पौष्टिक आटे के लिए आज भी ‘घराट’ पहली पसंद, बिना बिजली के चलने वाले घराट पहाड़ी क्षेत्रों की हैं शान
लोगाें का कहना है कि घराट में पिसाई में देरी तो लगती है लेकिन इसका आटा बहुत स्वादिष्ट होता है। जल्दी हो तो चक्की पर जाते हैं। अन्यथा घराट से आटा पिसाना उनकी प्राथमिकता रहता है।
जम्मू, अंचल सिंह: आधुनिकता के इस युग में भी पहाड़ी इलाकों में चलने वाले घराट (पनचक्की) अपनी पहचान बनाए हुए हैं। घराट से पीसा हुआ आटा आज भी ग्रामीणों की पहली पसंद है। इतना ही नहीं शहरों में रहने वाले उनके रिश्तेदार भी इस आटे की मांग करते हैं।
अफसोस की बात यह है कि बिजली से चलने वाली चक्कियां अब इनकी जगह लेती जा रही हैं। समय की कमी और अधिक मेहनत होने के चलते घराट कम होते जा रहे हैं लेकिन इनमें पिसे आटे में पौष्टिकता भरपूर रहती है। हालांकि अब इन्हें चलाने में
भी संचालकों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। खड्डों व नदी के पानी से चलने वाले घराटों के बाहर पहले लोगों की कतारें देखने को मिलती थी। घराट बिना बिजली से चलते हैं। इनमें तैयार होने वाला आटा स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होता है। पहले दिन में इनमें गेहूं या मक्की छोड़ आते हैं और अगले दिन अथवा निर्धारित समय पर आकर अपनी कनक अथवा मक्की से ताजा आटे को ले जाते हैं।
जिला रियासी, राजौरी, पुंछ, ऊधमपुर में करीब दो सौ घराट चल रहे हैं। सरकार की तरफ से इन्हें प्रोत्साहित करने के लिए अभी तक कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए गए हैं। लोगाें का कहना है कि घराट में पिसाई में देरी तो लगती है लेकिन इसका आटा बहुत स्वादिष्ट होता है। जल्दी हो तो चक्की पर जाते हैं। अन्यथा घराट से आटा पिसाना उनकी प्राथमिकता रहता है।
घराट (पनचक्की) का उपयोग अत्यन्त प्राचीन: पहाड़ी क्षेत्रों में घराट (पनचक्की) का उपयोग अत्यन्त प्राचीन है। पानी से चलने के कारण इसे ''घट'' या ''घराट'' कहते हैं। घराट सदानीरा नदियों के तट पर बनाए जाते हैं। कूल द्वारा नदी से पानी लेकर उसे लकड़ी के पनाले में प्रवाहित किया जाता है। जिससे पानी में तेज प्रवाह उत्पन्न हो जाता है। इस प्रवाह के नीचे पंखेदार चक्र रखकर उसके ऊपर चक्की के दो पाट रखे जाते हैं। निचला चक्का भारी एवं स्थिर होता है। पंखे के चक्र का बीच का ऊपर उठा नुकीला भाग ऊपरी चक्के के खांचे में लोहे की खपच्ची में फंसाया जाता है। पानी के वेग से ज्यों ही पंखेदार चक्र घूमने लगता है, चक्की का ऊपरी चक्का घूमने लगता है।
अद्भूत है घराट निर्माण की तकनीक: घराट के निर्माण के लिए सर्वप्रथम नदी के किनारे किसी उपयुक्त स्थान तक कूल द्वारा पानी पहुंचाया जाता है। उस पानी को फिर ऊंचाई से लगभग 45 डिग्री के कोण पर स्थापित लकड़ी के पनाले में प्रवाहित किया जाता है। पनाले के मुंह पर बांस की जाली लगी रहती है। उससे पानी में बहकर आने वाली घास-पात या लकड़ी वहीं अटक जाती है। पनाले को पत्थर की दीवार पर टिकाया जाता है। कूल के पानी को तोड़ने के लिए पनाले के पास ही पत्थर या लकड़ी की एक तख्ती भी होती है। इसे पानी की विपरीत दिशा में लगाकर जब चाहे पनाले में प्रवाहित कर दिया जाता है या पनाले में पानी का प्रवाह रोककर कूल तोड़ दी जाती है। पनाला ऐसी लकड़ी का बनाया जाता है, जो पानी में शीघ्र सड़े-गले नहीं। स्थानीय उपलब्धता के आधार पर पनाले की लकड़ी चीड़, जामुन आदि किसी की भी हो सकती है।
घराट का आटा होता है पौष्टिक: जिला रियासी के पौनी ब्लाक के गांव अलेया में घराट के संचालक भरत सिंह का कहना है कि घराट आज भी लोगों की पहली पसंद हैं। चूंकि अब पुराना समय नहीं रहा। बच्चे नौकरियों के लिए घरों से निकल जाते हैं। समय की कमी रहती है तो फिर लोग चक्की में आटा पिसवाने को तरजीह देते हैं। अलबत्ता घराट का आटा ज्यादा पौष्टिक व स्वादिष्ट होता है। घराट पहाड़ी क्षेत्रों की शान हैं।
घराट के आटे के बाद कुछ नहीं आता पसंद : घराट में काम करने वाले पृथ्वी सिंह, बशीर अहमद का कहना है कि जो घराट का आटा खा लेता है, उसे चक्की के आटे का स्वाद नहीं आता। घराट के आटे से बच्चा भी रोटी बना सकता है। चक्की के आटे से मक्की की रोटी बनाना मुश्किल होगी लेकिन इसके आटे से आसानी से मक्की की रोटी न जाती है। इसके लिए हम नाले, नदी को बांध का पानी को कूहल से लाते हुए घराट तक पहुंचाते हैं। फिर इससे घराट चलता है।