Amit Shah Baramulla Rally : तब दशहरे के बाद हुई थी विनाश लीला, आज उम्मीदों की नई सुबह देखेगा बारामुला
बारामुला नियंत्रण रेखा के साथ सटा है। वर्ष 1947 में पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर कबाइली बारामुला तक आ पहुंचे थे और यहां दिरंदगी और आतंक की जो कहानी लिखी गई उसे याद कर बुजुर्ग आज भी कांप जाते हैं।
श्रीनगर, नवीन नवाज : विजयादशमी- अधर्म पर धर्म की विजय का दिन। इस बार आतंकी हिंसा व अलगाववाद से त्रस्त रहे जम्मू कश्मीर में शांति और खुशहाली की नयी सुबह का एलान करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री बारामुला मेें एक जनसभा को संबोधित करेंगे। यह रैली ही नहीं, यह दिन भी बारामुला ही नहीं पूरे कश्मीर के लिए खास है। आज से 75 वर्ष पूर्व 1947 में दशहरे के दिन कबाइलियों के वेष में पाकिस्तानी फौज ने बारामुला को घेरा हुआ था और उसके बाद शहर में ऐसा कहर बरपाया गया कि इंसानियत भी शरमा जाए।
आज कश्मीर में आतंकवाद मरणासन्न है।आज बुधवार को विजयदशमी पर केंद्रीय गृहमंत्री जम्मू कश्मीर में विकास की नई गाथा लिखने के साथ ही आतंकवाद के समूल नाश के लिए अंतिम प्रहार का एलान करेंगे। साथ ही यह रैली कश्मीर की जिहादी और अलगाववादी राजनीति से पूर्ण मुक्ति का संदेश भी देगी। केंद्रीय नेताओं की कुछ चुनावी सभाओं के अलावा बीते 30 साल में पहली बार देश का गृहमंत्री या कोई बड़ा नेता यहां जनसभा करने जा रहा है।
बारामुला नियंत्रण रेखा के साथ सटा है। वर्ष 1947 में पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर कबाइली बारामुला तक आ पहुंचे थे और यहां दिरंदगी और आतंक की जो कहानी लिखी गई उसे याद कर बुजुर्ग आज भी कांप जाते हैं। उसके बाद हमलावर श्रीनगर की ओर बढ़ चले थे पर बारामुला के लाल मकबूल वानी ने पाकिस्तानी फौज को तीन दिन तक भटकाए रखा और तब तक भारतीय सेना श्रीनगर पहुंच गई। पाकिस्तानी सैनिकों को जब असलियत का पता चला तो उन्होंने उसे सरेआम पूरे शरीर में कील ठोंक दी और उसे गोलियों से छलनी कर दिया गया। आज भी देश उनकी कुर्बानी को नमन करता है।
रैली के प्रबंध में जुटे प्रदेश भाजपा महासचिव सुनील शर्मा ने कहा कि बारामुला, कुपवाड़ा और बांडीपोर से ही नहीं श्रीनगर, बडगाम, अनतंतनाग से भी कई लोग केंद्रीय गृहमंत्री को सुनने आ रहे हैं।
आतंक ने छीने रखा बारामुला का चैन : दशकों तक बारामुला आतंकियों और अलगाववादियों का गढ़ रहा है और उन्होंने लोगों के अमन में लगातार खलल डाले रखा। कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी, नईम खान जैसे अलगाववादी इसी जिले से थे। हिजबुल मुजाहिदीन और जमायतुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठनों का पहला कमांडर मास्टर अहसान डार भी बारामुला का ही रहने वाला है। अब भी हिजबुल, लश्कर और जैश के कई नामी कमांडर इसी जिले से हैं। अगर इक्का-दुक्का घटनाओं को छोड़ दें तो बारामुला में आतंकियों का वर्चस्व समाप्त हो चुका है।
राजौरी में भी हुए थे व्यापक नरसंहार : अमित शाह की अक्टूबर में राजौरी और बारामुला में रैलियों के पीछे भी संयोग नजर आता है। 1947 में जब पाकिस्तान ने कश्मीर को हथियाने के लिए हमला किया था तो इन जिलों में पाकिस्तानी सेना ने आम लोगों पर जुल्म की इंतहा कर दी थी लेकिन लोगों ने झुकना कबूल नहीं किया और डटकर विरोध किया।
पाकिस्तान ने आज ही दिन रची थी साजिश : जम्मू कश्मीर को हथियाने के लिए चार अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने रिपब्लिक आफ कश्मीर के नाम से समानांतर कठपुतली सरकार बनाकर सरदार इब्राहिम खान को प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। पाकिस्तान को उम्मीद थी कि जम्मू कश्मीर के लोग उसका साथ देंगे, लेकिन जनता ने इस साजिश को नकार दिया। इससे हताश हो पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर पर जबरन कब्जा करने के लिए 22 अक्टूबर 1947 को हमला किया था।
- कश्मीर मामलों के जानकार बिलाल बशीर ने कहा कि बारामुला सामरिक और सैन्य ²ष्टि से महत्वपूर्ण है ही, इसका कश्मीर की राजनीति में बहुत महत्व है। बुधवार को विजयदशमी पर गृहमंत्री बारामुला से आतंक के समूल नाश का एलान कर सकते हैं। अमन चाहने वाली जनता यह सपना सच होते देखना चाह रही है।