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बर्फीले रेगिस्तान लद्दाख के तूफानों में वायुसेना भर रही हौसलों की उड़ान, -35 डिग्री तापमान में पहुंचा रहे रसद

यह आसान काम नही है एक ताे हवा सामान्य से अत्याधिक ठंडी है उस पर वहां मैदान इलाकों के 20 फीसद आक्सीजन स्तर के मुकाबले सिर्फ आक्सीन का स्तर 11 फीसद है। ऐसे में सांस लेते नही हैं इसे जोर लगाकर अपने फेफड़ों में भरा जाता है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 12 Jan 2022 10:37 AM (IST)Updated: Wed, 12 Jan 2022 10:37 AM (IST)
बर्फीले रेगिस्तान लद्दाख के तूफानों में वायुसेना भर रही हौसलों की उड़ान, -35 डिग्री तापमान में पहुंचा रहे रसद
अनुभवी जवान मौसम की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हैं।

जम्मू, विवेक सिंह : बर्फीले रेगिस्तान लद्दाख के उच्चतम इलाकों में बर्फीले तूफानों, शून्य से 35 फीसद तक नीचे जा रहे तापमान में सरहद की रक्षा के लिए भारतीय वायुसेना हौंसले की उंची परवाज भर रही है।

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जनवरी माह के पहले सप्ताह में जोजिला पास बंद होने से श्रीनगर-लेह राजमार्ग पर वाहनों के चक्के रूकते ही सेना की मदद करने को वायुसेना लद्दाख की लाइफ लाइन बन गई है। दुश्मन कामयाब न हो, इसके लिए देश के सपूत लद्दाख के अति उच्च क्षेत्रों के ऐसे माहौल में देश सेवा कर रहे हैं जिसमें जीना संभव नही है। भारतीय सेना, वायुसेना के वीरों का यही हौंसला लद्दाख में बुरी नजर रखने वाले चीन व पाकिस्तान को डरा रहा है।

पूर्वी लद्दाख में इस समय अत्याधिक ठंड है, आक्सीजन का स्तर भी सामान्य से करीब आधा है, ऐसे हालात में वायुसेना के वीर सर्दियों की चुनौतियाें का सामना करने के लिए पूर्वी लद्दाख में करीब सत्रह हजार फीट की उंचाई पर एडवांस लैडिंग ग्रांउड को सुचारू रख रहे हैंं। लक्ष्य है कि चीन के सामने खड़ी भारतीय सेना के जवानों तक चुनौतियाें का सामना करने के साथ रसद के साथ जरूरत का हर सामान पहुंचता रहे। पूर्वी लद्दाख में चीन से सटे इलाकों के साथ पश्चिमी लद्दाख के सियाचिन ग्लेशियर तक वायुसेना के हेलीकाप्टर इस समय लगातार उड़ानें भर सैनिकों का मनोबल बढ़ा रहे हैं।

पूर्वी लद्दाख में वायुसेना की 16696 फीट की उंचाई पर स्थित विश्व की सबसे उंची दौलत बाग ओल्डी एडवांस लैंडिंग ग्राउंड में हवाई योद्धाओं के जोश की बदौलत विमानों के साजो सामान लेकर पहुंचने का सिलसिला जारी है। ऐसा वायुसेना के पायलेटों के अनुभव पर लैंडिग ग्राउंड में काम करने वाले जवानों की कड़ी मेहनत से संभव हो रहा है। बर्फीले लद्दाख में विमान के लैंड करने के पहले चुनौतीपूर्ण हालात में लैंडिंग स्ट्रिप से बर्फ हटाई जाती है, विमान के उड़ान भरते समय भी ऐसी ही मुहिम चलती है।

यह आसान काम नही है, एक ताे हवा सामान्य से अत्याधिक ठंडी है उस पर वहां मैदान इलाकों के 20 फीसद आक्सीजन स्तर के मुकाबले सिर्फ आक्सीन का स्तर 11 फीसद है। ऐसे में सांस लेते नही हैं, इसे जोर लगाकर अपने फेफड़ों में भरा जाता है। इन हालात में लद्दाख में भारतीय वायुसेना के सी 130 सुपर हरक्यूलियस, एन 32 विमान, चिनूक हेलीकाप्टरों के साथ मीआई 17 व अन्य हेलीकाप्टर उड़ान भर रहे हैं।

