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केंद्रीय टीम के दौरे से पहले जीएमसी ने खरीदे 200 ऑक्सीजन सिलेंडर

अवधेश चौहान जम्मू जम्मू संभाग में कोरोना संक्रमण से हुई मौतों के बाद डॉक्टरों पर लग र

By JagranEdited By: Published: Sun, 20 Sep 2020 06:01 AM (IST)Updated: Sun, 20 Sep 2020 06:01 AM (IST)
केंद्रीय टीम के दौरे से पहले जीएमसी ने खरीदे 200 ऑक्सीजन सिलेंडर
केंद्रीय टीम के दौरे से पहले जीएमसी ने खरीदे 200 ऑक्सीजन सिलेंडर

अवधेश चौहान, जम्मू

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जम्मू संभाग में कोरोना संक्रमण से हुई मौतों के बाद डॉक्टरों पर लग रहे लापरवाही के आरोपों के बीच केंद्र सरकार की ओर से भेजी गई डॉक्टरों की टीम ने जीएमसी में ऑक्सीजन कमी को मरीजों की जान पर आफत बनने का बड़ा कारण माना है। जीएमसी में केंद्रीय टीम के पहुंचने से पहले ही अस्पताल ने 200 ऑक्सीजन सिलेंडरों का भंडारण कर लिया, लेकिन अस्पताल में लिक्विड ऑक्सीजन प्लांट या दो स्टोरेज टैंक बनाने पर प्रबंधन अब भी खामोश है। जाहिर है बाजार से खरीदे गए ऑक्सीजन के सिलेंडरों से समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सकता है।

गौरतलब है कि जीएमसी अस्पताल में कंसंट्रेटेड ऑक्सीजन का प्लांट लगा हुआ है। कंसंट्रेटेड ऑक्सीजन की शुद्धता, लिक्विड ऑक्सीजन से कमतर होती है। ऐसे में यह मरीजों की जान को खतरे में डाल सकती है। ऐसे में मौजूदा परिस्थितियों में लिक्विड ऑक्सीजन प्लांट के सख्त जरूरत है। सूत्रों के मुताबिक जीएमसी में कंसंट्रेटेड ऑक्सीजन प्लांट 1200 एलएमपी (लीटर पर मिनट ऑक्सीजन फ्लो) की जरूरत है, लेकिन कोरोना संक्रमण के दौरान इसकी मांग 6000 एलएमपी तक पहुंच गई है। विडंबना यह है कि मरीजों की बढ़ती संख्या के बीच प्लांट से श्रमता से अधिक 1700 से 1800 एलएमपी ऑक्सीजन निकालने को कहा जा रहा है। कंसंट्रेटेड ऑक्सीजन हमारे आसपास की हवा से निकाली जाती है। तकनीकी जानकारों के मुताबिक अगर प्लांट की क्षमता से अधिक ऑक्सीजन निकालेंगे, तो इसकी शुद्धता भी कम हो जाती है, जिससे मरीजों की सांस फूलने लगती है। इसमें नाइट्रोजन की कुछ मात्रा भी मिल सकती है, जो मरीजों के लिए मुफीद साबित नहीं होती।

जीएमसी में कैसी तैयार की जा रही है कंसंट्रेटेड ऑक्सीजन

जियो लाइट केमिकल की मदद से वातावरण में मौजूद गैसों से ऑक्सीजन को अलग कर इसका भंडारण किया जाता है। इसे कंप्रेस कर बड़े सिलेंडरों में भरा जाता है। इसी को कंसंट्रेटेड ऑक्सीजन कहा जाता है। जियो लाइट केमिकल विदेश से मंगाया जाता है। अगर हम प्लांट की क्षमता से ज्यादा वातावरण से ऑक्सीजन लेंगे तो इसकी शुद्धता की गारंटी नहीं होती है। चौंकाने वाली बात यह है कि अस्पताल प्रबंधन भी कोरोना के बीच ऑक्सीजन की कमी को देखते हुए अधिक ऑक्सीजन के उत्पादन पर जोर दे रहा है, ताकि वेंटीलेटर पर रखे गए मरीजों को पर्याप्त ऑक्सीजन मिल सके। -----------

लिक्विड ऑक्सीजन के दो टैंक लगाने के लिए जल्द खुल सकते हैं टेंडर

लिक्विड ऑक्सीजन के लिए जीएमसी में दो टैंक लगाने के लिए जल्द टेंडर खुल सकते हैं। जब ऑक्सीजन को लिक्विड में बदलते हैं, तो इसे -297 डिग्री फारेंहाइट या -183 डिग्री सेंटीग्रेड तक ठंडा किया जाता है। अस्पताल में ऑक्सीजन या वेंटीलेटरों रखे मरीजों की ऑक्सीजन सप्लाई की चेन टूटती है, तो उस गैप के दौरान मरीजों की हालत बिगड़ती है। कई बार मार्केट से खरीदे गए सिलेंडर समय पर नहीं पहुंचते। ऐसे में मरीज की जान पर बन सकती है। इसके लिए 200 ऑक्सीजन सिलेंडरों का भंडारण तो कर लिया गया, लेकिन लिक्विड ऑक्सीजन के दो टैंक नहीं बन जाते, तब तक मरीजों की जिदगी मोल पर खरीदी ऑक्सीजन पर ही चलेगी।


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