मेंटल हेल्थ डे: जन्नत में फीके पड़ रहे जिंदगी के रंग, तीन वर्षों में ही 1000 लोग कर चुके आत्महत्या, दोगुना कर चुके प्रयास
एक सर्वे के अनुसार कश्मीर में 45 फीसद वयस्क तनाव से ग्रस्त हैं। जम्मू में भी स्थिति ऐसी ही है। आए दिन होने वाली गोलाबारी के कारण सीमावर्ती क्षेत्रों में तनाव अधिक है।
जम्मू, रोहित जंडियाल। आतंकवाद, पाक गोलाबारी, पलायन और बेरोजगारी सहित अन्य कारणों से जम्मू कश्मीर में लोग तनाव में रहते हैं। कई बार वे तनाव सहन नहीं कर पाते और आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं। यही कारण है कि राज्य में गत तीन साल में ही करीब एक हजार लोग आत्महत्या कर चुके हैं, जबकि इससे दोगुना लोग आत्महत्या का प्रयास कर चुके हैं।
इनमें कश्मीर संभाग में कुपवाड़ा और जम्मू संभाग में जम्मू सबसे आगे है। जम्मू कश्मीर में गैर सरकारी संगठन 'द सारा' के सर्वे के अनुसार वर्ष 2016 से 2018 के बीच करीब एक हजार लोगों ने आत्महत्या की। इनकी औसत आयु 17 से 25 वर्ष के बीच है। इसमें सबसे अधिक कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के हैं। करीब डेढ़ सौ मामले इसी जिले के हैं। जिले के हंदवाड़ा पुलिस स्टेशन सबसे अधिक प्रभावित है। इसी तरह जम्मू जिले में सबसे अधिक आत्महत्या होती है। लेह-लद्दाख में सबसे कम लोग आत्महत्या करते हैं। जम्मू संभाग में डोडा जिले में सबसे कम आत्महत्या होती है। इसी तरह केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवानों द्वारा आत्महत्या करने के भी कई मामले सामने आते हैं।
राज्य में लोग आत्महत्या न करें, इसके लिए यहां कई वर्षों से काम कर रहे द सारा संगठन के चेयरमैन डॉ. रमिंद्र सिंह का कहना है कि पुलिस व अन्य के साथ वह लोगों को जागरूक करते हैं। पहले किशोर अवस्था में आत्महत्या करने की घटनाएं नहीं होती थी, लेकिन अब आए दिन यह देखने को मिल रहा है। बेरोजगारी और वित्तीय समस्याओं ने आत्महत्याओं की घटनाओं को बढ़ाया है।
आतंकवाद व बेरोजगारी के कारण तनाव अधिक
एक सर्वे के अनुसार कश्मीर में 45 फीसद वयस्क तनाव से ग्रस्त हैं। जम्मू में भी स्थिति ऐसी ही है। आए दिन होने वाली गोलाबारी के कारण सीमावर्ती क्षेत्रों में तनाव अधिक है। मौजूदा समय में छह लाख से अधिक युवा बेरोजगार हैं। मनोरोग अस्पताल में एचओडी डॉ. जगदीश थापा का कहना है कि तनाव के कई कारण हैं। इनमें प्राकृतिक आपदाओं से लेकर आतंकवाद और बेरोजगारी शामिल है। ऐसे लोगों को काउंसलिंग की जरूरत है। आत्महत्या योजना बनाकर नहीं की जाती है। जब व्यक्ति को लगता है कि वह समाज से हार गया तो ऐसा कदम उठा लेता है, लेकिन इससे बचा जा सकता है।
साल दर साल आत्महत्याएं
वर्ष संख्या
- 2009 : 321
- 2010 : 298
- 2011 : 287
- 2012 : 414
- 2013 : 302
- 2014 : 258
- 2015 : 372
- 2016 : 370
- 2017 : 332
- 2018 : 364
मनोचिकित्सकों और काउंसलरों की कमी
- राज्य में सवा करोड़ जनसंख्या की काउंसलिंग के लिए कोई भी प्रबंध नहीं है। यहां पर मनोचिकित्सकों और काउंसलरों की कमी है। मनोरोग अस्पताल में जरूर डॉ. जगदीश थापा, डॉ. मनु अरोड़ा, डॉ. राकेश बनाल और डॉ. अभिषेक चौहान नियुक्तहैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अधीन आने वाले चुनिंदा अस्पतालों में ही मनोचिकित्सक हैं।
द सारा संगठन ने चलाया अभियान
- जम्मू के युवा डॉ. रमिंद्र सिंह राज्य में लोगों को आत्महत्या न करने के लिए जागरूक कर रहे हैं। मूलत: कश्मीर के बारामुला के रहने वाले और जम्मू में पढ़े-लिखे रमिंद्र सिंह ने राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में भाग लेकर एमबीबीएस की सीट निकाली और दिल्ली के मेडिकल कॉलेज में उनका चयन हुआ। एमबीबीएस करने के बाद उन्होंने पब्लिक हेल्थ में ही पीजी डिप्लोमा किया। डॉ. रमिंद्र ने वर्ष 2010 में द सारा नामक स्वयंसेवी संस्था बनाई और जम्मू कश्मीर में लोगों को आत्महत्या न करने के लिए जागरूक करने लगे। डॉ. सिंह के अनुसार पूरे उत्तर भारत में केवल उन्हीं की एक संस्था है, जो आत्महत्या रोकने के लिए काम करती है। राज्य पुलिस के उच्चाधिकारी भी इसमें उनका पूरा सहयोग करते हैं।