Kashmir में आतंकवाद और अलगाववाद से नाता रहा है जमात-ए-इस्लामी का
शायद ही कश्मीर में कोई ऐसा आतंकी संगठन या अलगाववादी संगठन होगा जिसका काडर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जमात से न जुड़ा हो। कश्मीरी आतंकियों के सबसे बड़े संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन का 99 प्रतिशत काडर जमात-ए-इस्लामी की पृष्ठभूमि से ही निकला है।
श्रीनगर, नवीन नवाज। जमात-ए- इस्लामी को जम्मू कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद की जननी कहना कोई नई बात नहीं है। शायद ही कश्मीर में कोई ऐसा आतंकी संगठन या अलगाववादी संगठन होगा जिसका काडर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जमात से न जुड़ा हो। कश्मीरी आतंकियों के सबसे बड़े संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन का 99 प्रतिशत काडर जमात-ए-इस्लामी की पृष्ठभूमि से ही निकला है। हिजबुल का कमांडर मोहम्मद यूसुफ शाह उर्फ सैयद सल्लाहुदीन भी जमात का ही काडर रहा है। सैयद अली शाह गिलानी, मोहम्मद अशरफ सहराई, अल्ताफ फंतोश, प्रो अब्दुन गनी बट, शेख अजीज, शब्बीर शाह, बिट्टा कराटे, हमीद शेख, गुलाम नबी सुमजी, सैयदुल्ला तांत्रे समेत सभी दिग्गज अलगाववादी और आतंकी कमांडर किसी न किसी समय पर जमात के कार्यकर्ता रहे हैं।
विधानसभा और संसदीय चुनाव में हिस्सा ले चुके : जमात-ए-इस्लामी ने जम्मू कश्मीर में हुए विधानसभा और संसदीय चुनाव में भी कई बार हिस्सा लिया है। यह शुरू से ही अलगाववाद व इस्लामिक कट्टरपंथ की पोषक रही है। 1989 के बाद इसने हमेशा ही जम्मू कश्मीर में लोगों को चुनाव बहिष्कार के लिए उकसाने के अलावा हुर्रियत व आतंकियों के चुनाव बहिष्कार को कामयाब बनाने में अपने संसाधनों का इस्तेमाल किया है। जमात की राष्ट्रविरोधी नीतियों के कारण वर्ष 1990 के दौरान भी प्रतिबंधित रह चुकी है। इसके द्वारा संचालित फलाह ए आम ट्रस्ट के स्कूलों को बंद भी किया था, लेकिन बाद में यह प्रतिबंध हटाया गया। सिर्फ यही नहीं जमात के स्कूलों के अध्यापकों को जम्मू कश्मीर के शिक्षा विभाग में समायोजित भी किया।
जमात के दबदबे को खत्म किया जा रहा : कश्मीर मामलों के जानकार प्रो. हरि ओम ने कहा कि जिस तरह से अब जमात पर कार्रवाई हो रही है वैसी पहले कभी नहीं हुई है। अब सीधे उसके वित्तीय नेटवर्क और स्पोर्ट स्ट्रक्चर को तोड़ा जा रहा है। यह जम्मू कश्मीर में सुरक्षा और शांति बहाली के लिए जरूरी है। दक्षिण कश्मीर में जमात की संपत्तियों को जब्त किए जाने की शुरुआत मायने रखती है,क्योंकि जमात का सबसे ज्यादा काडर और प्रभाव दक्षिण कश्मीर में ही है। उत्तरी कश्मीर में इसका प्रभाव है। दक्षिण कश्मीर में कुछेक कस्बों को छोड़ दिया जाए तो हर जगह जमात का दबदबा महसूस किया जा सकता है। कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ बिलाल बशीर ने कहा कि कश्मीर में जमात का पहला जलसा 80 वर्ष पूर्व शोपियां में हुआ था। मतलब कश्मीर में जमात इस्लामी की एक संगठन के रूप में शुरुआत दक्षिण कश्मीर से ही हुई है।
कई कश्मीरी हिंदुओं की संपत्तियों को औने पौने दाम में खरीदा : शोपियां में जहां करीब 15 दिन पूर्व जमात की संपत्तियों को सील किया था, के एक व्यापारी ने कहा कि जमात के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने ही सबसे ज्यादा कश्मीर की तबाही की है। इसने इस्लाम के नाम पर कश्मीरी नौजवानों को अपने ही भाई-बहनों कातिल बनाया है। यहां अगर आप सर्वे करेंगे तो पाएंगे कश्मीर से जाने वाले कश्मीरी हिंदुओं के मकान-खेत-बाग के 90 प्रतिशत खरीदार जमाते इस्लामी से जुड़े लोग ही हैं। जमात ने उस समय यहां फरमान जारी किया था कि कोई कश्मीरी हिंदुओं की संपत्ति नहीं खरीदेगा, लेकिन जमात के नेता और कार्यकर्ताओं ने बाद में उनकी सपंत्ति औने पौने दाम खरीदी है।
सरकारी जमीनों पर भी कब्जा : जमात के वित्तीय नेटवर्क और स्पोर्ट स्ट्रक्चर की जांच में जुटे प्रदेश जांच एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया जमात ने कई जगह सरकारी जमीनों पर भी कब्जा किया है। इसने अपनी अधिकांश परिसंपत्तियों को पदाधिकारियों और उनके रिश्तेदारों के नाम पर पंजीकृत कराया है। इसने कई जगह लोगों से दान में जमीन ली है। यह देश-विदेश से भी विभिन्न स्रोतों के जरिये धन जुटा उसका इस्तेमाल अलगाववादी गतिविधियों में करती है। इसके सदस्य कई जगह जिहादी साहित्य के साथ जिहादी प्रचार करते हुए पकड़े गए गए हैं।