गौरैया दिवस: बसेरे लायक नहीं शहरी मकान, इसलिए दूर हो रही गौरैया
आजकल गौरैया ग्रामीण क्षेत्रों में भी सुरक्षित नहीं है क्योंकि मकानों की बनावट में वहां भी बदलाव का क्रम तेजी से जारी है।
जम्मू, जागरण संवाददाता। घर आंगन में फुदकने वाली, चहचहा कर सबका मन मोह लेने वाली गौरैया अब शहरों से दूर ही हो गई है। यहां मकानों की बदलती बनावट, खत्म हुए कच्चे ढांचों से ही ऐसी स्थिति आई है। पहले मकान कुछ इस ढंग के थे कि गौरैया को प्रवेश करने व घोंसले बनाने का अच्छा वातावरण मिल जाता था। घर का आंगन भी कच्चा मिल जाया करता था। घोंसलों के लिए दीवार में छेद मिल जाते थे। मगर अब ऐसा नहीं है। मकान सील बंद से हो गए हैं। दीवारों में कहीं कोई ऐसी जगह नहीं नजर आती कि घोंसला बन पाए। हालांकि गौरैया की उपस्थिति शहरों में भी है लेकिन यह बहुत कम हो गई है।
आजकल गौरैया ग्रामीण क्षेत्रों में भी सुरक्षित नहीं है क्योंकि मकानों की बनावट में वहां भी बदलाव का क्रम तेजी से जारी है। पक्षियों पर काम कर रही संस्था दि हिमालय एवियंस ने गौरैया पर विशेष अध्ययन कराने का मन बनाया है। सीनियर सदस्य देवेंद्र सिंह का कहना है कि गौरैया भारतीय चिडिय़ा है। इसका नाता सीधे इंसानों से रहा है। हमारे घर के अंदर तक आकर चहचहाने वाली इस चिडिय़ा का इंसान से घनिष्ठ संबंध रहा है। मगर अब बढ़ते पक्के ढांचे इन परिंदों के लिए दुश्मन हो गए हैं। वैसे भी गौरैया का घर आना खुशहाली का प्रतीक है। यह गौरैया घर के आसपास फैला दाना कीट पतंगा खाकर पर्यावरण को शुद्ध रखती है। इसलिए इंसान को ऐसा माहौल बनाना चाहिए कि हर घर में गौरेया की उपस्थिति जरूर नजर आए।
गुज्जर के कुल्लों के समीप डेरा
अगर सच में गैरैया का असल नजारा देखना है तो गुज्जर व बक्करवाल लोगों की बस्ती का दौरा करना चाहिए। वहां बने कुल्ले या कच्चे मकानों में इन चिडिय़ों की बहार है। कारण यह कि घोंसले बनाने की पर्याप्त जगह तो है, वहीं दाना भी उपलब्ध हो जाता है। पर्यावरणविद् मंजीत सिंह कहते हैं कि गौरैया को बचाने के लिए अब लोगों में जागरूकता लाए जाने की जरूरत है।
मोबाइल टावरों के रेडिएशन का दुष्प्रभाव
बॉटनी के लेक्चरर शशिकांत लखनपाल का कहना है कि मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन से पहले गौरैया प्रभावित रही है और एकदम से गायब हो गई। मगर अब यह वातावरण में फिर लौट आई हैं। मगर शहरों से दूर हो गई है। हमें गौरैया के लिए आगे आना होगा। चूंकि गौरैया हमसे सीधे तौर से जुड़ी रही है। इसलिए सरकार का काम है कि बड़े पैमाने पर एक जागरूकता अभियान चलाए। गौरैया को बचाने की दिशा में भी काम किया जाए। गौरैया हमारी संस्कृति, स्नेह का प्रतीक है और यह भावना कायम रहनी चाहिए।
कैसे करें संरक्षण
- घर के आंगन को पूरी तरह से पक्का न करें। बाग बगीचे के लिए जगह रखें।
- छत पर और आंगन में दाना डालते रहें।
- गर्मी में पानी से भरे बर्तन छत पर रखें।
- बाग-बगीचे या घर ही बाहरी दीवार पर ऐसा माहौल बनाएं कि गौरैया को घोंसला बनाने की जगह मिल जाए।
- कीटनाशक का प्रयोग घर परिसर में कम से कम करें।
- घर आंगन में पेड़ पौधा लगाएं।