोलाबारी की घटनाएं बढ़ गई हैं।

जम्मू संभाग में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सैकड़ों गांव बसे हैं। उनकी रोजमर्रा की ¨जदगी सीमा पर शांति पर निर्भर करती है। अधिकांश लोग खेतीबाड़ी पर ही निर्भर हैं, मगर जिस प्रकार पाकिस्तान आए दिन गोलाबारी कर रहा है, उसे देखकर लगता है कि लोग खेतीबाड़ी से भी दूर होते जा रहे हैं। कई दिनों से यह लोग पाकिस्तान की गोलाबारी के कारण राहत शिविरों में रह रहे हैं। सीमावर्ती गांवों नागूर, कमोर, रंगूर, केसो, चक पारस, घरोटा कैंप, दग, नथवाल, बखा चक, अवताल व चक जुआर के सैकड़ों लोग सांबा जिले के ठंडी खुई स्थित राधास्वामी आश्रम में आश्रय लिए हुए हैं।

इन्हीं में दग गांव के 80 वर्षीय कृपा राम का कहना है कि जिंदगी बद से बदतर होती जा रही है। पहले एक दो दिन गोलाबारी होती थी फिर शांति हो जाती थी, मगर अब तो कई सप्ताह तक घरों से दूर रहना पड़ता है। इसी गांव में फर्नीचर का काम करने वाले 35 वर्षीय जगदीश का कहना है कि आए दिन गोलाबारी होती है। काम-धंधा सब बंद हो जाता है। पाकिस्तान की गोलाबारी में घरों को नुकसान पहुंचता है। जानवर मर जाते हैं। कोई मुआवजा नहीं मिलता। उनका कहना है कि कई दिनों की गोलाबारी में विधायक उनकी सुध लेने के लिए भी नहीं आए।दग के साथ ही लगते गांव कमोर के 82 वर्षीय कमोर भी इसी कैंप में आश्रय लिए हुए हैं।

उनका कहना है कि लोग कहते थे कि नई सरकार में शांति स्थापित हो जाएगी, मगर कुछ नहीं हुआ। कोई उनका हाल जानने के लिए भी नहीं आता। आश्रम वालों के कारण खाना और रहने की जगह मिल गई है। नहीं तो यह भी नहीं होना था। चक जुआर गांव के रहने वाले 81 वर्षीय गोपाल दास का कहना है कि उनके गांव में लोग खेतीबाड़ी पर निर्भर हैं। मगर पाकिस्तानी गोलाबारी के कारण अब खेती करना भी मुश्किल हो गया है। सीमा से सटे गांव रसानपुर के 34 वर्षीय विक्रम का कहना है कि चार साल में कुछ नहीं बदला। पहले भी मौत के साये में रह रहे थे, अब भी। सिर्फ नेता बदले, हम जैसे ग्रामीणों के हालात नहीं।

न मिले प्लॉट, न बने बंकर ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें सरकार ने पांच-पांच मरला भूमि सुरक्षित स्थानों पर देने का आश्वासन दिया था, लेकिन आज तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया। केंद्र व राज्य सरकार आज भी आश्वासन ही दे रही है। ग्रामीणों ने कहा गोलाबारी से बचने के लिए बंकर बनाने चाहिए थे, मगर वे भी नहीं बने। अगर घरों में ही बंकर बनाए जाएं तो गोलाबारी से बचा जा सकता है।

न स्वास्थ्य न शिक्षा की सुविधाएं सीमांत गांव के लोगों को इतने वर्षो में न तो स्वास्थ्य सुविधाएं मिली हैं और न ही स्कूल खुले हैं। कमोर, रंगूर, केसो, चक पारस, घरोटा कैंप, दग, नथवाल, बखा चक, अवताल व चक जुआर के लोग स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर रामगढ़ पर निर्भर हैं। वहां पर भी बहुत कम सुविधाएं हैं। इसी तरह इन गांव में स्कूल भी न के बराबर ही हैं। लोगों का कहना है कि अगर सुविधाएं होंगी तभी उनके बच्चे भी शहरों में पढ़ रहे बच्चों से प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.