जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ हत्या- मतदान से दूर रखने की आतंकी साजिश का है हिस्सा
किश्तवाड़ में पांच माह के दौरान यह दो राजनीतिक हत्याएं क्षेत्र को फिर से आतंकवाद और पूरी रियासत को सांप्रदायिक हिंसा की की भटठी में सुलगाने की सुनियोजित साजिश का ही हिस्सा हैं।
जम्मू, नवीन नवाज। Terror attack in Kishtwar: किश्तवाड़ में मंगलवार को आतंकियों द्वारा दिनदहाड़े आरएसएस कार्यकर्ता चंद्रकांत व उनके अंगरक्षक की हत्या बड़ी साजिश की तरफ इशारा कर रही है। इस हत्या के बाद न सिर्फ किश्तवाड़ में बल्कि जम्मू संभाग के अन्य हिस्सों में भी तनाव देखा गया लेकिन स्थानीय लोगों के संयम और प्रशासनिक कार्य कुशलता के चलते यह हत्याकांड सांप्रदायिक हिंसा में नहीं बदला।
छह माह से भी कम समय में सांप्रदायिक और आतंकवाद की दृष्टि से संवेदनशील जम्मू क्षेत्र के इस जिले में भाजपा और आरएसएस से जुड़े नेता की हत्या का यह दूसरा मामला है। इसलिए इसे महज एक आतंकी वारदात कहकर खारिज नहीं किया जा सकता। सुरक्षा एजेंसियों पर सवाल उठाती यह घटना पूरी रियासत को सांप्रदायिक आग में धकेलने, चिनाब क्षेत्र में फिर से जिहादी तत्वों की पौध तैयार करने और क्षेत्र के अल्पसंख्यक समुदाय को डरा-धमका उसे खदेडऩे की एक बड़ी साजिश का हिस्सा नजर आती है।
यहां यह बताना असंगत नहीं होगा कि करीब पांच माह पहले पहली नवंबर की रात को आतंकियों ने भाजपा के तत्कालीन राज्य सचिव अनिल परिहार की उनके भाई अजीत परिहार संग गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस हत्याकांड की जांच एनआइए कर रही है लेकिन यह जांच कहां पहुंची, किसी को नहीं पता।
अलबत्ता, परिहार बंधुओं की हत्या के आरोप में दक्षिण कश्मीर के दो लोगों के अलावा किश्तवाड़ के रहने वाले एक हरकत उल जेहादे इस्लामी के पूर्व आतंकी इरशाद अहमद कंट को गिरफ्तार किया। इरशाद के घर से एसाल्ट राइफल के एक दर्जन कारतूस भी मिले थे। इसके अलावा जफर हुसैन नामक एक व्यक्ति भी पकड़ा गया। आरोप था कि आतंकियों ने उसकी गाड़ी का इस्तेमाल किया। इससे अधिक जानकारी किसी के पास नहीं है।
किश्तवाड़ में पांच माह के दौरान यह दो राजनीतिक हत्याएं क्षेत्र को फिर से आतंकवाद और पूरी रियासत को सांप्रदायिक हिंसा की की भटठी में सुलगाने की सुनियोजित साजिश का ही हिस्सा हैं। चंद्रकांत और उनके अंगरक्षक की हत्या का समय भी इसी साजिश की तरफ संकेत करता है। करीब आठ दिन बाद इस क्षेत्र में मतदान होना है। जम्मू क्षेत्र में बृहस्पतिवार को वोट पड़ेंगे। ऐसे में मुस्लिम बहुल इस इलाके में यह हत्या अल्पसंख्यक समुदाय में डर पैदा कर, उसे मतदान से दूर रखने की आतंकी साजिश का हिस्सा है। चुनावों के मद्देनजर सुरक्षा दावों और सक्रिय आतंकियों के पोस्टरों के बीच इस हत्या ने साबित कर दिया कि आतंकी फिर से इस इलाके में सुरक्षित ठिकाने बना चुके हैं।
