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महिला दिवस: सीमा पर बसे इस गांंव में हाथों में राइफल लिए आतंकवाद का मुकाबला करती है महिलाएं

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष नियंत्रण रेखा से सटे गांव मोहरा कलाल में कभी था आतंकियों का खौफ। यहां हाथों में राइफल लिए आतंकवाद का मुकाबला करती है महिलाएं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 08 Mar 2019 10:46 AM (IST)Updated: Fri, 08 Mar 2019 10:46 AM (IST)
महिला दिवस: सीमा पर बसे इस गांंव में हाथों में राइफल लिए आतंकवाद का मुकाबला करती है महिलाएं
महिला दिवस: सीमा पर बसे इस गांंव में हाथों में राइफल लिए आतंकवाद का मुकाबला करती है महिलाएं

जम्मू, अवधेश चौहान, जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में बसा गांव मोहरा कलाल। यहां कभी आतंकियों का खौफ था, लेकिन आज यहां का रुख करने से भी दहशतगर्द कांपते हैं। उनमें यह खौफ सुरक्षाबलों का नहीं, बल्कि गांव की गुज्जर महिलाओं का है। वे राइफलें लेकर गांव की निगहबानी और हिफाजत करती हैं। 20 किलोमीटर के दायरे में फैले इस गांव में गुज्जर समुदाय के लोग ही रहते हैं।

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यह जम्मू-कश्मीर की सबसे बड़ी ग्राम सुरक्षा समिति (वीडीसी) हैं। इसके 180 सदस्यों में 100 महिलाएं हैं। वीडीसी के एक दल में 13 सदस्य है, जिनका नेतृत्व भी महिलाओं के हाथ में है। 2001 में आतंकियों ने इस गांव के करीब 18 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। गांव की वीडीसी सदस्य शकीला ने बताया कि उन्होंने अपनों को मरते देखा है। मरने वालों में बुजुर्ग और बच्चे थे। आतंकी चाहते थे कि यहां रहने वाले लोग उनके अधीन रहें, उनकी हर बात मानें। राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में उनका साथ दें, लेकिन गांव वालों को यह किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं था। ग्रामीणों को इस इनकार का खामियाजा अपनों को गंवाकर भुगतना पड़ा।

वीडीसी सदस्य शाहिदा ने कहा कि देशभक्त गुज्जर समुदाय कभी नहीं चाहता था कि पाक के आतंकी उनके इलाके में घुस कर उनकी बहू बेटियों से बदसलूकी करें। इसीलिए गांव की महिलाओं ने भी हथियार उठाने का निर्णय लिया।

पुरुष भी कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे :

यहां महिलाओं की सरपरस्ती में पुरुष भी कंधे से कंधा मिलाकर आतंकवाद से लड़ रहे है। इस गांव में महिलाओं के दल क्षेत्र के हिसाब से बांटे गए हैं। गांव से करीब 60 किलोमीटर दूर नियंत्रण रेखा (एलओसी) है। शकीला बानो का कहना है कि उनकी एकजुटता ही आतंकियों के खिलाफ उनका हथियार है।

आतंकियों के खात्मे के लिए था ‘सर्प विनाश’ :

नाहिदा बेगम ने बताया कि सेना ने 2005 में आतंकियों के खिलाफ ‘सर्प विनाश’ अभियान चलाया था। छह माह के अंदर ही पुंछ जिले में स्थित इस गांव को आतंकियों से मुक्त करा लिया गया। गांव को आंतक मुक्त करने के बाद सेना के आगे सबसे बड़ी परेशानी गांव की सुरक्षा को यकीनी बनाना और प्रभावित गुज्जर परिवारों का पुर्नवास था। लिहाजा सेना ने गांव की महिलाओं को हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी। आपरेशन ‘सर्प विनाश’ से पहले इस गांव में न तो सड़क थी और न ही प्रशासन की कोई मदद यहां पहुंचती थी। सेना ने उनके पुनर्वास के लिए अस्थायी मजबूत ढांचे बनाए।

बर्फबारी के दौरान कट जाता है गांव : पीरपंजाल की पहाड़ी श्रंखला पर बसा गांव मोहरा कलाल बर्फबारी के कारण नवंबर से अप्रैल तक राज्य के दूसरे इलाकों से सड़क मार्ग से कट जाता है। इस दौरान यहां पर आठ फीट तक बर्फ जमा रहती है। गुज्जर समुदाय के पुरुष सर्दियों में चारागाह की तलाश में मवेशियों को लेकर मैदानी इलाकों में निकल जाते है। उस दौरान भी गांव की सुरक्षा का जिम्मा यहां की वीडीसी महिला सदस्य ही संभालती हैं। शकीला बेगम का कहना है कि सेना की ओर से उन्हें पूरा सहयोग मिलता है। उन्हें इफाजत के लिए राइफलें दी गई हैं, परंतु दल की सभी सदस्य एके-47, एके-56 के अलावा अन्य आधुनिक हथियार भी चलाना जानती हैं। 


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