हिमस्खलन से निपटेंगे कश्मीर के हिमवीर, उत्तरी कश्मीर में एलओसी से सटे गुरेज सेक्टर में सेना हिमवीरों को दे रही है प्रशिक्षण
दक्षिण कश्मीर में पीरंपचाल की पहाड़ियों की बायीं तरफ कुलगाम पहलगाम अनंतनाग और शोपियां के उच्च पर्वतीय इलाकों में स्थित बस्तियां हों या फिर गुलमर्ग या फिर त्राल के ऊपरी हिस्से सर्दियों में हिमपात के बाद हिमस्खलन की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील माने जाते हैं।
श्रीनगर, नवीन नवाज। हिमपात शुरु होने के साथ ही वादी के उच्च पर्वतीय इलाकों में रहने वालों को हिमस्खलन और बर्फीले तूफान का खतरा सताने लगता है। यह जानलेवा साबित होते हैं,लेकिन अब इनसे आम लोगों को बचाने के लिए हिमवीर तैयार हो रहे हैं। यह हिमवीर कहीं बाहर से नहीं आ रहे बल्कि स्थानीय युवक हैं, जो सेना के विशेषज्ञों से हिमस्खलन में बचाव कार्य के गुर सीख रहे हैं।
दक्षिण कश्मीर में पीरंपचाल की पहाड़ियों की बायीं तरफ कुलगाम, पहलगाम, अनंतनाग और शोपियां के उच्च पर्वतीय इलाकों में स्थित बस्तियां हों या फिर गुलमर्ग या फिर त्राल के ऊपरी हिस्से, सर्दियों में हिमपात के बाद हिमस्खलन की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील माने जाते हैं। गुलमर्ग, युसमर्ग, जोजिला, बालटाल, राजदान पास और उत्तरी कश्मीर में एलअोसी के साथ सटे गुरेज, केरन, टंगडार में हर साल हिमस्खलन और बर्फीले तूफान के कारण कई लोगों को जान गंवानी पड़ती है। करीब 15 वर्ष पूर्व दक्षिण कश्मीर में हिमस्खलन ने जो तबाही मचायी थी, उसे कश्मीर में स्नो सुनामी का नाम दिया गया था। इसमें करीब 300 लोगों की मौत हुई थी। उत्तरी कश्मीर के गुरेज, टंगडार व केरन में हर साल सर्दियों में हिमस्खलन के दौरान एक आठ से 10 सैन्यकर्मी बलिदानी होते हैं। इसके अलावा इन इलाकों में औसतन हर साल एक दर्जन लोगों की मौत बर्फ के नीचे दबने से ही होती है।
आपदा प्रबंधन विभाग जम्मू कश्मीर के निदेशक आमिर अली ने बताया कि हिमस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों का अगर आप आकलन करते हैं तो पाएंगे कि यह सभी दूर-दराज के इलाके हैं। इन इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं का भी अभाव है। सड़क संपर्क सर्दियों में न के बराबर होता है। आपदा प्रबंधन विभाग समय-समय पर इन इलाकों में लोगों को हिमस्खलन के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों से अवगत कराता रहता है, लेकिन स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षित बचाव कर्मियोे का अभाव है। कईं बार समय पर बचावकर्मी मौके पर नहीं पहुंच पाते और कई लोगों को बचाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए स्थानीय स्तर पर एवलांच रेस्क्यू टीम को होना जरुरी है। सेना भी इस दिशा में अपने स्तर पर प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि किसी भी आपदा के बाद के तुरंत राहत कार्य शुरु करने से कई लोगों की जान बचती है, नुक्सान कम होता है। जितनी देरी हो, उतना नुकसान होता है। कई बार किसी घटनास्थल पर बचावकर्मियों केा पहुंचने में समय लग जाता है या वह मौसम खराब होने के कारण समय पर नहीं पहुंच पाते। ऐसे में स्थानीय प्रशिक्षित बचावकर्मी सबसे अहम साबित होते हैं।
रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल इमरान मौसवी ने बताया कि चिनार कोर के बैनर तले उत्तरी कश्मीर में एलओसी के साथ सटे गुरेज सेक्टर में सेना हिमवीरों को प्रशिक्षित कर रही है। यह प्रशिक्षण कौशल विकास कार्यक्रम के तहत ही शुरु किया गया है। पहले बैच में 23 युवाओं को शामिल किया गया है। यह पूछे जाने पर गुरेज ही क्यों तो उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा हिमपात होता है और सबसे ज्यादा हिमस्खलन की घटनाएं भी इसी क्षेत्र में होती हैं। गुरेज तहसील के विभिन्न गांवों से स्वयंसेवकों को एवालांच रेस्क्यू के लिए चुना गया है। सेना के पास जो भी अत्याधुनिक बचाव उपकरण हैं, उन्हें उनके इ्रसतेमाल की जानकारी दी जा रही है। यह प्रशिक्षण शीविर अन्य इलाकों में भी शुरु किए जाएंगे।
उन्होंने बताया कि स्थानीय हिमवीरों के लिए तैयार के किए प्रशिक्षण माड्यूल में रोप क्राफ्ट, हिमस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों में बर्फ पर कैसे चलना है, हिमस्खलन पीड़ितों की मदद, उन्हें दिए जाने वाले प्राथमिक उपचार, बर्फ के नीचे दबे लोगों को निकालने की विद्या, स्कीईंग भी शामिल है। उन्होंने बताया कि हिमवीरों का पहला बैच संभवत: गणतंत्र दिवस को प्रमाणित किया जाएगा। उस दिन यह लोग गुरेज में अपने कौशल का एक समारोह में प्रदर्शन भी करेंगे। हिमवीरों का प्रदान किया जा रहा यह प्रशिक्षण न सिर्फ लोगों की जान बचाने में मददगार साबित होगा बल्कि यह हिमवीरों के लिए रोजगार का अवसर भी बनेगा। यह रेस्क्यू आप्रेटर और ट्रैक गाइड भी बन सकते हैं। इसके अलावा किसी भी आपात स्थिति सेनिपटने में समर्थ प्रशिक्षित मानवश्रम की कमी को भी दूर करेंगे।