J&K Election: विस्थापितों ने भविष्य संवारने का नहीं गंवाया मौका, वोट देने के बाद आंखों में थे खुशी के आंसू
जम्मू-कश्मीर में पहली बार मतदान करने वाले पाकिस्तानी विस्थापितों में खुशी का माहौल है। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद उन्हें स्थायी निवासी का दर्जा मिला है जिससे उन्हें मतदान करने सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने और जमीन खरीदने का अधिकार मिल गया है। युवाओं का कहना है कि अब उनके परिवार के लोग आवंटित जमीनों के मालिक बन गए हैं।
जागरण संवाददाता, जम्मू। वर्ष 1947 में विभाजन के समय पाकिस्तान से आए हिंदुओं को सात दशक तक जम्मू-कश्मीर का स्थायी निवासी होने का अधिकार नहीं मिला। वर्ष 2019 में जब अनुच्छेद 370 खत्म हुआ तब जाकर वे यहां के स्थायी निवासी बने। इसके बाद उन्हें चुनाव में मतदान करने समेत वे सभी अधिकार मिल गए, जो जम्मू-कश्मीर के लोगों को हासिल हैं।
पहली बार मतदान करने वाले युवाओं में खुशी
अब पाकिस्तानी विस्थापितों के बच्चे भी जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरी कर सकते हैं। पहले उनको जम्मू-कश्मीर में यह अधिकारी नहीं हासिल था। इसलिए इस बार विधानसभा चुनाव में पहली बार मतदान करने वाले युवाओं की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उनका कहना था कि अब उनके परिवार के लोग आवंटित जमीनों के मालिक बन गए हैं।
मैं भले ही छोटा हूं और अभी मेरा वोट नहीं बना, लेकिन असल आजादी को महसूस कर सकता हूं। घर में पहले अक्सर बातें होती थी कि हमारे साथ भेदभाव हो रहा है। आज मतदान करने वाले अपने भाइयों को देखकर मैं भी बहुत खुश हूं। -दक्ष राजवीर, विद्यार्थी
'भविष्य की खुशी के लिए मतदान किया'
मतदान करके बाहर निकले युवाओं का कहना था कि उन्होंने सुरक्षित भविष्य की खुशी के लिए मतदान किया है। पहले हमें अपने भविष्य की चिंता रहती थी, लेकिन अब हम जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन कर सकते हैं। यहां जमीन भी खरीद और बेच सकते हैं। कई लोग हक पाने के इंतजार में बुजुर्ग हो गए।
मैं 12वीं पास हूं। लंबे समय तक हम तनाव में रहे, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में हमारा कोई भविष्य नहीं था। कितना भी पढ़ लो मगर यहां की नौकरियों के लिए आवेदन नहीं कर पाते थे। दूसरी तमाम पार्टियों ने अपनी मजबूरियां गिनाईं कि वे अनुच्छेद 370 के कारण हमें हक नहीं दे सकते। केंद्र सरकार ने जब 2019 में इस अनुच्छेद को खत्म किया तो हमारी झोली खुशियों से भर गई। -शिवा चौधरी, विद्यार्थी
आखिरकार अनुच्छेद 370 को हटाकर केंद्र सरकार ने उनकी झोली खुशियों से भर दी। पांच अगस्त 2019 का दिन हमारे जीवन में एक नये सवेरा लेकर आया। इसलिए अब पाकिस्तान से आए हर हिंदू विस्थापित की आंखों में चमक है। जीवन के प्रति उसके मन में एक उम्मीद है, जो पहले नहीं थी।
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विभाजन के बाद पहली बार किया मतदान
बुजुर्गों की आंखों में खुशी के आंसू 1947 में देश विभाजन के समय पाकिस्तान के सियालकोट के पटोली गांव से जम्मू के सीमावर्ती क्षेत्र आरएसपुरा में आए स्व. कृपाराम के परिवार वालों ने पहली बार विधानसभा चुनाव में मतदान किया। स्व. कृपाराम के पुत्र मिल्खीराम जब मतदान करके बाहर निकले तो उनकी आंखों में खुशी के आंसू थे।
उन्होंने कहा कि उनकी जिंदगी का एक बड़ा सपना सच हो गया। सीमांत क्षेत्र आरएसपुरा के वार्ड 12 में बने मतदान केंद्र में 70 वर्षीय सतपाल भी पहुंचे थे। उनके परिवार के बुजुर्ग पाकिस्तान के सियालकोट के हैल जट्टां गांव से 1947 में आरएसपुरा आए थे। मतदान करने के बाद वे भी केंद्र सरकार को धन्यवाद देते नजर आए।
हमारा परिवार पाकिस्तान के हेल जट्टां से यहां आया। हमारे बुजुर्ग लोगों ने यहां काफी तकलीफ झेली। मानवता के आधार पर ही जम्मू-कश्मीर का हमें स्थायी निवासी बनाया जाना चाहिए था। आखिरकार अब हमें मौका मिला है। अब हमारे पास शिक्षा, रोजगार और कारोबार के लिए सारे अधिकार हैं। - गौरव चौधरी, विद्यार्थी
हमारे लिए आज का दिन दीपावली के पर्व जैसा है। मैं जब पिछले दिनों की याद करता हूं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि किस तरह हमारे बुजुर्गों ने मुश्किलें झेलीं। उनको न ही वोट का अधिकार था और न ही संपत्ति खरीदने का। अब हम जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासी हैं। -बिक्रम सिंह, कारोबारी
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