Kargil Vijay Diwas: धोखा खाने पर भी भारतीय जवानों ने दिया था मानवता का सबूत, दुश्मन को इज्जत के साथ दी दो गज जमीन
जीत की रात का मंजर कभी भुलाया नहीं जा सकता है। एक ओर अपने 15 सैनिक शहीद थे तो दूसरी तरफ दुश्मन के आठ सैनिकों के शव थे।
जम्मू, विवेक सिंह। कारगिल की चोटियों पर असाधारण वीरता का इतिहास रचने वाली भारतीय सेना ने असल में मानवीयता की भी नई इबारत लिखी थी। युद्ध में विजय पताका लहराने वाले भारतीय जांबाजों ने शहीदों को भीगी आंखों से अंतिम विदाई देने के साथ मारे गए कई पाक सैनिकों को पूरे सम्मान के साथ दो गज जमीन दी थी। कारगिल विजय के 20 साल पूरे होने पर शहीदों की कुर्बानियों को जोश के साथ याद कर उनके परिवारों को फख्र है।
यह कहना है कारगिल युद्ध में सेना की दो नागा रेजीमेंट के कमान अधिकारी रहे सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर डीके वडोला का। उन्होंने बताया कि युद्ध के अंतिम दिनों में पाक सेना के आग्रह पर कब्र से निकाल कई सैनिकों के शव लौटाए थे। इन्हें प्वायंट 4875 पर दफनाया था। अब भी वहां पर दुश्मन के कई सैनिक दफन हैं।
जीत की रात का मंजर भुलाया नहीं जा सकता
ट्विन बंप चोटी जीतने का हवाला देते हुए डीके वडोला ने बताया कि 15 हजार फीट की उंचाई पर बैठे दुश्मन से लोहा लेने के लिए हमने पांच जुलाई को गोलाबारी के बीच 14 हजार फीट की सीधी चढ़ाई चढ़ ली थी। अगली रात को हमने ट्विन बंप पर पहुंच कर धावा बोल दिया। इस दौरान हमारे 15 सैनिक शहीद हुए थे। दुश्मन के आठ सैनिक मार गिराए व बाकी अपने इलाके में भाग गए। हमने वहां पर पाक की तीन 120 एमएम मोर्टार तोपों के साथ दो 81 एमएम मोर्टार तोपें कब्जे में ली थी।
जीत का मंजर नहीं भुलाया जा सकता
जीत की रात का मंजर कभी भुलाया नहीं जा सकता है। एक ओर अपने 15 सैनिक शहीद थे तो दूसरी तरफ दुश्मन के आठ सैनिकों के शव थे। हमने शहीदों के पार्थिव शरीर नीचे भेजने की व्यवस्था करने के साथ मारे गए आठ पाक सैनिक के शव धार्मिक रीति रिवाज के साथ दफना दिए। बाद में कई शव कब्रों से निकाल लौटाए भी गए।
पाकिस्तान 11 साल बाद माना कि कारगिल में मारे गए सैनिक उसके थे
11 साल तक पड़ोसी देश यह मानने को राजी नहीं हुआ कि उसके सैनिक कारगिल में मारे गए थे। वर्ष 2010 में उसने अधिकारिक रूप से माना था कि युद्ध में उसके 453 जवान व अधिकारी शहीद हुए। असल में मारे गए पाक सैनिकों की संख्या तीन गुणा से भी ज्यादा थी। कारगिल में दफनाए अपने सैनिकों को पाकिस्तान ने उन्हें गुमनाम मौत दी। वडोला ने कहा कि युद्ध के दौरान खाने-पीने के भी लाले थे। उस रात पाक सैनिकों के बंकर से मिले आटे से बनाकर खाई चपाती कभी भूल नहीं सकती है। यह चपाती खाली एम्युनीशन के लोहे के बाक्स को आग पर रखकर बनाई गई थी।
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