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आपातकाल के 44 साल: संघ कार्यकर्ताओं से भर गई थी हीरानगर जेल Jammu News

इमरजेंसी लागू होते ही मैं उस समय जम्मू लिंक रोड में था। संघ कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी शुरू हो गई किसी तरह से मैं भूमिगत हो गया।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Mon, 17 Jun 2019 02:01 PM (IST)Updated: Mon, 17 Jun 2019 02:01 PM (IST)
आपातकाल के 44 साल: संघ कार्यकर्ताओं से भर गई थी हीरानगर जेल Jammu News
आपातकाल के 44 साल: संघ कार्यकर्ताओं से भर गई थी हीरानगर जेल Jammu News

कठुआ, राकेश शर्मा। 44 साल पहले आपातकाल के वह काले दिन कठुआ के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ता नहीं भूल पाए हैं। कठुआ मेंभी आपातकाल के विरोध में आंदोलन चला था। हीरानगर जेल तो संघ कार्यकर्ताओं से भर गई थी। तत्कालीन सरकार व प्रशासन ने जेल में बंद करने से पहले कार्यकर्ताओं को थाने में बेरहमी से यातनाएं भी दीं गई।

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 कठुआ में उस समय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और संघ के सक्रिय कार्यकर्ता अश्विनी गुप्ता, मदन लाल गुप्ता, अंचल दास, विनोद, सुनील उपाध्याय के अलावा काफी संख्या में लोगों ने जेल भरो आंदोलन चलाया था। अश्विनी गुप्ता संघ में डिक्टेटर की भूमिका में थे। 25 जून 1975 को इमरजेंसी की घोषणा के साथ संघ कार्यकर्ताओं की धरपकड़ जम्मू से ही शुरू हो गई। सैकड़ों पकड़े गए तो कईं संघ कार्यकर्ता भूमिगत हो गए।

जेल तक ले गया जुनून: कठुआ के वार्ड 5 संघ एवं भाजपा कार्यकर्ता मदन लाल गुप्ता ने कहा कि मैंने हीरानगर जेल में इमरजेंसी के दौरान 9 महीने गुजारे थे। उन पर हर तरह का प्रतिबंध था, लेकिन तानाशाही सरकार का विरोध करने का जुनून उन्हें जेल तक ले गया।

कार्यकर्ताओं को खोज-खोजकर पीटती थी पुलिस: संघ एवं भाजपा कार्यकर्ता डॉ. नरेंद्र सिंह जसरोटिया ने कहा कि मैं जेल में नहीं गया, लेकिन मुङो याद है कि कैसे हमारे कार्यकर्ताओं को पुलिस ढूंढकर पकड़ती और थाना में ले जाकर पीटती भी थी। मेरे कई साथी जेल में बंद कर दिए गए, लेकिन मैं जेल में उनके लिए बाहर की सूचनाएं सहित कई बार खाना आदि लेकर जरूर जाता रहा। उस आंदोलन में सक्रिय रहे कई कार्यकर्ताओं की मौत हो चुकी है जिनमें सुनील उपाध्याय, विनोद कुमार थे। उनकी भूमिका को हमेशा याद किया जाता रहेगा।

कई माह भूमिगत रहे, पकड़े गए तो एक साल रहना पड़ा जेल में: भावुक होकर संघ कार्यकर्ता अश्विनी गुप्ता कहते हैं कि उस समय इंदिरा गांधी की तानाशाही हद पार कर गई थी। 'इमरजेंसी लागू होते ही मैं उस समय जम्मू लिंक रोड में था। संघ कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी शुरू हो गई, किसी तरह से मैं भूमिगत हो गया। कई महीने तक भूमिगत रहने के बाद वह कठुआ के मुख्य बाजार में इमरजेंसी के विरोध में अगर सच कहना बगावत है तो समझो हम सब बागी हैं, के नारे लगा रहे थे, तो पुलिस उन्हें पकड़ कठुआ थाना में ले गई। रात को वहां से हीरानगर जेल में ले जाया गया। एक साल जेल में रहना पड़ा। इससे पहले प्रेस पर भी प्रतिबंध होने के कारण अखबार बंद हो चुकी थी। उन्हें ऊपर से किसी तरह सूचनाएं आदान-प्रदान करने के लिए जुगाड़ की अखबार निकालने की जिम्मेदारी दी। शहर के वार्ड 14 स्थित लकड़ी के बने फ्रेम से 50 अखबार निकाल कर कार्यकर्ताओं और लोगों में बांटने का काम किया। उस दौरान जो भी संघ कार्यकर्ता पकड़ा जाता था उसे पुलिस लगातार पीटती थी। सारी हदें पार कर दी गई थीं।

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