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India China Border News: एलएसी पर अब दो कूबड़ वाले ऊंट पर सवार होकर निगरानी करेगी सेना

लद्दाख में सेना को दिए जाएंगे 50 डबल हंप कैमल दो क्विंटल वजन उठाकर चढ़ सकते हैं पहाड़ों पर एलएसी पर अब जल्द ही भारतीय जवान ऊंट पर सवार हो गश्त करते हुए नजर आएंगे। यह ऊंट यारकंदी ऊंट हैं जिनकी पीठ पर दो कूबड़ होते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 22 Sep 2020 09:57 AM (IST)Updated: Tue, 22 Sep 2020 09:57 AM (IST)
India China Border News: एलएसी पर अब दो कूबड़ वाले ऊंट पर सवार होकर निगरानी करेगी सेना
यारकंदी ऊंट सिल्क रुट के रास्ते ही लद्दाख में पहुंचा

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अब जल्द ही भारतीय जवान ऊंट पर सवार हो गश्त करते हुए नजर आएंगे। यह ऊंट राजस्थान में पाए जाने वाले ऊंट नहीं हैं, बल्कि यह यारकंदी ऊंट हैं, जिनकी पीठ पर दो कूबड़ होते हैं। इन्हें बैक्टि्रयन कैमल और डबल हंप कैमल भी कहा जाता है। यह नुब्रा घाटी में पाए जाते हैं और लद्दाख की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुकूल हैं। फिलहाल, दौलत बेग ओल्डी में सेना अपनी ऑपरेशनल गतिविधियों के लिए डबल हंप कैमल को प्रयोग के तौर पर इस्तेमाल कर चुकी है। अगले चार-छह माह में सेना की विभिन्न वाहिनियों को करीब 50 ऊंट अग्रिम इलाकों में गश्त व सामान पहुंचाने के लिए उपलब्ध कराए जाएंगे।

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गौरतलब है कि यारकंदी ऊंट सिल्क रुट के रास्ते ही लद्दाख में पहुंचा है। यह उज्बेकिस्तान, यारकंद से लद्दाख आया है। यह नुब्रा के दिसकित और हुंडर में पाए जाते हैं। इन्हें संरक्षित प्रजाति का दर्जा भी प्राप्त है। मौजूदा परिस्थितियों में इनकी संख्या करीब 350 है।

सेना ने करीब तीन साल पहले करीब 10 डबल हंप कैमल लिए थे। सैन्य अधिकारियों ने बताया कि डबल हंप कैमल दो क्विंटल का वजन उठाकर आसानी से लद्दाख की पहाडि़यों और बर्फीले मैदानों में चल सकता है। यह बिना कुछ खाए और पानी पीये बगैर करीब 72 घंटे तक रह सकता है। लेह स्थित डिफेंस इंस्टीट्यूट ने पूरा अध्ययन किया है। इसके बाद इन ऊंटों को विशेष तरह की ट्रेनिंग दी जा रही है। इस्ंटीट्यूट में रंगाली नामक एक ऊंटनी को प्रशिक्षित किया गया है। इस ऊंटनी ने दो बच्चों चिंकू और टिंकू को भी जन्म दिया है। सेना के वेटनरी आफिसर कर्नल मनोज बत्रा ने बताया कि लद्दाख में मौसम के लिहाज से डबल हंप कैमल ज्यादा कारगर हैं। यह ऊंट दो क्विंटल वजन लेकर 17 हजार फीट की ऊंचाई तक आसानी से चढ़ सकते हैं।

सेना को अपनी जरूरतों के लिए करीब 50 ऊंट चाहिए जो हम अगले चार से छह माह में उपलब्ध करा देंगेअभी खच्चरों का होता है इस्तेमालकर्नल मनोज बत्रा ने बताया कि सेना लद्दाख के ऊच्च पर्वतीय इलाकों में अपनी अग्रिम चौकियों और शिविरों में साजोसामान पहुंचाने के लिए खच्चरों का इस्तेमाल करती आई है, लेकिन यह खच्चर लगभग 50-60 किलो वजन ही स्थानीय भौगोलिक परिस्थितियों में उठा सकते हैं। डबल हंप ऊंट न सिर्फ सामान उठाएगा बल्कि गश्त में भी मदद करेगा। 


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