NEET Quota for J&K : ...इसलिए नीट कोटे का विरोध कर रहे हैं जम्मू कश्मीर में पीजी के डॉक्टर
NEET Quota for JK जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद इस बार यहां की एमबीबीएस तथा पीजी की सीटें भी देश के अन्य राज्यों की तरह अखिल भारतीय कोटे में शामिल किए जाने का विरोध तेज होता जा रहा है।
जम्मू, रोहित जंडियाल : जम्मू कश्मीर के मेडिकल कालेजों की पीजी की सीटें आल इंडिया कोटे (पीजी नीट) में देने का विरोध कोई अनायास नहीं है, बल्कि फैकल्टी के पद खाली होने का नतीजा है। पद खाली होने से पीजी की सीटें भी कम हो गई हैं। राजकीय मेडिकल कालेज (जीएमसी) जम्मू में वर्तमान में पीजी कोर्स की करीब 197 सीटें ही हैं। उसे पीजी नीट में जाने के लिए 50 फीसद सीटें देनी होंगी। ऐसे में यहां के विद्यार्थियों को हासिल क्या होगा।
प्रदेश में पीजी की सीटें घटने का सबसे बड़ा और अहम कारण फैकल्टी के 65 फीसद तक पद खाली होना है। जीएमसी जम्मू में ही 100 से अधिक पद खाली हैं। फैकल्टी के पद खाली होने से पीजी की सीटें भी कम हो जाती हैं। इसके बावजूद सरकार ने कभी भी इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया। 50 साल पहले बने जीएमसी जम्मू में आज तक कभी भी पूरे पद नहीं भरे जा सके हैं। इसका कारण बड़ा कारण समय पर पदोन्नति और और नियुक्ति न होना है।
जीएमसी जम्मू में विभिन्न विभागों में प्रोफेसर के 67 पदों में से 23 खाली हैं। यानी 65 फीसद पदों पर कोई नियुक्ति नहीं है। वहीं, एसोसिएट प्रोफेसर के 54 फीसद और और असिस्टेंट प्रोफेसर के 60 फीसद पद खाली हैं। लेक्चरर के 48 फीसद पदों पर कोई नियुक्ति नहीं है। यह पद कई वर्ष से खाली हैं। इसका असर अकादमिक गतिविधियों पर पड़ रहा है। अगर फैकल्टी के पद सभी भरे होते तो पीजी की सीटें भी अधिक हो सकती थीं। वर्तमान में जीएमसी जम्मू में पीजी कोर्स की करीब 197 सीटें हीं हैं। अगर यहां फैकल्टी के सभी पद होते तो यह 250 से अधिक सीटें हो सकती थीं।
नियमों के अनुसार मेडिकल कालेज में एक प्रोफेसर के अधीन तीन विद्यार्थी पीजी कर सकते हैं। अगर कोई एसोसिएट प्रोफेसर है और वह किसी यूनिट का प्रभारी है तो वह भी तीन विद्यार्थियों को अपने अधीन पीजी करा सकता है। जिस एसोसिएट प्रोफेसर के पास यूनिट नहीं है, वह दो विद्यार्थियों को पीजी करा सकता है। फोरेंसिक मेडिसिन विभाग को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश में इस समय पीजी कोर्स चल रहे हैं। अगर सिर्फ प्रोफेसर के पद ही भरे होते तो 50 से अधिक सीटें और हो सकती थी। एसोसिएट प्रोफेसर की बात करें तो सीटों की संख्या करीब 100 हो सकती थी।
जीएमसी के विभागों में भी यह है स्थिति : जीएमसी जम्मू में अगर विभागवार देखा जाए तो बायोकैमिस्ट्री विभाग में प्रोफेसर के दो, एनेस्थीसिया विभाग में एक, ब्लड बैंक में एक, चेस्ट डिजिजेस में एक, फोरेंसिक मेडिसीन में एक, गायनोकालोजी विभाग में तीन, मेडिसिन में दो, माइक्रोबायालोजी में तीन, पैथालोजी में एक, फार्माकालोजी में एक, प्रीवेंटिव सोशल मेडिसिन में एक, मनोरोग में एक, रेडियो डायग्नोसिस में तीन, रेडियोथेरेपी में एक और सर्जरी विभाग में प्रोफेसर के दो पद खाली हैं। इन सभी विभागों में एसोसिएट प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर और लेक्चरर के पद भी खाली हैं। एनेस्थीसिया विभाग में फैकल्टी के 24 में से 10 खाली हैं, जबकि ब्लड बैंक में सात में से चार और गायनाकालोजी विभाग में 44 पदों में से 28 पद खाली हैं। मेडिसीन विभाग में भी 29 में से 15 पद खाली हैं।
