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सीमांत गांव कुंथल ...यहां मुकम्मल हुई लोकतंत्र के मंदिर की तलाश

इस गांव में कभी 70 घर और 100 से अधिक परिवार रहते थे। अब सुविधाओं के नाम पर न स्कूल है और न सड़क। फिर भी इस गांव के लोगों को सरकार से कोइ शिकायत नहीं है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Tue, 16 Apr 2019 01:09 PM (IST)Updated: Tue, 16 Apr 2019 01:09 PM (IST)
सीमांत गांव कुंथल ...यहां मुकम्मल हुई लोकतंत्र के मंदिर की तलाश
सीमांत गांव कुंथल ...यहां मुकम्मल हुई लोकतंत्र के मंदिर की तलाश

जम्मू, सुमित शर्मा। हर तरफ चुनावी शोर। वोट के लिए कहीं जोड़तोड़ तो कहीं रैलियों की होड़। इन सबसे दूर भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटा एक ऐसा गांव जहां हर चुनाव में सौ फीसद मतदान होता है। इस गांव में आज तक कोई नेता वोट मांगने नहीं गया। यह पूरा गांव खुद वोट डालने जाता है। इस गांव की कहानी भी बेहद रोचक है। गांव की आबादी मात्र 14 लोगों की है। चार घर हैं और मात्र 11 वोटर। बाकी घर खाली और वीरान पड़े हैं।

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इस गांव में कभी 70 घर और 100 से अधिक परिवार रहते थे। अब सुविधाओं के नाम पर न स्कूल है और न सड़क। न पानी, न शौचालय और न ही स्वास्थ्य सुविधा। फिर भी इस गांव के लोगों को सरकार और उनके प्रतिनिधियों से कोई शिकायत नहीं। इस गांव के लोग वोट को अपना अधिकार नहीं, धर्म मानते हैं। कहते हैं, सरकार सुविधाएं दे न दे, लेकिन हम वोट जरूर डालेंगे। क्योंकि हमारे एक वोट से कोई जीत सकता है तो कोई हार भी सकता है। वाकई, लोकतंत्र के मंदिर की तलाश इस गांव में पहुंचकर मुकम्मल हुई। यह उन लोगों के लिए एक सबक के साथ सीख भी है, जो अपने ड्राइंग रूम में चाय की चुसकी लेकर कहते हैं, 'हमारे एक वोट न डालने से क्या होगा।

आइए ले चलें अद्भुत गांव की ओर

लोकतंत्र के महायज्ञ में आस्था रखने वालों की तलाश में हम निकले जम्मू संभाग के कठुआ जिले के हीरानगर सेक्टर की ओर। जम्मू-पठानकोट हाईवे को छोड़कर घगवाल से कई गांव की खाक छानते व तरनाई समेत पानी से भरे तीन नालों को पार कर हम आगे बढ़े तो एक कच्ची पगडग़ी दिखी। सड़क नहीं थी, पर सोचा कोई गांव तो होगा। एक किलोमीटर झाडिय़ों से पटे तंग रास्ते से धूल-मिट्टी फांकते जब हम गांव में पहुंचे तो हर तरफ सन्नाटा पसरा था और घर वीरान। पूरा गांव घूमा तो एक प्राइमरी स्कूल दिखा, जो स्कूल कम और खंडहर अधिक था। इसे बंद हुए सालों बीत चुके थे। आगे बढ़े तो एक कुंआ दिखा, लेकिन उसका पानी पीने लायक नहीं। न अस्पताल-न शौचालय। सुविधाओं के नाम पर गांव की तस्वीर हमारे सामने थी।

गांव में घूमने पर थोड़ी दूर एक बच्चा मिला। हमने पूछा..गांववाले कहां गए। इसपर बच्चा घबरा गया और भागा। हम भी उसके पीछे हो लिए। सोचा-किसी घर में जाकर तो रुकेगा। बच्चा एक घर में घुस गया। धूप काफी तेज थी तो उनके आंगन में एक पेड़ के नीचे खड़े होकर हमने आवाज दी। कोई है..। अंदर से एक बुजुर्ग अम्मा बाहर आईं। कमर झुकी हुई। हाथ में लाठी। आंखों से दिखाई कम और सुनाई भी ऊंचा देता था। अम्मा ने हमसे पूछा.. कौन हो भाई। हमने कारण बताया तो अम्मा ने बड़ी दिलचस्पी दिखाई।

अम्मा ने बताया कि उनका नाम अमृती देवी और उम्र 100 साल है। हमने पूछा.. आपके यहां वोट कब पडऩे है। अम्मा बोली.. 18 को। हमने पूछा.. वोट डालोगी, तो तबाक से जवाब दिया.. हां। हमने फिर पूछा.. गांव में स्कूल नहीं, पानी नहीं, सड़क नहीं, स्वास्थ सुविधा नहीं फिर भी वोट डालोगी। वह बोलीं.. वोट मेरा हक नहीं, धर्म है। क्या पता मेरे एक वोट से कोई जीत जाए या हार जाए।

