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Militancy In Kashmir : कश्मीर में शिक्षक के वेश में कट्टर आतंकी चला रहे थे आतंक की क्लास

Militancy in Kashmir सरकारी सेवा में शामिल होने के बावजूद उसने अपनी अलगाववादी गतिविधियों को जारी रखा। वर्ष 2016 में आतंकी बुरहान के मारे जाने के बाद उसने राष्ट्रविरोधी हिंसक रैलियों के आयोजन में अहम भूमिका निभाई थी। उसके बावजूद उसे अब तक ढोया जा रहा था।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Thu, 23 Sep 2021 08:16 AM (IST)Updated: Thu, 23 Sep 2021 12:41 PM (IST)
Militancy In Kashmir : कश्मीर में शिक्षक के वेश में कट्टर आतंकी चला रहे थे आतंक की क्लास
उस समय पूछताछ में पता चला था कि वह हिजबुल का स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षित आतंकी है।

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो : कश्मीर को आतंक की आग में झोंकने में पहले के नीति नियंताओं ने भी कसर नहीं छोड़ी। इसका ही परिणाम यह हुआ कि कट्टर आतंकी जमात और अन्य पैराकारों की मदद से चोला बदलकर शिक्षक बन गए और अपने नेटवर्क का विस्तार करते रहे। यह आतंकी शिक्षक के वेश में नई पीढ़ी के दिमाग में भी जहर घोलते रहे और आतंकियों के मददगार भी बने रहे। हथियारों के साथ पकड़े गए, हिंसा में नाम आया पर नौकरी चलती रही।

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अब्दुल हमीद वानी और लियाकत अली ककरू जैसे लोगों की वजह से ही कश्मीर में आतंक की विष-बेल फलती-फूलती रही। अब उन्हें नौकरी से बाहर का रास्ता दिखाया गया है।

सरकारी सूत्र बताते हैं कि अब्दुल हमीद वानी शिक्षक बनने से पहले आतंकी संगठन अल्लाह टाइगर्स का अनंतनाग में जिला कमांडर था। बिजबिहाड़ा के रहने वाले हमीद ने जमात-ए-इस्लामी के प्रभाव से सरकारी अध्यापक की नौकरी हासिल कर ली और नई पीढ़ी को आतंक का पाठ पढ़ाने लगा।

सरकारी सेवा में शामिल होने के बावजूद उसने अपनी अलगाववादी गतिविधियों को जारी रखा। वर्ष 2016 में आतंकी बुरहान के मारे जाने के बाद उसने राष्ट्रविरोधी हिंसक रैलियों के आयोजन में अहम भूमिका निभाई थी। उसके बावजूद उसे अब तक ढोया जा रहा था। सुरक्षा एजेंसियों ने कई बार उसके बारे में शासन को सूचित भी किया पर उसकी नौकरी को आंच नहीं आई।

बारामुला का लियाकत अली ककरू भी पुराना आतंकी है। मूलत: उड़ी में एलओसी के साथ सटे नांबला गांव का रहने वाला लियाकत 1983 में शिक्षा विभाग में अध्यापक नियुक्त हुआ था, लेकिन 1989-90 के दौरान वह आतंकी बन गया। ककरू दिन में स्कूल में होता था, रात होते ही वह हिजबुल का आतंकी बन जाता था। वर्ष 2001 में वह श्रीनगर में बीएसएफ के हत्थे चढ़ गया। उसके पास से दो हथगोले, 20 विस्फोटक छड़ें मिली थीं। उस समय पूछताछ में पता चला था कि वह हिजबुल का स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षित आतंकी है।

इस मामले में उसे जमानत मिल गई और कुछ समय बाद 10 जून 2002 को वह अपने घर से कुछ ही दूरी पर बरनैली, बोनियार में एलओसी के पास पकड़ा गया। उस समय उसके पास से हथियारों का एक बड़ा जखीरा पकड़ा गया। यह हथियार गुलाम कश्मीर से आए थे। वह जन सुरक्षा अधिनियम के तहत जेल में भी रहा और बाद में सभी आरोपों से बरी हो गया। उसके बाद वह फिर आतंकी नेटवर्क में सक्रिय हो गया। वह हिजबुल मुजाहिदीन के सबसे खास और प्रमुख ओवरग्राउंड वर्करों में एक था। उसे इसी साल 26 अप्रैल को उसके एक अन्य साथी बारामुला के ही असगर मीर के साथ पकड़ा था। उस समय भी उसके पास से दो ग्रेनेड व अन्य साजो-सामान मिला था।

इस बार प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई करते हुए इन्हें बर्खास्त कर दिया है, ताकि वह फिर से आतंक की क्लास न चला सकें। 


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