पीआरओ डिफेंस लेफ्टिनेंट कनर्ल एमरान मुसावी का कहना है कि लद्दाख में इस समय भारतीय सेना व वायुसेना बेहतर समन्वय के साथ चुनौतियों का सामना कर रही है। सड़क बंद होने के बाद क्षेत्र में सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए वायुसेना का अभियान जारी है। अनुभवी पायलेट जरूरतों को पूरा करने के लिए निरंतर उड़ाने भर रहे हैं। ऐसे में लेह के उपरी इलाकों में तैनात जवानों का हौंसला बुलंद है। अनुभवी जवान मौसम की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हैं।

बर्फीली ठंड को हराता है वीरों का जोश : लद्दाख में काम कर चुके सेवानिवृत विंग कमांडर कमल सिंह ओबरेह का कहना है कि सर्दियों के महीनों में लेह के उपरी इलाकों का माहौल इंसाफ के हौंसले को आजमाता है। भारतीय सेना, वायुसेना के जवानों के हौंसले की कोई सीमा नही है। ये प्रहरी देश की खातिर बुलंद हौंसले से कुछ भी करने की हिम्मत रखते हैं। आक्सीजन का स्तर व हवा का दवाब 12 हजार फीट के बाद कम होने लगता है। सोलह हजार की उंचाई पर हमें सांस खींचना होता है, जल्द थक जाते हैं, अत्याधिक ठंड में काम करना आसान नही है।

विमान उड़ाने वाले पायलेटों का एकदम मौसम के बदलाव का सामना करना पड़ता। विंड चिल फेक्टर अत्याधिक ठंड की चुनौतियों को बढ़ाता है। चलने वाली अत्याधिक ठंडी हवा कपड़ों को चीर देती है, ऐसे में बहुत कपड़े पहनने से भी शरीर सही तरीके से काम नही करता है। सर्दियों में लेह में कम बर्फ व अत्याधिक ठंड है, बिजिबिलिटी की ज्यादा समस्या नही होती है। ठंड के माहौल में विमान की भार ले जाने की क्षमता भी कम हो जाती है। एयर ट्रैफिक कंट्रोल से लेकर एयर स्ट्रिप पर काम करने वाले वायुसैनिकों तक सभी एक टीम वर्क के साथ काम करते हुए लद्दाख के अति दुर्गम हालात में वायुसेना की उड़ानों को सफल बनाते हैं।

आपात हालात का सामना करने को उड़ते हैं हेलीकाप्टर : पूर्वी लद्दाख के साथ सियाचिन ग्लेशियर में सर्दियों का मौसम में आपातकालीन हालात का सामना करने के लिए वायुसेना व सेना के अपने हेलीकाप्टर तैयार रहते हैं। हिमस्खलन के कारण कई बार चुनौतियां पैदा हो जाती हैं। ऐसे हालात में घायलों को दुर्गम इलाकों से बेस अस्पताल तक पहुंचाना आसान नही होता है। अनुभवी पायलेट ऐसे बर्फ के बीच से इन घायलों को बचाने के लिए अभियान चलाते हैं। कई बार हेलीकाप्टर को नीचे उतारने की जगह तक नही होती है, ऐसे में रस्सियां से बांध कर घायलों को स्ट्रेचर से हेलीकाप्टर तक पहुंचाया जाता है। लेह के उपरी इलाकों में कठिन मौसमी परिस्थितियां दुश्मन से कहीं अधिक घातक साबित होती हैं। कम आक्सीजन के माहौल में हृदय संबंधी दिक्कतें व कड़ी ठंड के कारण उंगलियां गलने के साथ छाती की समस्याएं होती हैं। भारतीय सेना के लिए हर सैनिक अहम है। ऐसे में जवान को कम से कम समय में अस्पताल पहुंचा उसकी जान बचाई जाती है।

दुश्मन की हर हरकत पर भी है पैनी नजर : लद्दाख की लाइफ लाइफ भारतीय वायुसेना दुश्मन की हर हरकत पर भी पैनी निगाह रखती है। हर समय तकनीकी सर्वालांस से लैस हवाई योद्धा चौकस रहते हैं। राडार समेत कई आधुनिक उपकरणों से दुश्मन के इलाके में होनी वाली हर गतिविधि की निगरानी होती है। इसके साथ हवा से भी दुश्मन पर नजर रखी जाती है। सेना की जरूरतों को पूरा करने के साथ हर समय वायुसेना देश की हवाई सीमाओं की सुरक्षा के लिए भी लगातार अभियान चलाती है। पूर्वी लद्दाख में सेना के साथ वायुसेना के बेड़े में भी हेरोन ड्रोन समेत कई ऐसे विदेशी उपकरण शामिल किए जा रहे हैं जो पलक झपकते ही दुश्मन की हवाई चुनौती का सामना करने में सक्षम हैं।


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