अम्मा से बात करते घर से उनकी बहु व बच्चे भी बाहर निकल आए। अम्मा ने गर्मी में मेरी हालत देख बहु को पानी लाने को कहा। वह एक गिलास भरकर पानी का ले आईं। मेरा सवाल वहीं था। मैने पूछा.. अम्मा गांव में पानी नहीं, तो यह कहां से आया। वह मुस्कुराईं और बोलीं.. पी लो। मैं समझ चुका था, एक गिलास पानी की अहमियत।

कभी 70 से अधिक थे गांव में घर

सौ बसंत देख चुकी अमृती देवी ने बताया कि गांव में कभी 70 से अधिक घर हुआ करते थे और 100 से अधिक परिवार। गांव में छोटे-छोटे कई मोहल्ले भी थे। तरनाह नाले के बहाव ने धीरे-धीरे गांव को अपने साथ बहाना शुरू कर दिया। सुविधाएं न होने पर एक-एक कर गांव खाली होता गया। अब यहां केवल चार घर बचे हैं। उनका बेटा अशोक कुमार व बहू पूजा देवी व दो बच्चे उनके साथ रहते हैं। एक घर केवल कृष्ण का है, वहां उनकी पत्नी सुदेश व दो बच्चे रहते हैं। तीसरे घर में शिव राम मास्टर व उनकी पत्नी कांता देवी रहती हैं। चौथा घर मदन गौपाल का है, जहां उनकी पत्नी सुदेश कुमारी व एक बेटा रहता है। मात्र 14 लोगों के इस गांव में अब मात्र 11 वोटर ही बचे हैं।

..सड़क बन जाए तो गांव का मान-सम्मान बचा रहेगा

हमने पूछा..अपने वोट के बदले सरकार से क्या चाहती हो। अम्मा ने जवाब दिया..कुछ नहीं। 100 साल की हो चुकी हूं। मैं मरते दम तक इसी गांव में रहूंगी। इसे छोड़कर कभी नहीं जाऊंगी । इस बार भी पांच किमी चलकर वोट डालने जरूर जाऊंगी। हां, हमारे गांव में कई देवस्थान हैं, बस यहां की सड़क बन जाए तो गांव का मान-सम्मान बचा रहेगा। नहीं तो कोई कहेगा, कैसा गांव है, यहां सड़क तक नहीं।

गांव को फिर मिले अपनी पहचान

वीरान पड़े गांव में अम्मा से बात करते कुछ लोग दिखाई दिए। पूछने पर उन्होंने बताया कि वह भी इसी गांव के हैं, लेकिन यहां से जा चुके हैं। इस गांव में तीन-चार जगह हमारे देव स्थान हैं, जहां माथा टेकने आते हैं और आज यहां भंडारे के लिए आए हैं। गांव के दीपक शर्मा, अनिल कुमार, अशोक शर्मा, देस राज, तिलक राम शर्मा, सुभाष शर्मा, मानी शर्मा व गणोश शर्मा ने बताया कि यह गांव काफी हराभरा था। अल सुबह खेतों में जाते बैलों के गले में घुंघरुओं की आवाज से लोग जागते थे, लेकिन सुविधाएं न होने से एक-एक कर सभी परिवार यहां से शहरों की ओर चले गए। गांव की सुध लेने आज तक किसी विभाग का कोई अधिकारी नहीं आया। गांव में तीन कुंए थे। इनमें दो पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं और बचा एक पीने लायक नहीं रहा। हम बस यही चाहते हैं कि गांव की पहचान फिर मिले।

2011 के सेंसक्स के अनुसार, गांव में रहते हैं 110 परिवार

सरकार की ओर से वर्ष 2011 में किए गए सेंसक्स के अनुसार, कुंथल गांव में 110 परिवार रहते हैं। इसमें 293 पुरुष व 224 महिलाएं हैं। छह साल तक के बच्चों की संख्या गांव में 67 है। कुंथल गांव की उच्च साक्षरता दर 83.56 फीसद है, जबकि पूरे राज्य की बात करते तो यह दर 67.16 है।

गांव के तीन बड़े मुद्दे

- तरनाह नाले के बहाव से गांव की कटती जमीन को बचाया जाए।

- देव स्थान की ओर जाने वाली सड़क पक्की की जाए।

- स्कूल, पानी, अस्पताल व शौचालय का प्रबंध हो।

  • कुंथल गांव को उसकी पहचान वापस दिलाने के लिए हमने एक प्रपोजल तैयार किया है, जो जल्द डीसी कठुआ को देने जाएंगे। गांव में सड़क, पानी व स्वास्थ्य सुविधा के साथ तरनाह नाले से गांव को हो रहे नुकसान को बचाने लिए सरकार के प्रतिनिधियों से भी मिलेंगे। - तिलक राज शर्मा, सरपंच पंचायत कुंथल 

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