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मठ व मंदिर का सरकार करेगी संरक्षण, पुरातत्व सर्वेक्षण ने जम्मू कश्मीर की दो धरोहरों को शामिल किया है राष्ट्रीय धरोहर में

जम्मू संभाग के कठुआ जिले में स्थित त्रिलोचननाथ मंदिर को भी इसमें शामिल किया है। इन्हें मिलाकर देश में स्मारकों की संख्या 3586 से बढ़कर 3697 हो गई है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sun, 11 Aug 2019 11:11 AM (IST)Updated: Sun, 11 Aug 2019 11:11 AM (IST)
मठ व मंदिर का सरकार करेगी संरक्षण, पुरातत्व सर्वेक्षण ने जम्मू कश्मीर की दो धरोहरों को शामिल किया है राष्ट्रीय धरोहर में
मठ व मंदिर का सरकार करेगी संरक्षण, पुरातत्व सर्वेक्षण ने जम्मू कश्मीर की दो धरोहरों को शामिल किया है राष्ट्रीय धरोहर में

जम्मू, राहुल शर्मा । लद्दाख के वानला गांव में स्थित ऐतिहासिक बौद्ध मठ वानला गोंपा को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने राष्ट्रीय धरोहर में शामिल किया है। बौद्ध संस्कृति व बुद्ध की शिक्षाओं को दर्शाता मठ उन 108 मठों की श्रेणी में आता है, जिनका निर्माण 958-1055 ईस्वी में किया गया। लद्दाख के राजा के सहयोग से मठ का निर्माण किया गया। मठ का निर्माण कार्य का-डैम-पा ने शुरू करवाया, परंतु किन्हीं कारणों से इसका काम रोक दिया गया। बाद में जी-लूग्स-पा ने इसे पूरा किया। इसके अलावा जम्मू संभाग के कठुआ जिले में स्थित त्रिलोचननाथ मंदिर को भी इसमें शामिल किया है। राष्ट्रीय स्मारक होने के नाते मठ व मंदिर के संरक्षण की जिम्मेदारी सरकार उठाएगी। इन्हें मिलाकर देश में स्मारकों की संख्या 3586 से बढ़कर 3697 हो गई है।

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वानला गोंपा का इतिहास  

वानला गांव में स्थित ऐतिहासिक बौद्ध मठ वानला गोंपा का निर्माण 1000 ईस्वी पूर्व हुआ था। यह मठ बुद्ध की शिक्षाओं का तिब्बत भाषा में अनुवाद करने वाले लामा रिनचेन जेंगपो के समय से पहले का बताया जाता है। यह मठ लामायुरू मठ के पास स्थित है। तीन मंजिला मठ को अवलोकितेश्वर मंदिर से भी जाना जाता है। इससे पहले यह द्रिगुंग काग्यू के नाम से प्रसिद्ध था। इसका प्रार्थना कक्ष लोगों के लिए खुला है। मठ में चोवो-जे-पलदान आतिशा की छवि भी देखी जा सकती है। दरअसल वानला लामायुरू का ही उपमठ है, यानी इसे उसी का भाग माना जाता है। इस मठ की देखरेख लामायुरू के भिक्षु ही करते हैं।

क्या है खास 

मठ का मुख्य आकर्षण 11 सिर वाले महाकरुण या अवलोकितेश्वर की तीन मंजिला छवि है। गोंपा में बुद्ध, बोधिसत्वों और धार्मिक देतवाओं के कई चित्र हैं। बुद्ध का आशीर्वाद लेने के लिए सभी मठों के लामा व स्थानीय लोग यहां आते हैं। यह मठ लेह से 65 किलोमीटर दूर खलसी तहसील में है। इस मठ की संरचना अद्भुत है। पहाड़ की चोटी पर निर्मित मठ की वास्तुकला ऐसी है कि वर्षो बीतने के बाद भी यह ऐतिहासिक इमारत आज भी वास्तु कला का एक अनोखा एवं अनूठा उदाहरण है। वैसे तो इसकी तीन मुख्य संरचनाएं हैं, लेकिन बीच की संरचना महत्वपूर्ण है। इसका डिजाइन लद्दाख में अलची मठ के समान है। यह स्थानीय लोगों व पर्यटकों के लिए हमेशा आकर्षण का केंद्र रहा है।

मठ की हस्त कलाएं, पेंटिंग भी है खास  

सदियों पुराने मठ में हस्त कलाएं और पेंटिंग शामिल हैं। जो चीजें पर्यटकों को सबसे ज्यादा प्रभावित करती हैं वह है इसकी बनावट। वर्षो पुराना होने के बावजूद मठ में लोक कला व संस्कृति को संजोने के साथ बुद्ध के जीवन को दर्शाने वाले टेक्सटाइल प्रिंट हैं। मठ के निचले भाग को हवादार बनाने के लिए खिड़की के निचले स्तर को छत के बीच में एक कटआउट छेद के माध्यम से हवादार बनाया गया है। लकड़ी से निर्मित इमारत पर मिट्टी की छत है, पर इसे मजबूत बनाने के लिए स्तंभों के साथ क्रॉस सेक्शन वाले खंभे लगाए गए हैं।

वानला मठ जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने राष्ट्रीय धरोहर घाोषित किया

 

कठुआ । बसोहली स्थित त्रिलोचननाथ मंदिर का शानदार इतिहास है। 13वीं सदी में राजा आनंदपाल ने मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर में भगवान शंकर तीन नेत्र के रूप में विराजमान हैं। यह मंदिर महादेरा नाम से चर्चित है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस मंदिर को राष्ट्रीय धरोहर में शामिल किया है। प्रसिद्ध लेखक ओमकार पाधा कंचन बताते हैं कि 13वीं सदी से पहले बसोहली बिलावर के अधीन थी। उसी समय मंदिर का निर्माण हुआ। मात्र इसी मंदिर में भगवान शंकर तीन नेत्र के रूप में विराजमान हैं। इसे त्रिलोचननाथ के नाम से पुकारा जाता था। जम्मू में 1009 से 1051 तक राजा अपतार सिंह का शासन रहा। उसके बाद उनके बेटे जय पाल राजा रहे। जयपाल के बाद उनके बेटे आनंदपाल राजा बने। आनंदपाल के मोहम्मद गजनवी से पराजित होने पर जम्मू के राजा ने उसे बसोहली की जागीर सौंप दी।

पाधा बताते हैं कि आनंदपाल के काल में बसोहली स्थित महादेरा नामक छोटे से गांव में प्राचीन मंदिर का निर्माण हुआ। यह मंदिर बसोहली के दक्षिण में दो किलोमीटर की दूरी पर रावी किनारे पश्चिमी तट पर स्थित है। मंदिर के इतिहास के बारे में मौजूदा पीढ़ी को कोई ज्ञान नहीं है। इसका इतिहास सिर्फ जिले में इक्का-दुक्का इतिहास की जानकारी रखने वाले ही जानते हैं। मंदिर बसोहली के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में गिना जाता है। सरकार ने इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर बसोहली को उसकी खोई हुई पहचान दिलाने का बड़ा कदम उठाया है। इससे बसोहली में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। कठुआ से मंदिर की दूरी 80 किलोमीटर और जम्मू से 160 किलोमीटर है।

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