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Gulam Nabi Azad: कभी गांधी परिवार के प्रमुख सिपहसालार थे, अब कांग्रेस में बदलाव की आवाज बन रहे गुलाम नबी आजाद

गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के संक्रमणकाल और सियासी उठापटक के दौर में पार्टी को बचाने के लिए नई और बुलंद आवाज के अगुवा बनकर उभरे हैं। पहली बार कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र और सांगठनिक मजबूती की खुलकर बात हो रही है। समझें क्‍या है आजाद के इस साहस का राज।

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Published: Sun, 07 Mar 2021 04:30 AM (IST)Updated: Sun, 07 Mar 2021 04:30 AM (IST)
Gulam Nabi Azad: कभी गांधी परिवार के प्रमुख सिपहसालार थे, अब कांग्रेस में बदलाव की आवाज बन रहे गुलाम नबी आजाद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर सभी सियासी दलों के दिग्‍गज गुलाम नबी आजाद को भरपूर मान-सम्‍मान देते हैं।

नवीन नवाज, जम्‍मू : पिछले चार दशक में कांग्रेस की सियासत ने एक के बाद एक कई उलटफेर देखे और अब तक सत्‍ता का केंद्र गांधी परिवार के सामने पहली बार सीधी चुनौती आती दिख रही है। इंदिरा गांधी से लेकर राहुल और प्रियंका के दौर तक हर उतार-चढ़ाव के बीच गुलाम नबी आजाद एक चतुर सलाहकार, कुशल संगठनकर्ता और संकटमोचक के तौर पर साथ खड़े दिखे। संगठन और सरकार में हर छोटे से बड़े पद पर रहने के बावजूद न परिवारवाद की सामंती सोच उन्‍हें छू पाई और न कीचड़ उछालने की सियासत। धुर सियासी विरोधी होने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर सभी सियासी दलों के दिग्‍गज उन्‍हें भरपूर मान-सम्‍मान देते हैं। राज्‍यसभा से विदाई के दौरान प्रधानमंत्री द्वारा दिखाई भावुकता उनकी इसी सियासी कमाई का जीवंत सुबूत है।

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जम्मू संभाग में आतंकग्रस्त रहे जिला डोडा (Doda District) के एक अत्यंत पिछड़े और छोटे से गांव सोती भलेसा में सात मार्च 1949 को पैदा हुए गुलाम नबी आजाद रविवार को अपना 72वां जन्मदिन (Gulam Nabi Azad 72nd birthday) मना रहे गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के संक्रमणकाल और तेजी से सियासी उठापटक के इस दौर में पार्टी को बचाने के लिए नई और बुलंद आवाज के अगुवा बनकर उभरे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से पहली बार कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र और सांगठनिक मजबूती की खुलकर बात हो रही है। गांधी परिवार के समक्ष पहली बार पार्टी के भीतर और बाहर बड़ी चुनौती  पेश आती दिख रही है।

एक तरफ कई बड़े नेता कांग्रेस की हालत पर बोलने से कतरा रहे हैं वहीं आजाद अपने अन्‍य शीर्ष नेताओं को साथ लेकर हर बिंदु पर खुलकर बात कर रहे हैं। सियासी पंडित भले ही जी-23 की चिट्ठी से जम्‍मू के सम्‍मेलन में सियासी गुणा-भाग खोजें लेकिन आजाद इसे संगठन की मजबूती के लिए अपरिहार्य बता रहे हैं। जम्‍मू में शांति मिशन के बहाने जुटे दिग्‍गजों और समर्थकों की भीड़ के बीच उन्‍होंने फिर से पार्टी को ग्राउंड जीरो पर जाकर मजबूत बनाने की वकालत की।
जम्‍मू कश्‍मीर में उनसे जुड़े कई लोग आजाद के राष्‍ट्रीय फलक पर इस उभार को लेकर अधिक हतप्रभ नहीं हैं। वह मानते हैं कि पार्टी में आजाद ही हैं जो खुलकर बात कह पाने में सक्षम हैं। एक उनकी बात पार्टी का हर कार्यकर्ता समझ रहा है, दूसरा वह किसी दबाव में नहीं आते। एक ओर बहुत से नेता अपने बच्‍चों और रिश्‍ते-नातों को पार्टी में फिट करने की जुगत में हैं। इसके विपरीत गुलाम नबी वंशवाद की इस सियासी बीमारी से आजाद हैं। दूसरा उनका चेहरा इतना बड़ा है कि पार्टी में हर कार्यकर्ता उनकी बात को सुनता है। यह आवश्‍यक भी है कि आवाज पार्टी के हित में अपनी आवाज खुलकर कहें।

उनके सीने में दफन हैं कांग्रेस के कई राज :  
जम्मू कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ प्रो. हरिओम ने कहा कि कांग्रेस उन्हेंं नहीं नकार सकती, वह कांग्रेस के हर नेता के राजदार हैं। गांधी परिवार के करीबी होने के कारण बहुत सी संवेदनशील राज उनके सीने में दफन हैं। गांधी परिवार एक तरह से नरसिम्हा राव के दौर में कांग्रेस में अप्रासंगिक हो चुका था, लेकिन आजाद ने ही अपने साथियों संग गांधी परिवार के साथ कांग्रेस को मजबूत बनाया था।



