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Jammu Kashmir: हर दिन बढ़ रहा संक्रमित मरीजों की मौत का आंकड़ा, कोई पुख्ता नीति नहीं

मरीजों को अपनी जांच रिपोर्ट भी समय पर नहीं मिल पा रही है। आरटीपीसीआर की टेस्ट रिपोर्ट मिलने में ही तीन से चार दिन का समय लग जाता है। कई बार मरीज को लक्षण नहीं हाेते। वह अपनी जांच करवाने में भी तीन से चार दिन लगवा देता है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 05 May 2021 08:45 AM (IST)Updated: Wed, 05 May 2021 08:45 AM (IST)
Jammu Kashmir:  हर दिन बढ़ रहा संक्रमित मरीजों की मौत का आंकड़ा, कोई पुख्ता नीति नहीं
सरकार ने कालाबाजारी रोकने के लिए निर्देश तो बहुत दिए हैं लेकिन यह लागू नहीं हो पा रहे हैं।

जम्मू, रोहित जंडियाल: कोरोना की पहली लहर में जम्मू-कश्मीर के माडल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कइयों की प्रशंसा हासिल करने वाली जम्मू-कश्मीर सरकार और स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग दूसरी लहर में अभी तक संक्रमण पर काबू पाने में विफल नजर आ रहा है। न तो पहले जैसे प्रबंध हैं और न ही मरीजों की मौत पर काबू पाने के लिए कोई पुख्ता नीति। हर दिन नई नीति बनती है। कमेटियों का गठन होता है। मगर हालात यह है कि हर दिन कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है।

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मई महीने के पहले तीन दिनों में ही 138 कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत हो गई। इनमें से 52 मौतें तो सिर्फ मेडिकल कालेज जम्मू में ही हुई हैं। इसके अलावा कुछ मौतें जीएमसी के सहायक अस्पतालों में हुई हैं। यह पहली बार है कि जीएमसी जम्मू में तीन दिन में किसी बीमारी से पीड़ित लोगों की इतनी मौतें हुई हों। चिंता इसीलिए भी है कि मौतों का आंकड़ा कम होने के स्थान पर लगातार बढ़ रहा है। माैतें कम कैसे होंगी, इस पर अभी तक कोई भी नीति नहीं है और न ही सरकार लोगों में विश्वास उत्पन्न कर पा रही है। बहुत से मरीज ऐसे हें जो कि अस्पतालों में इलाज के लिए आने से पहले ही दम तोड़ रहे है। हर दिन दो से तीन मरीजों की घरों में ही मौत हो रही है।

यही नहीं इस बार मरीजों को अपनी जांच रिपोर्ट भी समय पर नहीं मिल पा रही है। आरटीपीसीआर की टेस्ट रिपोर्ट मिलने में ही तीन से चार दिन का समय लग जाता है। कई बार मरीज को लक्षण नहीं हाेते। वह अपनी जांच करवाने में भी तीन से चार दिन लगवा देता है और जब तक उसे जांच रिपोर्ट मिलती है तब तक हालत और खराब हो चुके होते हैं। जांच रिपोर्ट लेने के लिए लोग दरबदर हो रहे होते हैं। यही नहीं जिन जगहों पर टेस्ट हो रहे हें, वहां पर भी भीड़ जुटाई होती है। इनमें सुधार के स्थान पर पर स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग डाक्टरों के तबादलों पर जोर दे रहा है। राजकीय मेडिकल कालेज जम्मू सबसे अधिक प्रभावित है। इस संस्थान में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के वित्तिय आयुक्त अटल ढुल्लू स्थायी प्रिंसिपल की नियुक्ति तक नहीं कर सके हैं। जीएमसी में मेडिकल आफिसर्स के कई पद खाली पड़े हुए हैं। उन्हें तक नहीं भरा जा सका है।

कोविड वाडों में तीमरदार: राजकीय मेडिकल कालेज अस्पताल के कोविड वार्ड में जो मरीज भर्ती हैं। उनके साथ कई वाडों में तीमारदार भी हैं। कुछ मरीजों को तो वार्ड में फर्श पर बैठे हुए भी देखा जा सकता है। एक ही बेड पर मरीज के साथ जब तीमारदार भी बैठेगा और वार्ड में चक्कर भी लगाएगा, उसके बाद वार्ड के बाहर भी आएगा तो इससे संक्रमण फैलने की आशंका और बढ़ जाती है। इस तरह के दृश्य राजकीय मेडिकल कालेज अस्पताल के कुछ कोविड वाडों में साफ देखे जा सकते हैं। जीएमसी में नियुक्त डाक्टर भी मानते हैं कि इससे कोरोना संक्रमण के मामले और बढ़ेंगे। इससे संक्रमण कम नहीं होगा।

इस बार घरों में ही हैं संक्रमित: पिछले वर्ष संक्रमित लोग सभी अस्पतालों में भर्ती होते थे या फिर उनके लिए कोविड केयर अस्पताल बनाए गए थे। लेकिन इस बार बिना लक्षण के आने वाले संक्रमित मरीजों को घरों में ही रखा गया है। बहुत से मरीजों को घरों में यह पता ही नहीं चल पा रहा है कि उनका इलाज क्या है। वे जब गंभीर रूप से बीमार हो रहे हें तो अस्पताल पहुंच रहे हैं। कई बार डाक्टर उन्हें देरी से अस्पताल में लाने की बात भी कह रहे हैं। वहीं कुछ मरीजों को तो पल्स आक्सीमीटर तक नहीं मिल पा रहे हैं। ऐसे में उनके लिए घरों में आक्सीजन का स्तर देख पाना भी मुश्किल हो रहा है। कुछ संक्रमित घरों से बाहर भी आ रहे हैं।

जमीनी स्तर पर आदेश लागू नहीं: जम्मू-कश्मीर में मरीजों को बाजार से कई प्रकार की दवाइयां, पल्स आक्सीमीटर, आक्सीजन सिलेंडर, आक्सीजन कंसंट्रेटर तक नहीं मिल पा रहे हैं। अगर कुछ दुकानदारों के पास यह सामान है भी तो उसके मुंह मांगे दाम मांगे जा रहे हैं। विशेषतौर पर पल्स आक्सीमीटर और आक्सीजन कंसंट्रेटर तो मिल ही नहीं पा रहे हैं। इस क्षेत्र में काम करने वाले एक दुकानदार ने बताया कि इस समय आक्सीजन कंसंट्रेटर मिल ही नहीं पा रहे हें। दिल्ली में अगर किसी से बात करो तो वह इसकी कीमत तीन से चार लाख तक बताता है। जबकि सामान्य दिनों में इसकी कीमत तीस हजार के आसपास ही है। सरकार ने कालाबाजारी रोकने के लिए निर्देश तो बहुत दिए हैं लेकिन जमीनी स्तर पर यह लागू नहीं हो पा रहे हैं।


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