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Poonch Encounter : चट्टाने, नाले, गुफाएं व घने जंगल में कदम-कदम आगे बढ़ रही सेना

Poonch Encounter करीब तीन हजार जवान इस अभियान में शामिल हैं। खोजी कुत्ते और ड्रोन भी आतंकियों का पता लगाने में इस्तेमाल हो रहे हैं। सैन्य अभियान मे जुटे एक अधिकारी के मुताबिक आतंकी जंगल से बाहर नहीं भाग सकते लेकिन उन्हें जल्द मार गिराना एक बड़ी चुनौती है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 27 Oct 2021 08:50 AM (IST)Updated: Wed, 27 Oct 2021 01:23 PM (IST)
Poonch Encounter : चट्टाने, नाले, गुफाएं व घने जंगल में कदम-कदम आगे बढ़ रही सेना
आतंकियों द्वारा जंगल मे को सुरक्षित भूमिगत ठिकाना भी तैयार किए जाने की आशंका को नहीं नकारा जा सकता।

पुंछ, जागरण संवाददाता: नियंत्रण रेखा से सटा पुंछ जिला और इस जिले में चमरेड़ और भाटाधुलियां के जंगल...यह वह जंगल हैं, जहां आतंकियों के खिलाफ बीते डेढ़ दशक में जम्मू संभाग का अब तक का सबसे लंबा सैन्य अभियान चल रहा है। इ अभियान में भारतीय सेना अपने नौ जवान खो चुकी है। पांच सुरक्षाकर्मी जख्मी हो चुके हैं। हालांकि, एकपाकिस्तानी आतंकी मारा जरूर गया है लेकिन वह जंगल में छिपे आतंकियों के साथ नहीं था। उसे तो आतंकी ठिकाने का पता लगाने के लिए जम्मू की कोट भलवाल जेल से जंगल में ले जाया गया था।

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हैरानी की बात है कि आतंकियों ने जंगल में जगह-जगह बूवी ट्रैप लगा रखे हैं और सिर्फ जरुरत पड़ने पर गोली चला रहे हैं। मतलब यह कि वह ज्यादा से ज्यादा समय तक जिंदा रहने और भारतीय सुरष्क्षाबीलों को नुक्सान पहुंचाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। इससे पता चल जाता है कि जंगल में किलेबंदी कर बैठे आतंकी कोई मामूली नहीं हैं बल्कि वह गुरिल्ला युद्ध में पूरी तरह प्रशिक्षित कमांडो से किसी भी तरह कम नहीं है जो स्थानीय भौगोलिक परिस्थितियों और अपने स्थानीय नेटवर्क का पूरा लाभ उठा रहे हैं।

करीब 15 किलोमीटर के इलाके में फैला यह जंगल किसी सपाट मैदानी इलाके के जंगल जैसा नहीं है। यह पहाड़ी जंगल है, जहां कई जगह बड़ी बड़ी चट्टानें और नाले हैं, खाई है और घने पेड़। इसके अलावा जंगल के कुछेक हिस्सो में चरागाहों में चरवाहे भी मौजूद हैं। आस-पास आबादी वाले इलाके भी हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग भी इसी क्षेत्र से गुजरता है और जम्मू कश्मीर को गुलाम कश्मीर से अलग करने वाली नियंत्रण रेखा भी जंगल से ज्यादा दूर नहीं है। बीजी सेक्टर से जोड़ा वाली गली तक हाइवे पर वाहनों की आवाजाही बंद की गई है। यह वही इलाका है जहां 2003 मेें आतंकियों ने राजौरी के तत्कालीन जिला जज वीके फूल समेत चार लोगों की हत्या की थी।

करीब तीन हजार जवान इस अभियान में शामिल हैं। खोजी कुत्ते और ड्रोन भी आतंकियों का पता लगाने में इस्तेमाल हो रहे हैं। सैन्य अभियान मे जुटे एक अधिकारी के मुताबिक, आतंकी जंगल से बाहर नहीं भाग सकते, लेकिन उन्हें जल्द मार गिराना एक बड़ी चुनौती है। जिस तरह से उन्होंने नुक्सान पहुंचाया है, उससे पता चलता है कि वह इस इलाके की भौगोलिक स्थिति से पूरी तरह वाकिफ हैं और वह लगातार अपने स्थानीय नेटवर्क के अलावा एलओसी पार बैठे अपने हैंडलरों के साथ लगातार संपर्क में हैं।इस इलाके में कई जगह प्राकृतिक गुफाएं भी हैं, प्रत्येक गुफा को स्थानीय लोग भी नहीं जानते। इसके अलावा नाले भी हैं और घनी झाडिंयां भी। आतंकियों द्वारा जंगल मे को सुरक्षित भूमिगत ठिकाना भी तैयार किए जाने की आशंका को नहीं नकारा जा सकता।

अभियान में मौसम भी बन रहा बाधा : सैन्य अधिकारी ने कहा कि अभियान की शुरूआत में जंगल से कुछ पानी की बोतल व बिस्किट मिले थे। उसके आधार पर हमें लगा था कि आतंकियों के पास न ज्यादा रसद होगी और न हथियार। उनकी संख्या में भी दो से तीन तक होगी, लेकिन जिस तरह से बाद में घटनाएं हुई हैं, उससे पता चलता है कि उनका स्थानीय नेटवर्क भी मजबूत है। इसके अलावा वह अपेक्षाकृत सुरक्षित जगह पर पोजिशन लिए बैठे हैं। इसलिए सुरक्षाबल धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं। इलाके में मौसम भी इस समय ठीक नहीं है। अंधेरा जल्द होता है। जंगल मेंं बारिश व धुंध है। इसलिए अभियान में अधिक समय लग रहा है।

यह है बूवी ट्रैप : सैन्य अधिकारी ने बताया कि जवानों ने जंगल में तलाशी लेते हुए बीते दिनों तीन आइईउी बरामद किए। यह आइईडी इस तरह से लगाए गए थे कि जवानों की जरा सी असावधानी पर उनकी जान ले लेते। आतंकियों ने इस तरह से जंगल में कुछ और जगहों पर भी आइईडी लगा रखी होंगी। यह बूवी ट्रैप है,जो प्रशिक्षित सैन्यकर्मी जो किसी दुश्मन े इलाके में गए होते हैं, अपने दुश्मन को निशना बनाने के लिए लगाते हैं। इसके अलावा आतंकी अब फायर नहीं कर रहे हें बल्कि वह छिपकर बैठे हैं,इससे हम अंदाजा लगा रहे हैं कि वह अपना गोला बारुद बचाने का प्रयास कर रहे हैंजिसका इस्तेमाल वह उस समय करेंगे जब उनके पास बच निकलने का कोई अंतिम विकल्प नहीं होगा।  


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