एक तरह से आजाद ने गांधी परिवार के वर्चस्व को दी चुनौती :
आजाद की सियासत पर नजर रखने वाले अहमद अली फैयाज ने कहा कि आप एलओसी के साथ सटे कुपवाड़ा मे जाएं या फिर लखनपुर में, आपको आजाद के कामकाज के प्रशंसक हर जगह मिलेंगे। वह कांग्रेस में काफी मजबूत हैं, यही कारण कि उन्होंने जब संगठनात्मक सुधार की बात की तो कोई खुलकर उनके खिलाफ नहीं बोल पाया। एक तरह से उन्होंने गांधी परिवार के वर्चस्व को चुनौती दी है, लेकिन उन्होंने कभी गांधी परिवार के खिलाफ बात नहीं की। वह आज भी सोनिया गांधी को अपना नेता मानते हैं।

कांग्रेस की सियासत को समझने वाले जानते हैं कि गांधी परिवार या संगठनात्मक मुद्दों  पर बेबाक बात रखने वाले कैसे हाशिए पर चले जाते हैं। आजाद का भी कुछ लोगों ने हाशिए पर धकेलने का प्रयास किया, लेकिन वह हाशिए पर नहीं गए बल्कि कांग्रेस की सियासत का केंद्र बिंदु बन चुके हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की और प्रशंसा बटोरी, लेकिन उन्होंने अपने लिए पुनर्वास नहीं मांगा बल्कि यह कहा कि कश्मीर में जब काली बर्फ गिरेगी तभी मैं भाजपा का हिस्सा बनूंगा।

देर रात तक घंटों जागकर निपटाते थे कार्य (Gulam Nabi Azad as Chief Minister)

जम्‍मू कश्‍मीर के मुख्‍यमंत्री रहते हुए आजाद सचिवालय में अकसर सुबह से देर रात तक अपने कक्ष में बैठकर काम करते थे। जम्मू कश्मीर में विधानसभा में भी दिन में दो-दो बार सत्र लगता था, विकास परियोजनाओं पर दोहरी शिफ्ट में काम होता था। इसलिए आजाद को आम कश्मीरी नब नाइट कहने लगे, जो रात को भी काम करता है। आजाद अक्टूबर 2005 में जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बने थे। वह इस पद पर बैठने वाले जम्मू संभाग के एकमात्र राजनीतिक और नागरिक हैं। जम्मू संभाग में आतंकग्रस्त रहे जिला डोडा के एक अत्यंत पिछड़े और छोटे से गांव सोती भलेसा में सात मार्च 1949 को पैदा हुए गुलाम नबी आजाद ने शुरुआती पढ़ाई अपने गांव में की और ग्रेजुएशन जीजीएम साइंस कालेज जम्मू से की। कश्मीर विश्वविद्यालय से जूलोजी में एमएससी की डिग्री हासिल करने वाले आजाद ने 1973 में भलेसा कांग्रेस कमेटी के सचिव के रूप में अपनी सियासी पारी शुरू की, जो आज तक जारी है, लेकिन मैदान पूरा देश है।

तोडऩे में नहीं, जोडऩे में विश्वास रखते हैं:
आजाद के करीबियों में शामिल पूर्व मंत्री योगेश साहनी ने कहा कि कई लोग उन पर आरोप  लगाते हैं कि वह जोड़ तोड़ में माहिर हैं, लेकिन वह तोडऩे में नहीं जोडऩे में यकीन रखते हैं। अगर वह सियासत में सिद्धांतों को तरजीह न देते तो जुलाई 2008 में जम्मू कश्मीर में उनकी सरकार नहीं गिरती। वह नेकां और पीडीपी के कई विधायकों को तोड़ सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। पूर्व एमएलसी रविंद्र शर्मा ने कहा कि महबूबा मुफ्ती अकसर दावा करती हैं कि फर्जी मुठभेड़ पर पीडीपी ने रोक लगाई, लेकिन इतिहास गवाह है कि आजाद ने फर्जी मुठभेड़ों को बंद कराया और दोषियों को दंड दिलाया।


आठ नये जिले बनवाए :

पूर्व सूचना निदेशक केबी जंडियाल ने कहा कि मैंने खुद देखा है कि वह किसी परियोजना का नींव पत्थर रखने में नहीं बल्कि उसे पूरा कर जनता को समॢपत करने में यकीन रखते हैं। उन्होंने ही लोगों की मांग पर जम्मू कश्मीर में जिलों की संख्या 12 से 20 की थी। उन्होंने आठ नए जिले बनवाए। अगर आज आपको जम्मू कश्मीर में दो सुपर स्पेशलिटी अस्पताल और हर जिले में मेडिकल कालेज नजर आता है तो आजाद के प्रयासों का नतीजा है।

