Jammu Kashmir : दो साल से एक कमरे में घुंट-घुंट कर जी रहे दो अनाथ मासूम को मिली नर्ई जिंदगी
मां बाप किसी तरह से मजदूरी कर जैसे-तैसे उनका पालन पोषण कर लेते थे। लेकिन अब वो भी नहीं बचे थे। ऊपर से घर की हालत इतनी खराब की बारिश के दौरान पूरे घर में पानी टपकता। कच्चा घर होने के कारण वह बदहाल हो चुका था।
कठुआ, राकेश शर्मा : दो अनाथ बच्चों की सहायता आज जिले में मिसाल बन गई। दो साल पहले किसी गंभीर बीमारी के कारण पां-बाप का साया छिनने के बाद दो मासूम बच्चों के सामने रोटी की समस्या खड़ी हो गई। परिवार में कोई और सदस्य नहीं बचा जो उसकी परवरिश कर सके। हालांकि एक रिश्तेदार खाना तो देता था, लेकिन टूटे जर्जर एक कमरे में दो बच्चे कैसे अकेले वक्त गुजारते होंगे और किस खौफनाक मानसिक पीड़ा से गुजरते होंगे, इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। लेकिन सामूहिक प्रयास से उन बच्चों की जिंदगी में नई रोशनी आई है। उनमें उत्साह भरी जिंदगी की नई उम्मीद जग गई है। मदद का यह साहसिक प्रयास जिले में अपने तरह का पहला प्रयास है। बच्चों को अब पक्का घर भी मिल गया और उनकी सतत पढ़ाई के खर्च का बंदोबस्त भी हो गया। बीते दिनों ही घर की छत को ढाला गया।
दो साल पहले अनाथ हुए बच्चों में एक की उम्र करीब 12 साल है और दूसरे की नौ साल। मां-बाप का साया छिनने के बाद ये दोनों बच्चे एक टूटे-फूटे कमरे में घुंट-घुंट कर जी रहे थे। बस, करीबी रिश्तेदार पेट तो भरता रहा, लेकिन उन दोनों मासूमों की न तो कोई सिसकियां सुनने वाला था और न ही उनके आंसू पोछने वाला। बच्चे इतने छोटे कि वे खुद कुछ बना भी नहीं सकते। दो पैसे कमा भी नहीं सकते। फिर उनके पास राशन भी भला कहां से आता। उनके पास रुटीन की आय का कोई स्नोत भी नहीं था।
मां बाप किसी तरह से मजदूरी कर जैसे-तैसे उनका पालन पोषण कर लेते थे। लेकिन अब वो भी नहीं बचे थे। ऊपर से घर की हालत इतनी खराब की बारिश के दौरान पूरे घर में पानी टपकता। कच्चा घर होने के कारण वह बदहाल हो चुका था। दूसरा घर में अकेले बच्चों के लिए जीवन व्यतीत करना और उसमें सब जरूरतें पूरी करना एक पहाड़ सी मुसीबत थी। लेकिन कहते हैं कि जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारों...। घनघोर मानसिक पीड़ा से जूझ रहे मासूम की जानकारी जम्मू की एक समाजिक संस्था को मिली। फिर संस्था ने उनकी हर तरह की सहायता के लिए चेन बनाई।
जो अब उन अनाथ के लिए बड़ी उम्मीद बन चुकी है। मदद करने वालों के कारवां में जिला समाज कल्याण विभाग के अधिकारी अब्दुल रहीम ने जिस तरह से इन मासूमों की मदद में जी-जान लगा दी, वह अपने आप में स्वागतयोग्य और अनुकरणीय है। हालांकि समाज के कई लोगों ने अपने सामथ्र्य के मुताबिक हर हद तक मानवता की मिसाल कायम की। गत जनवरी से मदद के प्रयास शुरू हुए। तीन महीने में ही बच्चों को पक्का घर भी बनवाकर दिया गया। उनकी पढ़ाई व महीने में आर्थिक सहायता के भी पक्के इंतजाम कराए गए।
मुफ्त राशन का भी इंतजाम हो गया। अब बच्चों में हौसला बढ़ा है। उनके चेहरे में मुस्कान लौटी है। उन्हें यह उम्मीद है कि उसके साथ अब कई लोग या कहें कि पूरा समाज है। नहीं है तो सिर्फ मां-बाप का साया। दोनों मासूमों में बड़े भाई ने 8वीं कक्षा और छोटे ने 5वीं कक्षा में फिर से पढ़ाई शुरू कर दी है।
- मेरे पास जनवरी में जम्मू के एक समाजसेवी राहिल ने इन बच्चों की दर्दभरी दास्तां सुनाई। उसके बाद मैंने खुद वहां जाकर हालात देखे। बिन मां-बाप के दो बच्चे एक टूटे हुए घर में रह रहे थे। उसी समय मैंने उनकी अपने विभाग से भी और जिले के तत्कालीन डीसी राहुल यादव के अलावा, जिले के उद्योगपतियों, कंपनियों, व्यवसायियों सहित कुछ अन्य सरकारी विभाग के कर्मियों से संपर्क किया। सभी ने अपनी जेब से मदद की। सबसे प्रयास के इन बच्चों को पक्का घर मिला। इसके अलावा उन्हें रेडक्रास से आर्थिक सहायता भी दिलाई गई। मेरे पास जिला बाल संरक्षण अधिकारी का भी पद है, उसका भी इस्तेमाल कर दोनों को दो हजार प्रति माह आर्थिक सहायता भी शुरू कराई। पढ़ाई का खर्चा भी उठाया गया है। - अब्दुल रहीम, जिला समाज कल्याण अधिकारी कठुआ
सोशल मीडिया से मिली पहली जानकारी : मुझे सोशल मीडिया के माध्यम से इन बच्चों की सूचना मिली। उसके बाद मैं वहां हीरानगर स्थित उनके गांव में पहुंचा। हालत जानने के बाद मैंने प्रयास किया कि इनकी सहायता की जाए। कुछ लोगों को जोड़ा। कुछ लोग मदद के लिए उनके साथ जुड़ गए, लेकिन स्थायी रूप से उनकी पढ़ाई आर्थिक सहायता के लिए उन्होंने बाल संरक्षण अधिकारी के ध्यान में भी लाया गया। उन्होंने वहां का दौरा कर इंसानियत के नाते भी अपनी ओर से सराहनीय प्रयास किए। उसके बाद कारवां बनता गया। - राहिल, समाजसेवी, जम्मू
समने मिलकर दिखाई इंसानियत, सुकून मिला : मेरे ध्यान में जिला समाज कल्याण विभाग के अधिकारी ने यह मामला लाया। हमने भी अपनी ओर से जैसे ईंट दिया। उसी तरह सीमेंट वाले ने सीमेंट व लोहा डीलरों ने सरिया तो किसी ने खिड़की-दरवाजे देने के लिए हाथ बढ़ाया। यहां तक कि घर बनाने वाले ठेकेदार ने भी मदद की। क्योंकि इसमें इंसानियत की बात जो थी। क्षेत्र के बीडीसी भी आगे आएं। कारवां बढ़ा। अच्छा लगा। सुकून मिला। अगर ऐसे ही लोग किसी बेसहारा की सहायता एकजुट हो कर करें तो बेहतर समाज बन सकता है। - शाम नारायण मेहता, प्रधान, ईंट भट्ठा एसोसिएशन