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तीन साल की नन्ही बच्ची बेसुध पड़ी है... उसे नहीं पता कि उसे मां व पिता अब कभी नहीं मिलेंंगेे

मां-बाप व छोटे भाई ने किश्‍तवाड़ हादसे में गंवाई जान पल भर में उजड़ गया तीन साल की मासूम अदीबा का सब कुछ।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 02 Jul 2019 09:14 AM (IST)Updated: Tue, 02 Jul 2019 09:19 AM (IST)
तीन साल की नन्ही बच्ची बेसुध पड़ी है... उसे नहीं पता कि उसे मां व पिता अब कभी नहीं मिलेंंगेे
तीन साल की नन्ही बच्ची बेसुध पड़ी है... उसे नहीं पता कि उसे मां व पिता अब कभी नहीं मिलेंंगेे

जम्मू, राज्य ब्यूरो। 

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स्थान- जीएमसी का आपदा वार्ड

दृश्य : तीन साल की नन्ही बच्ची बेड नंबर 212 पर बेसुध पड़ी है। उसे नहीं पता कि उसे मां की कोख और पिता का दुलार अब कभी नहीं मिलेगा। घर से जब वह निकली थी तो मां-बाप के साथ हंसते खेलते निकली थी। शायद ही किसी ने यह सोचा होगा कि अंतिम बार वह अपनी मां की गोद में बैठ रही है। वह मिनी बस और कच्ची सड़क उसकी जिंदगी को हमेशा के लिए ऐसा गम दे गई जो कभी नहीं भूला जा सकता।

मिनी बस में बैठने के कुछ मिनट बाद ही तीन साल की अदीबा का सब कुछ उजड़ गया था। न तो उसका छोटा भाई जिसके साथ अभी खेलना ही शुरू किया था और न ही मां जो हर समय उसे दुलार करती थी हमेशा के लिए बिछड़ गए। सिर से पिता का साया भी उठ गया। अब वह पिता के सामने कभी जिद भी नहीं कर पाएगी। सब अब इस दुनिया में नहीं रहे।

उसकी देखभाल के लिए अब सिर्फ पांच साल की उसकी बड़ी बहन है जो आज उनके साथ नहीं आई थी और घर में ही थी। किश्तवाड़ के केशवान में हुए हादसे में अदीबा के पिता अख्तर हुसैन, मां रुखसाना बेगम और 45 दिन का छोटा भाई सभी मारे गए। नियति को शायद सही मंजूर था। जीएमसी के आपदा वार्ड में जो कोई भी आ रहा था, बस अदीबा को देखकर भावुक हो रहा है। पुलिस अधिकारियों से लेकर सिविल प्रशासन और रेडक्रास तक के पदाधिकारी अदीबा के पास पहुंच रहे हैं।

अदीबा के साथ ही बिस्तर पर एक ओर उसका मामा फरीद उसे निहार रहा था। कहता है अख्तर हुसैन मजदूरी करके परिवार को पालता था। आज सुबह कई दिन के बाद वह केशवान से किश्तवाड़ के लिए रवाना हुआ था। कुछ ही देर के बाद खबर मिली कि मिनी बस खाई में गिर गई है। पर सोचा न था कि इस नन्हीं बच्ची के साथ ऐसा हो सकता है। जब अस्पताल में पहुंचे तो सब कुछ लुट चुका था। डॉक्टरों का कहना है कि उसकी हालत में जल्दी ही सुधार होने की उम्मीद है। थोड़े दिन में तो ठीक हो जाएगी।

मरने वालों में 29 केशवान गांव के

बलवीर सिंह जम्वाल, किश्तवाड़

शोक में डूबा पूरे केशवान इलाके के किसी घर में न तो चूल्हा जला और न ही कोई व्यक्ति घर में टिका। पूरे इलाके में चीखोपुकार मची रही। कुछ लोग घटनास्थल की तरफ भागते रहे तो कुछ लोग किश्तवाड़ जिला अस्पताल की ओर। कुछ लोग सड़कों के किनारे खड़े होकर शवों की पहचान कर उनको घरों में पहुंचाते नजर आए। केशवान इलाके में हुए मिनी बस दुर्घटना में मौत का शिकार हुए 35 लोगों में से 29 लोग केशवान गांव के हैं और बाकी भी केशवान के आसपास के इलाकों से थे। घायल में भी 14 लोग केशवान के ही हैं।

हादसे के बाद जब गांव में एक के बाद एक शव पहुंचने लगा तो गांव में ऐसा माहौल था कि कोई व्यक्ति वहां खड़ा नहीं रह सकता था। चारों तरफ से रोने और चीखने-चिल्लाने की आवाजें आ रही थी। बच्चे, बुजुर्गों से लेकर हर कोई दहाड़ मार-मार कर रो रहा था। जब गांव के चौपाल में सफेद चादरों में लिपटे हुए शवों की लंबी कतार लगी तो कठोर से कठोर दिल व्यक्ति भी आंखों में आंसू आने से नहीं रोक सका। शाम तक एक-एक कर हर शव को वहां से संस्कार के लिए ले जाते गए और कब्रिस्तान में दफनाए गए। गांव के लोग एक के बाद एक शव को कब्रिस्तान में पहुंचा रहे थे। केशवान इलाके में ज्यादातर मुस्लिम आबादी है। छोटे-छोटे मोहल्ले हैं और हर मोहल्ले का अपना कब्रिस्तान। जब सभी मृतकों को सुपुर्द ए खाक व श्मशान घाट में अंतिम संस्कार होने के बाद लोग अपने घरों में तो आ गए लेकिन इलाके में शोक ऐसा है कि मानो यहां कोई रहता ही नहीं।

मेघदूत बनकर जवानों ने बचाई 16 जिंदगियां

केशवान में मिनी बस दुर्घटना होने की सूचना मिलने के बाद 26 राष्ट्रीय राइफल के जवान घायलों के लिए मेघदूत बनकर पहुंचे। हालांकि स्थानीय लोग बचाव एवं राहत कार्य में जुटे थे, लेकिन उनके पास ऐसे उपकरण नहीं थे, जिनके जरिए 900 मीटर नीचे खाई में पहुंचा जा सके और वहां से घायलों और मृतकों को रेस्क्यू किया जा सके।

जैसे ही केशवान में स्थित 26 राष्ट्रीय राइफल के कैंप में जवानों को दुर्घटना का पता चला तो जवान तत्काल तैयार होकर घटना स्थल की ओर रवाना हुए। जवानों के मन में यही था कि वहां पर जाकर किसी भी व्यक्ति तो दम नहीं तोडऩे देंगे। जवान अपने साथ राहत एवं बचाव कार्य के सारे उपकरण लाए थे, जिसमें रस्सियां, सीढिय़ां सहित अन्य सभी जरूरी उपकरण थे। जवानों ने सड़क से नीचे उतर कर नीचे खाई तक रस्सी और सीढिय़ां लगा ली और बचाव अभियान में जुट गए। जिन लोगों की मृत्यु हो चुकी थी और जो घायल थे उन्हें कड़ी मशक्कत के साथ रेस्क्यू किया। हालांकि पुलिस वहां पहुंच चुकी थी और कंधे से कंधा मिलाकर बचाव अभियान में काम किया। दो घंटे की कड़ी मेहनत के बाद नीचे खाई से घायलों और मृतकों को सड़क के किनारे पहुंचाया गया और उन्हें किश्तवाड़ जिला अस्पताल में पहुंचाया गया। इस कार्य को लेकर किश्तवाड़ में लोगों ने सेना के प्रति अपना आभार व्यक्त किया।  


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