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राज्य के पुनर्गठन को चुनौती देने वाली याचिका खारिज

जेएनएफ जम्मू जम्मू कश्मीर का पुनर्गठन कर इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। अब्दुल गनी भट्ट ने जम्मू कश्मीर पुनर्गठन कानून 2019 को चुनौती देते हुए इसे असंवैधानिक घोषित करने की मांग की थी।

By JagranEdited By: Published: Thu, 12 Sep 2019 09:48 AM (IST)Updated: Fri, 13 Sep 2019 07:04 AM (IST)
राज्य के पुनर्गठन को चुनौती देने वाली याचिका खारिज
राज्य के पुनर्गठन को चुनौती देने वाली याचिका खारिज

जेएनएफ, जम्मू : जम्मू कश्मीर का पुनर्गठन कर इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। अब्दुल गनी भट्ट ने जम्मू कश्मीर पुनर्गठन कानून 2019 को चुनौती देते हुए इसे असंवैधानिक घोषित करने की मांग की थी। इसके साथ ही केंद्र सरकार को राज्य की स्वायत्तता में हस्तक्षेप न करने की हिदायत देने की अपील की थी।

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हाईकोर्ट ने दोनों मांगों को ठुकराते हुए याचिका खारिज कर दी। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि जब जम्मू कश्मीर का भारत में विलय हुआ तो रक्षा, विदेश मामलों व संचार सेवाओं को छोड़ संसद की ओर से पारित सभी कानून व आदेश राज्य में सीधे प्रभावी नहीं होने की मंजूरी दी गई थी। इसके लिए राज्य सरकार की मंजूरी अनिवार्य कर दी गई। केंद्र सरकार ने इन शर्तो का उल्लंघन कर जम्मू कश्मीर का पुनर्गठन किया है, लिहाजा इसे खारिज किया जाना चाहिए।

याची ने कश्मीर घाटी और कुछ अन्य जिलों में लगाए गए प्रतिबंधों को हटाने की मांग करते हुए कहा कि जनता को बेखौफ होकर जीने की इजाजत मिलनी चाहिए। लोगों को उनके मौलिक अधिकार मिलने चाहिए। राज्य के बाहर जेलों में बंद कैदियों को वापस लाने और उनके मामलों की फास्ट ट्रैक सुनवाई होनी चाहिए। याची ने कहा कि पीड़ितों को कुछ बड़े लोगों के कहने पर हिरासत में लिया गया। लिहाजा ऐसे लोगों को सजा मिलनी चाहिए और पीड़ितों को उचित मुआवजा मिलना चाहिए। कश्मीर की जनता को गैर कानूनी ढंग से घरों में बंद किए जाने का आरोप लगाते हुए याची ने उन्हें उचित मुआवजा देने की मांग की। कश्मीर में टेलीफोन, मोबाइल, ब्राडबैंड, इंटरनेट व मीडिया पर लगे प्रतिबंध हटाने के साथ लोगों को सूचना का मौलिक अधिकार देने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही इन मुद्दों पर कई याचिकाएं दायर

हाईकोर्ट के जस्टिस अली मोहम्मद मार्गे ने पूरे मामले पर गौर करने के बाद पाया कि याची ने जो मुद्दे उठाए हैं, उन सभी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही कई याचिकाएं दायर हैं। सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यीय बेंच ने इन याचिकाओं पर सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस के पास भेजते हुए इस मामले में पांच सदस्यीय बेंच गठित करने की सिफारिश की है। इस बेंच को अब अक्टूबर 2019 के पहले सप्ताह में इन पर सुनवाई करनी है। जहां तक कश्मीर में इंटरनेट-मीडिया पर प्रतिबंध का सवाल है तो इसे लेकर भी सुप्रीम कोर्ट में केस दर्ज है, जिस पर 16 सितंबर को फैसला आना है। कश्मीर के राजनेताओं की रिहाई पर 16 को सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई

इसके अलावा कश्मीर के राजनेताओं और अन्य की रिहाई पर भी 16 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। ऐसे में कोर्ट के पास दो ही विकल्प बचते हैं, या तो मौजूदा याचिका पर सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक स्थगित किया जाए या खारिज कर दिया जाए। हाईकोर्ट ने कहा कि जबमौजूदा याचिका में उठाए गए सभी मुद्दे पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं तो ऐसे में इन पर सुनवाई का कोई औचित्य नहीं है। याची चाहे तो सुप्रीम कोर्ट में अपनी मांग को लेकर याचिका दायर कर सकता है।


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