Doda : डोडा के गुमनाम बलिदानियों को देश आज करेगा नमन, तिरंगे से अटा शहर
डोडा किश्तवाड़ और रामबन में पहाड़ से उठ रही जोशीली हवाएं देशभक्ति का जज्बा बढ़ा रही हैं। तिरंगों से पटे डोडा का हर क्षेत्र उन शूरवीरों की याद दिला रहा है जिनकी बदौलत हम सब अमन भरे माहौल में रह रहे हैं।
अश्विनी शर्मा, जम्मू। डोडा कुछ बदला-बदला दिख रहा है। पहाड़ से उठ रही जोशीली हवाएं देशभक्ति का जज्बा और जोश बढ़ा रही हैं। तिरंगों से पटे डोडा का हर क्षेत्र उन शूरवीरों की याद दिला रहा है जिनकी बदौलत हम सब अमन भरे माहौल में रह रहे हैं। करीब तीन दशक पहले डोडा जिले में आतंक का मुकाबला करते कुर्बानी देने वाले आम नागरिकों के स्वजन उस दौर को याद कर भावुक हो उठते हैं, लेकिन गर्व भी महसूस करते हैं।
डोडा और भद्रवाह हों या किश्तवाड़ व रामबन। कश्मीर के साथ 1990-91 में शुरू हुए आतंकी हिंसा ने जम्मू संभाग के इन इलाकों को भी अपनी जद में ले लिया था। घाटी में कश्मीरी हिंदुओं की तरह जम्मू के दूरदराज क्षेत्रों में भी खूनी खेल खेला गया। इसमें करीब डेढ़ हजार राष्ट्रभक्तों की आतंकियों की हत्या कर दी थी। डोडा स्पोट्र्स स्टेडियम में रविवार को जम्मू कश्मीर पीपुल्स फोरम की ओर से होने जा रही श्रद्धांजलि एवं संकल्प सभा में उन बलिदानियों को नमन किया जाएगा जिन्होंने कल को बचाने के लिए अपनी जान तक दे दी थी। बलिदानियों के स्वजनों को इस कार्यक्रम में विशेष न्योता दिया है। करीब 30 साल बाद डोडा जिले में देशभक्तों के मेले को लेकर लोगों में खासा उत्साह है।
राष्ट्रवाद की अलख जगाए रखी : दक्षिण किश्तवाड़ के दिवंगत तारा चंद के पुत्र लोकेश धर कहते हैं कि उनके पिता ने आतंकवाद शुरू होते ही हमेशा राष्ट्रवाद की अलख जगाए रखी। वह हमेशा आतंकियों के निशाने पर रहे, उन पर कई बार हमले भी किए गए। दो सितंबर 2005 को आतंकियों ने उनकी हत्या कर दी थी।
अमन भरे माहौल में रह रहे हैं : रामबन के जवां गांव के दिवंगत हेमराज सिंह के पुत्र पवित्र सिंह ने कहा कि अगर आज आतंकवाद अंतिम सांसें ले रहा है तो श्रेय हमारे दिवंगत पूर्वजों को जाता है जो आतंक के खिलाफ कभी झुके नहीं। 24 जुलाई 1996 की रात को आतंकियों ने गांव में घुसकर पिता, दादा सोभा राम व चाचा कालीदास की हत्या कर दी थी। आज हम उन्हीं की बदौलत अमन भरे माहौल में रह रहे हैं।
देशभक्त सीना तानकर डटे :
शिक्षाविद् रामसेवक शर्मा कहते हैं कि देश की एकता और अखंडता के लिए आज भी देशभक्त सीना तानकर डटे हैं। आजादी के इस अमृत महोत्सव में बलिदानियों को याद करना जरूरी है। जो अगली पीढिय़ों को उनके बलिदान को याद कराएगा। हमें संकल्प लेना होगा कि आतंकवाद को जड़ से खत्म करने के लिए जान भी देनी पड़े तो पीछे नहीं हटेंगे।
हमेशा समाज के लिए सोचा करते थे स्वामी राज : भद्रवाह के दिवंगत स्वामी राज जी काटल के पुत्र नरेश चंद्र काटल ने कहा कि उनके पिता समाज के कल्याण के लिए हमेशा आगे रहते थे। 1993 में उनके पिता पर आतंकियों ने हमला किया, जिसमें वह घायल हो गए और उनके अंगरक्षक शहीद हो गए। जम्मू के अस्पताल में नौ माह तक उनका इलाज चला। ठीक होने के बाद जब उन्हें भद्रवाह जाने से रोका गया तो उन्होंने कहा कि मैं उस क्षेत्र को अकेला नहीं छोड़ सकता। वह भद्रवाह में आकर आतंकवाद के खिलाफ डटे रहे। 30 मई 1994 को आतंकियों ने उनकी हत्या कर दी। आज पिता के हौसले को याद कर हम सब गर्व महसूस करते हैं।
बलिदान को भूल नहीं सकते :
किश्तवाड़ के दिवंगत अजीत परिहार के बेटे समीर परिहार कहते हैं कि हम अपने पिता के बलिदान को भूल नहीं सकते। आतंकवाद को जड़ से उखाडऩे के बाद वह अच्छे समाज का निर्माण कर रहे थे। हर कोई अमन भरी जिंदगी जी रहा था। अचानक उनके पिता और चाचा पर आतंकियों ने घात लगाकर हमला कर उनकी हत्या कर दी।
पूरा डोडा जिला तिरंगों से पटा :
बलिदानियों की याद में होने जा रहे श्रद्धांजलि एवं संकल्प सभा को लेकर पूरा डोडा जिला तिरंगों से पट गया है। हर तरफ देशभक्ति के गीत गूंज रहे हैं। डोडा स्पोट्र्स स्टेडियम में होने वाले कार्यक्रम की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। सुरक्षा के भी कड़े प्रबंध किए गए हैं। डोडा के अलावा किश्तवाड़, भद्रवाह, रामबन बनिहाल और जम्मू से भी हजारों की संख्या में लोग कार्यक्रम में पहुंच रहे हैं। पीपुल्स फोरम के सदस्य लगातार हर क्षेत्र में श्रद्धांजलि कार्यक्रम का प्रचार कर रहे हैं। इंटरनेट मीडिया पर भी खूब प्रचार हो रहा है।