सियासत में पैराशूट नहीं चाहिए :
जम्मू के पूर्व मेयर नरेंद्र सिंह ने कहा कि गुलाम नबी आजाद ने साबित किया है कि सियासत में पैराशूट नहीं चाहिए, जमीन से जुड़ा सियासतदान ही आगे बढ़ सकता है। यहां बता दें कि आजाद ने जम्‍मू में प्रधानमंत्री की तारीफ करते हुए उन्‍हें जमीन से जुड़ा इंसान बताया था। इसी तारीफ को स्‍थानीय कांग्रेसी उनके विरोध का आधार बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

विरोध के बावजूद गांधी जयंती पर समारोह कराया : (Azad and Gandhi Jayanti function in 2007)
गांधीवादी विचारधारा में यकीन रखने वाले आजाद ने 2007 में कश्मीर में गांधी दर्शन पर स्कूलों में कई कार्यक्रम कराए। उन्होंने 2007 में गांधी जयंती के उपलक्ष्य में श्रीनगर में 50 हजार छात्रों का एक समारोह कराया। उन्होंने पाकिस्तान के मशहूर राक बैंड जुनून की भी डल झील किनारे बिना सुरक्षा खुले आसमां में प्रस्तुति कराई थी। अलगाववादी संगठन दुख्तरान-ए-मिल्लत और कट्टरंपथी सैयद अली शाह गिलानी ने गांधी जयंती के समारोह का विरोध करते हुए कई बार धमकियां भी दी। कश्मीर के तत्कालीन मुफ्ती ए आजम मुफ्ती बशीरुदीन ने कथित तौर पर उन्हेंं इस्लाम से खारिज करने का भी फरमान सुनाया था, लेकिन आजाद पीछे नहीं हटे।

अलगाववादियों की सियासत नाकाम बनाई : (Azad and separatists politics)
वरिष्ठ पत्रकार आसिफ कुरैशी ने कहा कि मैंने श्रीनगर में 2007 की गांधी जयंती और जुनून की प्रस्तुति देखी है। आजाद ने यहां अलगाववादियों के साथ सीधा पंगा लिया था। सुरक्षा एजेंसियां ने भी उन्हें मना किया था, लेकिन आजाद ने कहा था कि कश्मीर में गांधी समर्थक हैं, सब भाग लेंगे। उन्होंने अलगाववादियों की सियासत को गांधीवाद से नाकाम बनाया था।

ट्यूलिप गार्डन आजाद की देन : (Tulip Garden in Srinagar)
आजाद के साथ काम कर चुके सेवानिवृत्त पर्यटन निदेशक फारूक शाह ने कहा कि गुलाम नबी आजाद ने जम्मू कश्मीर के हर अछूते पर्यटनस्थल को पर्यटन मानचित्र पर लाया। एशिया का सबसे बड़ा इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्यूलिप गार्डन आजाद की ही देन है।

पांच बार बने राज्‍यसभा सदस्‍य एक बार जम्‍मू कश्‍मीर के मुख्‍यमंत्री:

  • आजाद अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के नौ बार महासचिव रहे।
  • नेशनल कैडेट कोर के सदस्य रहे आजाद 1975 में जम्मू कश्मीर युवा कांग्रेस और 1980 में अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बने।
  • वर्ष 1980-84 के दौरान वह वाशिम महाराष्ट्र के सांसद रहे।
  • 1982-83 में वह केंद्र सरकार में कानून, न्यााय व कंपनी मामलों के राज्यमंत्री और 1983-84 में वह सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री रहे।
  • 1984 को वह संसदीय मामले के केंद्रीय राज्यमंत्री बने। 1986 में करीब छह माह उन्होंने गृह राज्यमंत्री  के रूप में काम किया और अक्टूबर 1986 में  केंद्र सरकार में खाद्य आपूर्ति मंत्री रहे। 1985-89 में भी वह संसद सदस्य थे। 
  • अप्रैल 1990 को वह पहली बार राज्यसभा के सदस्य बने।
  • जून 1991 से मई 1996 तक नरसिम्हा के कार्यकाल में वह संसदीय मामले, नागरिक उड्डयन व पर्यटन मंत्री रहे।
  • नवंबर 1996 में वह दूसरी बार राज्यसभा के सदस्य बने। 1998 में वह ऊर्जा मामलों पर संसद की स्थायी समिति के सदस्य बने।
  • दिसंबर 1994 से फरवरी 2004 तक वह परिवहन, पर्यटन और संस्कृति मामलों की स्थायी समिति के सदस्य रहे।
  • नवंबर 2002 में वह तीसरी बार राज्यसभा के लिए चुने गए।
  • मई 2004 से अक्टूबर 2005 तक उन्होंने केंद्र सरकार में संसदीय मामले और शहरी विकास मंत्री के रुप में अपनी योग्यता का परिचय दिया।
  • वर्ष 2009 में वह राज्यसभा के लिए चौथी बार  चुने गए। मई 2009 में वह तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में  स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री रहे।
  • पांचवी बार वह 2015 राज्यसभा के सदस्य बने। 

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