ताकि धरती के स्वर्ग में न हो जहर की खेती, सरकार ने बनाई यह नीति
प्रशासन इस बात पर विचार कर रहा है कि नशे की खेती करने वालों को कोई वैकल्पिक व्यवस्था दी जाए। जिससे ये लोग अफीम और भांग की खेती न करें।
जम्मू, राहुल शर्मा। पंजाब की तरह ही जम्मू-कश्मीर में भी नशे की समस्या लगातार बढ़ रही है। पिछले कुछ समय से राज्य प्रशासन भी इसे लेकर चिंता जता चुका है। जम्मू-कश्मीर के विभिन्न भागों विशेषकर कश्मीर संभाग में कई जगहों पर अवैध रूप से अफीम और भांग की खेती हाेती है। राज्य प्रशासन ने अब इस खेती से जुड़े लोगों के पुनर्वास की योजना बनाई है। प्रशासन इस बात पर विचार कर रहा है कि नशे की खेती करने वालों को कोई वैकल्पिक व्यवस्था दी जाए। जिससे ये लोग अफीम और भांग की खेती न करें। अगर ऐसा होता है तो इससे भी नशे की समस्या कुछ हद तक खत्म की जा सकती है।
जिला स्तर पर बनाई कमेटियां
कश्मीर संभाग में प्रशासन ने इस समस्या से निपटने के लिए जिला स्तर पर कमेटियां गठित की हैं। डिवीजनल कमिश्नर कश्मीर बसीर अहमद खान के निर्देश पर बनी कमेटियों में एडिशनल डिप्टी कमिश्नर इनके चेयरमैन होंगे जबकि एक्साइज और टैक्सटेशन आफिसर मेंबर सेक्रेटरी होंगे। इसके अलावा कृषि, बागवानी, उद्योग, मेडिसीनल प्लांट बोर्ड, सीआईडी, समाज कल्याण विभाग और शिक्षा विभाग के उच्चाधिकारी कमेटी के सदस्य होंगे। सभी कमेटियों को निर्देश दिए गए कि वे एक सप्ताह के भीतर बैठक आयोजित करें। इस धंधे से जुड़े लोगों की प्रोफाइल तैयार करें।
नशे की खेती करने वालों का होगा पुनर्वास
इस खेती में शामिल परिवारों को वैकल्पिक तौर पर कौन से बीज दिए जाएं जिनकी वे खेती करें इस पर भी प्रशासन गंभीरता से विचार कर रहा है। उनके पुनर्वास के लिए नकद रुपये देने पर भी विचार हो रहा है। राज्य प्रशासन कश्मीर विश्वविद्यालय में समाज विज्ञान विभाग के एचओडी को कमेटी में शामिल करवाकर नशे की खेती करने वालों को काउंसलिंग भी करवाएगा ताकि ये लोग इस धंधे से दूर रहें।
डिवीजनल स्तर की कमेटी भी बनी
कमेटियां डिवीजनल कमिश्नर को पंद्रह दिनों के बाद रिपोर्ट भेजेंगी ताकि आगे की कार्रवाई की जा सके। हर महीने इन कमेटियों की बैठक भी होगी। इसके अलावा डिवीजनल कमिश्नर ने एक डिवीजनल स्तर की कमेटी भी गठित की है। इसके चेयरमैन एडिशनल कमिश्नर कश्मीर होंगे। इसमें एग्रीकल्चर, हार्टीकल्चर, फ्लोरीकल्चर, एग्री इंडस्ट्री डेवलपमेंट, मेडिसीनल प्लांट बोर्ड के डायरेक्टर सदस्य होंगे। सीआईडी, समाज कल्याण विभाग और शिक्षा विभाग के अधिकारी भी कमेटी के सदस्य होंगे। डिवीजनल कमिश्नर ने पुलिस को निर्देश दिए कि वह अफीम और भांग की खेती के खिलाफ चलने वाले अभियानों में एफआईआर दर्ज करें।
दस सालों में 5 से 40 प्रतिशत हुई नशेड़ियों की संख्या
2008 के बाद से घाटी में नशेड़ी युवाओं की संख्या पांच प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई है। हालांकि सेना ड्रग्स के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाकर युवाओं को ड्रग्स के जाल में फंसने से रोकने की कोशिश में लगी है। बारामूला में सेना पिछले छह साल से स्थानीय लोगों को इस भयानक आदत से बाहर निकालने के लिए डी-एडिक्शन सेंटर भी चला रही है। यह सेंटर लोगों को ड्रग्स के दुष्प्रभाव के बारे में बताता है और लोगों को इस लत से छुटकारा दिलाने में मदद करता है। सेना के ड्रग डी-एडिक्शन काउंसलिंग सेंटर के प्रमुख अर्जुनंद मजीद ने कहा कि युवाओं को नशे की कुएं में धकेलने में तनाव प्रमुख भूमिका निभाता है। ड्रग्स की आसान उपलब्धता हालात और खराब कर देती है।
आतंकवाद के साए में फल-फूल रहा नशे का कारोबार
दक्षिण कश्मीर में आतंकवाद के साए में नशीले पदार्थों का यह अवैध कारोबार फल-फूल रहा है। इस क्षेत्र में पुलिस एवं अन्य सुरक्षा एजेंसियों का पूरा ध्यान कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने पर ही केंद्रित रहता है। ऐसे में नशे जैसे गैर-कानूनी कारोबार की तरफ पुलिस भी ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती। सूत्रों का कहना है कि असुरक्षा के इस वातावरण में स्थानीय लोगों ने वन भूमि के काफी बड़े भू-भाग पर अवैध कब्जा करके वहां अफीम की खेती शुरू कर दी है। अपनी जान को खतरा होने की आशंका के चलते संबंधित विभागों के अधिकारी भी इन स्थानों पर जाने से परहेज करते हैं। इस प्रकार कश्मीर में आतंकवाद की तरह नशा उत्पादन भी तेजी से अपनी जड़ें फैला रहा है।
आतंकवाद में इस्तेमाल
कश्मीर के विभिन्न क्षेत्रों में नशीले पदार्थो की खेती से आने वाले रुपयों का इस्तेमाल आतंकवाद का पोषण करने में होता है। आतंकवाद का दौर शुरू होने के बाद ही दक्षिण कश्मीर में अफीम व भांग की खेती को बढ़ावा मिला। कई बार जब संबंधित विभागों के अधिकारी नशीले पदार्थो की खेती को नष्ट करने के लिए जाते हैं तो उन्हें निशाना भी बनाया जाता है।