यह इलाका शुरु से ही अलगाववादी तत्वों का निशाना रहा है। कश्मीर के हालात का इस पर सीधा असर रहता है। हरकत उल जेहाद ए इस्लामी, मुस्लिम जांबाज फोर्स, लश्कर और हिज्ब के आतंकियों का एक बड़ा कैडर इस क्षेत्र से रहा है। लेकिन वर्ष 2005 के बाद इस क्षेत्र में आतंकी गतिविधियां लगभग नाम मात्र रह गईं और आतंकियों की संख्या भी एक दर्जन से नीचे रह गई थी। इस पूरे क्षेत्र को सुरक्षाबलों ने ग्रीन जोन अथवा आतंकवाद से मुक्त क्षेत्र मानना शुरु कर दिया था।
खास तत्वों को बना रहे निशाना
क्षेत्र में सबकुछ सही नहीं है और इसका संकेत वर्ष 2013 को ईद के दौरान हुए सांप्रदायिक दंगों ने साफ कर दिया कि यहां जिहादी तत्व फिर से सक्रिय हो चुके हैं। ऐसे में सवाल उठे कि यह तत्व उन लोगों को निशाना बनाएंगे जिनके कारण पूरे डोडा क्षेत्र (बनिहाल से लेकर किश्तवाड़ की हिमाचल प्रदेश की साथ लगी सीमा तक) में अपने मंसूबों को अंजाम नहीं दे पाए थे। इनमें मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग के अलावा आरएसएस से जुड़े लोग ही हैं। क्षेत्र में तीन दशक के दौरान आरएसएस से जुड़े लोगों की हत्याएं इसकी पुष्टि करती है।
किश्तवाड़ में जिहादी तत्वों ने कई नरंसहार अंजाम दिए, लेकिन वह गैर मुस्लिम समुदाय को पलायन करने के लिए मजबूर नहीं कर सके जिस तरह से कश्मीर से कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ था।
2013 के बाद जेहादियों की सक्रियता बढ़ी
वर्ष 2013 के दंगों के बाद किश्तवाड़ और डोडा मे जिहादी प्रचारकों की संख्या तेजी से बढ़ी है। आतंकी संगठनों की तरफ कुछ युवकों के झुकाव को लेकर भी सुगबुगाहट शुरु हो गई। मस्जिद से जिहादी नारे भी गुंजने लगे और कश्मीर में अलगाववादियों के बंद और हड़ताल के एलान का असर किश्तवाड़ में नजर आने लगा। पुराने ओवरग्राउंड वर्कर भी सक्रिय होने लगे। राज्य पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक ही पांच सालों में एक दर्जन से ज्यादा लोग किश्तवाड़ में जिहादी गतिविधियों के सिलसिले में पकड़े गए हैं। पिछले वर्ष ही पांच से ज्यादा आतंकी और उनके ओवरग्राउंड वर्कर पकड़े गए हैं। इनमें मोहम्मद अब्दुल्ला गुज्जर, तौसीफ अहमद, निसार गनई के नाम उल्लेखनीय हैं। यह जम्मू संभाग में मोस्टवांटेड आतंकी मोहम्मद अमीन जहांगीर के साथ जुड़े थे। जहांगीर इस क्षेत्र का सबसे पुराना सक्रिय आतंकी है। असम के कमरुदीन के आतंकी बनने की कहानी भी किश्तवाड़ में ही शुरु हुई थी।
कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ डा अजय चुरंगु ने कहा कि किश्तवाड़ में आरएसएस कार्यकर्ता और उससे पहले भाजपा नेता अनिल परिहार की हत्या इस पूरे क्षेत्र में एक समुदाय विशेष में डर पैदा करने, गजवात ए हिंद को लागू करने की जिहादियों के मंसूबे का ही हिस्सा है। अगर सुरक्षा एजेंसियों ने परिहार बंधुओं की हत्या की गुत्थी को सुलझाने के साथ-साथ इस इलाके में सक्रिय आतंकियों के खिलाफ भी ऑपरेशन ऑलआउट की तर्ज पर मुहिम चलाई होती तो इसके बेहतर परिणाम दिखते। चुऩावों के मौके पर यह हत्या साबित करती है कि आतंकी कश्मीर में ही नहीं जम्मू संभाग के पुराने रेड जोन में भी मतदाताओं को मतदान से दूर रखने की साजिश में जुट गए हैं। अगर इस हत्या के बाद प्रशासन नहीं चेता तो परिणाम खतरनाक होंगे।