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मां वैष्णो देवी श्राइन के सरकारी प्रबंधन को हाईकोर्ट में चुनौती

एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में श्री माता वैष्णो देवी श्राइन के बारीदारों ने इस श्राइन (तीर्थस्थल) के सरकारी प्रबंधन को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। बारीदार संघर्ष कमेटी के प्रधान शाम सिं

By Rahul SharmaEdited By: Published: Thu, 27 Aug 2020 10:33 AM (IST)Updated: Thu, 27 Aug 2020 10:33 AM (IST)
मां वैष्णो देवी श्राइन के सरकारी प्रबंधन को हाईकोर्ट में चुनौती
मां वैष्णो देवी श्राइन के सरकारी प्रबंधन को हाईकोर्ट में चुनौती

जम्मू, जेएनएफ : एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में श्री माता वैष्णो देवी श्राइन के बारीदारों ने इस श्राइन (तीर्थस्थल) के सरकारी प्रबंधन को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। बारीदार संघर्ष कमेटी के प्रधान शाम सिंह ने 54 अन्य बारीदारों के साथ इस श्राइन पर सरकार के अधिकार को चुनौती दी है। इसमें कहा है कि यह श्राइन हिंदुओं का श्राइन है। सरकार को कोई हक नहीं बनता कि वह इसका प्रबंधन व संचालन करें। एडवोकेट अंकुर शर्मा के माध्यम से दायर इस याचिका को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर सरकार के विधि विभाग के सचिव और श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के चीफ एग्जीक्यूटिव आफिसर (सीईओ) को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में पक्ष रखने का निर्देश दिया है।

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जम्मू कश्मीर श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड एक्ट 1988 को चुनौती देते हुए याचिका में कहा गया है कि यह एक्ट श्राइन का नियंत्रण  हिंदुओं से छीनकर सरकार को सौंपता है। याचिका में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत श्री माता वैष्णो देवी श्राइन के साथ  हिंदुओं की सभी संपत्तियां  हिंदुओं के हवाले करने की मांग की गई है। श्राइन बोर्ड पर कुप्रबंधन का आरोप लगाते हुए भी कहा गया है कि 1986 से लेकर अब तक श्राइन बोर्ड का किसी संवैधानिक, निष्पक्ष व प्रमुख ऑडिट संस्थान से ऑडिट करवाया जाए।

श्राइन पर बारीदारों का अधिकार बताया 

श्री माता वैष्णो देवी श्राइन पर पूरी तरह से बारीदारों का अधिकार बताते हुए एडवोकेट अंकुर शर्मा ने दलील दी कि पंडित श्रीधर जी के अध्यात्मिक मार्गदर्शन में त्रिकुटा की चोटियों की गोद में बसे हंसाली गांव के बारीदारों ने इस पवित्र गुफा की खोज की थी। बारीदारों का मानना है कि पंडित श्रीधर महाभारत काल से संबंधित थे। महाभारत काल में ही उन्होंने इस पवित्र गुफा की खोज करते हुए श्राइन की स्थापना की थी। उन्होंने कहा कि बारीदारों द्वारा इस पवित्र गुफा की खोज एक सच है, जिसे सब जानते है और वर्ष 1986 तक बारीदार ही इस श्राइन का प्रबंधन करते रहे। इसके बाद इसे सरकार ने अपने अधीन ले लिया और बाद में श्राइन बोर्ड एक्ट 1988 बना दिया गया।

याचिका में कई आरोप लगाए

एडवोकेट अंकुर शर्मा ने पिछली सरकारों पर हिंदुओं की संपत्ति पर कब्जा करने का आरोप लगाते हुए कहा कि प्रदेश में जिस तरह मुस्लिम व क्रिश्चियन समुदाय के धर्मस्थलों से सरकार दूरी बनाए रखती है, उसी तरह  हिंदुओं के श्राइन से भी दूरी होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट भी कई बार धार्मिक मामलों को राजनीति से दूर रखने का निर्देश दे चुका है। उनका कहना है कि बारीदारों पर ही कुप्रबंधन का आरोप लगाते हुए सरकार ने श्राइन का प्रबंधन अपने हाथ में लिया था, लेकिन श्राइन बोर्ड में ही आज सबसे अधिक भ्रष्टाचार फैला हुआ है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में दूसरे धर्मों के लोगों को अपनी धार्मिक यात्राओं व संपत्ति का संरक्षण करने का अधिकार दिया गया, लेकिन  हिंदुओं  के श्राइन पर कब्जा किया गया।

यह हैं बारीदार

बारीदार श्री माता वैष्णो देवी के पुजारी (सेवक) हैं। ये सदियों से श्री माता वैष्णो देवी के दरबार में पूजा-अर्चना करते रहे थे। वह श्रद्धालुओं को भी माता के दरबार तक ले जाने, उनके रहने, खाने-पीने की व्यवस्था करते थे। समय के साथ इनका कार्य सिर्फ पूजा-अर्चना तक सीमित हो गया। चढ़ावे के पैसे भी इन्हीं को मिलते थे। इनका परिवार बढऩे पर भी उन सभी को माता के दरबार में बारी-बारी से पूजा-अर्चना व सेवा करने का मौका मिलता रहा। बाद में यही सेवक बारीदार कहे जाने लगे। अब यह बारीदार तीर्थस्थल पर अपना अधिकार मांग रहे हैं। 


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