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कभी हिज्बुल मुजाहिदीन का गढ़ रहे कठुआ जिले के बिलावर में पांव जमाने का प्रयास कर रहा जैश-ए-मोहम्मद

ड्रेन से गिराए हथियार और विस्फोट उठाने के लिए लोकल की जरूरत होती है। इसलिए बिलावर में फिर से कैडर बनाया जा रहा है। आतंकी संगठनों में कैडर की कमी पड़ने की वजह से अब फिदायिन हमले की रणनीति को बदल दिया है।

By Jagran NewsEdited By: Lokesh Chandra MishraPublished: Sun, 02 Oct 2022 09:17 PM (IST)Updated: Sun, 02 Oct 2022 09:17 PM (IST)
कभी हिज्बुल मुजाहिदीन का गढ़ रहे कठुआ जिले के बिलावर में पांव जमाने का प्रयास कर रहा जैश-ए-मोहम्मद
कठुआ जिले के बिलावर में पड़ने वाला मल्हाड़ क्षेत्र पहले हिजबुल मुजाहिदीन का गढ़ हुआ करता था।

जम्मू, लोकेश चंद्र मिश्र : कश्मीर में शिकस्त खा रहे आतंकी अब जम्मू संभाग के विभिन्न क्षेत्रों में पांव जमाने का प्रयास कर रहे हैं। अब उन क्षेत्रों में आतंक के माड्यूल को फिर से सक्रिय करने का प्रयास किया जा रहा है, जहां एक-डेढ़ दशक पहले आतंक चरम पर था। कठुआ जिले के बिलावर में पड़ने वाला मल्हाड़ क्षेत्र पहले हिजबुल मुजाहिदीन का गढ़ हुआ करता था। इस जगह पर आतंकियों की एक तरह से खेती होती थी। लेकिन पुलिस और सुरक्षा बलों ने आतंक के फन को यहां कुचल दिया था। लेकिन एक बार फिर यह क्षेत्र सुरक्षा बलों के लिए चुनौती बन गया।

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दरअसल, जब से ड्रोन से हथियार और गाेला-बारूद की खेप सीमा पार पाकिस्तान से गिराने की नई साजिश चलन में आया है, तब से विभिन्न आतंकी संगठनों को लोकल आतंकियों की जरूरत महसूस होने लगी। इसलिए फिर से कठुआ जिले के बिलावर में फिर से नया माड्यूल की जरूरत आन पड़ी। क्योंकि बिलावर आतंकियों का पुराना रूट रहा है। हीरानगर में अंतरराष्ट्रीय सीमा सेे घुसपैठ करने वाले आतंकी पहले बिलावर से ऊधमपुर जिले के खनेर पहुंच जाते थे। वहां से फिर वे चिनाब क्षेत्र डोडा, रामबन और भद्रवाह इलाके में सक्रिय हो जाते थे।

ड्रोन से गिराए हथियार उठाने में लोकल की जरूरत

ड्रेन से गिराए हथियार और विस्फोट उठाने के लिए लोकल की जरूरत होती है। इसलिए बिलावर में फिर से कैडर बनाया जा रहा है। आतंकी संगठनों में कैडर की कमी पड़ने की वजह से अब फिदायिन हमले की रणनीति को बदल दिया है। स्टिकी बम की साजिश इसलिए रची जा रही है क्योंकि आतंकी किसी वाहन मेें बम आसानी से चिपका कर वह खुद बचकर निकल सकते हैं। इसलिए सीमापार से स्टिकी आइईडी की खेप लगातार भेजी जा रही है। पूरी संभावना है कि जब आतंकी या आतंकियों के मददगार हीरानगर के अंतरराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र में पहुंच जाते हैं, तब ड्रोन आता है और हथियारों व विस्फोटकों की खेप गिरा कर तुरंत लौट जाता है।

29 सितंबर की रात को जाकिर उठाया हो सकता है विस्फोटकों की खेप

एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि 29 सितंबर की रात को हीरानगर के ढली क्षेत्र में ड्रोन देखा गया था। उसके बाद दूसरे दिन 30 सितंबर की सुबह उस क्षेत्र में गहन तलाशी अभियान छेड़ा गया था, लेकिन सुरक्षा बलों के साथ कुछ भी नहीं लगा। लेकिन संभावना है कि उसी रात को गिराई गई खेप का हिस्सा हो सकता है जाकिर से बरामद स्टिकी आइईडी। लेकिन सीमापार से सिर्फ एक बम नहीं भेजा गया होगा। जाहिर है विस्फकों को अलग-अलग व्यक्तियों में बांट कर वारदात की जिम्मेदारी भी बांटी गई होगी। इसलिए अभी और भी बड़ा खुलासा संभव है।


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