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Jammu Kashmir: इंटरनेट पर पाबंदी से जिहादी दुष्प्रचार पर शिकंजा, आतंकी संगठनों का मनोबल भी टूटा

जम्मू कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों से जुड़े एसएसपी इम्तियाज हुसैन मीर के अनुसार बीते छह वर्षो में सोशल मीडिया के दुष्प्रचार ने सबसे अधिक युवाओं के दिमाग में जहर भरा है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 29 Nov 2019 01:23 PM (IST)Updated: Fri, 29 Nov 2019 01:23 PM (IST)
Jammu Kashmir: इंटरनेट पर पाबंदी से जिहादी दुष्प्रचार पर शिकंजा, आतंकी संगठनों का मनोबल भी टूटा
Jammu Kashmir: इंटरनेट पर पाबंदी से जिहादी दुष्प्रचार पर शिकंजा, आतंकी संगठनों का मनोबल भी टूटा

जम्मू, नवीन नवाज। जम्मू कश्मीर में इंटरनेट पर पाबंदी का असर जिहादी दुष्प्रचार पर भी साफ नजर आ रहा है। यही वजह है कि राज्य के पुनर्गठन के फैसले के बाद से आतंक की दलदल में फंसने वाले युवाओं की संख्या में काफी कमी आई है। सुरक्षा एजेंसियों के आंकड़े बताते हैं कि अगस्त से अक्टूबर माह में मात्र 16 युवाओं ने आतंकियों और ओवर ग्राउंड वर्करों के दुष्प्रचार में फंसकर हथियार उठाए हैं। सुरक्षा बलों की मुहिम का असर भी आतंकी संगठनों के मनोबल को तोड़ रहा है और इस वर्ष 110 युवा अमन के पथ से भटककर आतंकी बने हैं। यह संख्या पिछले वर्ष के मुकाबले करीब आधा है।

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यहां बता दें कि पहली जनवरी 2017 से 31 अक्टूबर 2019 तक जम्मू कश्मीर में 447 स्थानीय लड़के आतंकी बने हैं। सबसे ज्यादा पिछले वर्ष 209 युवक इस दुष्प्रचार की चपेट में फंसकर आतंक की राह पर फिसल गए थे। पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम का प्रस्ताव लाने से पूर्व पूरे जम्मू कश्मीर में इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया था। वादी में फोन सेवा भी बंद थी। अब मोबाइल सेवा करीब एक माह पहले बहाल की जा चुकी है और इंटरनेट सेवा सिर्फ चुनिंदा सरकारी कार्यालयों में ही कड़ी निगरानी के बीच उपलब्ध कराई जा रही है।

हिंसक प्रदर्शनों में भी आई कमी: इंटरनेट सेवाओं पर रोक से हिंसक प्रदर्शनों में लगातार कमी आ रही है। सुरक्षा एजेंसियों द्वारा उपलब्ध सूचनाओं के मुताबिक इस अगस्त से अक्टूबर माह में सिर्फ 16 लड़के ही आतंकी संगठनों में शामिल हुए हैं। अगस्त माह में सिर्फ दो लड़कों के आतंकी बनने की पुष्टि हुई थी। अलबता, वर्ष 2018 के अगस्त माह में 17, सितंबर में 13 और अक्टूबर माह में 14 युवाओं ने भटककर हथियार उठा लिए थे।

दक्षिण कश्मीर अभी भी गढ़: सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष हिजबुल मुजाहिदीन से 46, जैश से 34 और लश्कर से 22 युवा जुड़े हैं। दक्षिण कश्मीर अभी भी आतंक की नर्सरी बना है और इस वर्ष कुल 110 में से सबसे ज्यादा पुलवामा से 36 युवा अमन की राह से भटक गए हैं। बीते साल भी पुलवामा से ही सबसे ज्यादा 94 युवा आतंकवाद की राह पर फिसल गए थे। कश्मीर में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि अभी भी ओवरग्राउंड वर्कर युवाओं के दिमाग में जहर भरने की साजिश रच रहे हैं। ऐसे युवाओं की घर वापसी के लिए सुरक्षा बल विशेष अभियान छेड़े हैं। सेना का ऑपरेशन मां काफी चर्चा में है। 

सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहा था जहर: जम्मू कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों से जुड़े एसएसपी इम्तियाज हुसैन मीर के अनुसार बीते छह वर्षो में सोशल मीडिया के दुष्प्रचार ने सबसे अधिक युवाओं के दिमाग में जहर भरा है। इसके अलावा सक्रिय ओजीडब्ल्यू भी युवाओं को अपने जाल में फंसाते हैं। सोशल मीडिया पर पाबंदी से इस दुष्प्रचार पर रोक लगी है। साथ ही राज्य के पुनर्गठन के साथ आतंकियों का एजेंडा भी समाप्त हो गया है।


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