...तो सेवानिवृत्ति से और भी कम हो जाएंगी सीटें : मेडिकल कालेज जम्मू में फैकल्टी सदस्य लगातार सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इस साल कोविड के कारण किसी को भी सेवानिवृत्त नहीं किया गया है। इसके बावजूद यहां से फार्माकालोजी विभाग के एचओडी प्रो. बृजमोहन को राजौरी मेडिकल कालेज और सीटीवीएस विभाग के एचओडी डा. नूर अली को डोडा मेडिकल कालेज र्में प्रिंसिपल बनाकर भेजा गया। फैकल्टी सदस्यों के सेवानिवृत्त होने से पीजी कोर्स की सीटें और कम हो जाएंगी।
सीटें होती तो न होता विरोध : वर्तमान में जम्मू कश्मीर से 50 फीसद पीजी की सीटें आल इंडिया कोटे में शामिल करने का सभी मेडिकल कालेजों में विरोध हो रहा है। प्रदेश में अगर अधिक सीटें होती तो शायद ही विरोध होता। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन जूनियर डाक्टर्स नेटवर्क के जम्मू कश्मीर के महासचिव अभय गुप्ता ने कहा कि प्रदेश में तीन ही मेडिकल कालेजों में पीजी होती है। यहां पर भी फैकल्टी के पद खाली और सीमित सीटें हैं। इसलिए अगर 50 फीसद सीटें आल इंडिया कोटे में चली जाएंगी तो यहां के विद्यार्थियों के लिए क्या बचेगा।
जम्मू के बाद श्रीनगर में एमबीबीएस के विद्यार्थियों का सड़क पर प्रदर्शन : जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद इस बार यहां की एमबीबीएस तथा पीजी की सीटें भी देश के अन्य राज्यों की तरह अखिल भारतीय कोटे में शामिल किए जाने का विरोध तेज होता जा रहा है। जम्मू के बाद अब श्रीनगर मेडिकल कालेज और स्किम्स के विद्यार्थियों ने भी मंगलवार को प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि सरकार के इस फैसले का खामियाजा प्रदेश के डाक्टरों को भुगतना पड़ेगा। श्रीनगर मेडिकल कालेज व स्किम्स में इंटरनशिप कर रहे एमबीबीएस के विद्यार्थियों तथा अन्य ने सरकार के इस फैसले के विरोध में श्रीनगर के प्रेस एनक्लेव से रोष रैली निकाली। इस दौरान उन्होंने हाथों में नारे लिखी तख्तियां भी उठा रखी थी। उनका आरोप था कि सरकार ने शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल सांइसेज की सभी सीटें आल इंडिया कोटा में रखी हैं, जबकि अन्य मेडिकल कालेजों की पचास फीसद से अधिक सीटें कोटा में रखकर जम्मू-कश्मीर के मेडिकल विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है। उन्होंने कहा कि इसका असर आने वाले दिनों में प्रदेश के स्वास्थ्य ढांचे पर भी पड़ेगा। प्रदर्शन कर रहे एमबीबीएस के विद्यार्थियों ने कहा कि इस समय जम्मू-कश्मीर में पीजी की सीटें पांच सौ से अधिक हैं, लेकिन कोटे में जाने के बाद दो सौ के आसपास ही रह जाएंगी। विद्यार्थियों का आरोप था कि अगर यहां से कोई पीजी करता है तो कोर्स पूरा होने के बाद वह अपने गृह राज्य में चला जाएगा। इससे जम्मू-कश्मीर को क्या लाभ होगा। इससे डाक्टरों पर और बोझ बढ़ेगा। जम्मू में पहले से ही डाक्टर इसका विरोध कर रहे हैं।