J&K : डीआरडीओ के पूर्व डीजी सुदर्शन शर्मा बोले, लैंडर के संपर्क टूटने को असफलता के तौर पर नहीं देखा जाए
डीआरडीओ के पूर्व डायरेक्टर जनरल सुदर्शन शर्मा का कहना है कि चंद्रमा की सतह से दो किलोमीटर दूर चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम से संपर्क टूटने को असफलता के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए
जम्मू, अवधेश चौहान । डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन ( डीआरडीओ ) के पूर्व डायरेक्टर जनरल सुदर्शन शर्मा का कहना है कि चंद्रमा की सतह से दो किलोमीटर दूर चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम से संपर्क टूटने को असफलता के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। इसरो एक प्रयोगशाला है, जहां निरंतर रिसर्च होती है। अगर रिसर्च नहीं होगी तो हम आगे नहीं बढ़ सकते। चंद्रयान-2 ने कई पड़ाव पार किए।
चंद्रमा के पोलर रीजन में कोई भी मुल्क सेटेलाइट को नहीं उतार पाया है। इस जगह की भौगोलिक परिस्थिति क्या है, यहां का तापमान कैसा है, यह कोई नहीं जानता। इसरो चांद की दहलीज तक तो पहुंच गया। इस प्रयोग से कई सबक मिले हैं। चांद पर लैंङ्क्षडग के 38 प्रयास किए हैं, जिनमें 52 फीसद सफल रहे हैं। जिस रफ्तार से विक्रम की स्पीड को कम कर उसे चांद पर लैंड करना था वे वहां की परिस्थितियों पर निर्भर करती हैं।
तकनीकी क्षेत्र में 21वीं सदी भारत के नाम होगी
शर्मा ने कहा कि चंद्रमा की दहलीज तक पहुंचने वाले भारत ने बता दिया कि तकनीकी क्षेत्र में 21वीं सदी भारत के नाम होगी। भारत की स्वदेशी तकनीक में कोई सानी नहीं है। जागरण से विशेष बातचीत में डीआरडीओ के पूर्व डीजी ने बताया कि भारत ने इससे पहले 27 मार्च को मिशन शक्ति का स्पेस में सफल परीक्षण कर यह साबित कर दिया है कि स्पेस में किसी भी सैटेलाइट को उड़ा कर दुश्मनों के सूचना तंत्र को तहस नहस कर सकता है। पाकिस्तान की रक्षा क्षमता इतनी नहीं है कि वह कश्मीर को लेकर कोई परमाणु युद्ध का खतरा मोल ले। आने वाले वर्षो में अगर युद्ध हुआ तो वह तोपों और युद्धक विमानों से नहीं बल्कि स्पेस में लड़ा जाने वाला युद्ध होगा।
मिशन शक्ति ने मूविंग सैटेलाइट को सफलतापूर्वक मार गिरा दुनिया को यह बता दिया कि 10 किलोमीटर प्रति सेकेंड से दौड़ रहे सैटेलाइट को नीचे से ऊपर की ओर नहीं बल्कि ऊपर से यानी वर्टिकल एंगल से भी मार गिरा सकते हैं। इससे ध्वस्त सेटेलाइट्स के टुकड़े बजाय ऊपर के नीचे की ओर आए। भारत के पास इस नवीनतम तकनीक से स्पेस में दूसरे सेटेलाइटों को नुकसान नहीं पहुंचेगा और यह दुश्मन के उसी लक्ष्य को भेदेगा जिस पर निशाना साधा होगा। पाकिस्तान की रक्षा क्षमता इतनी नहीं है कि वह कश्मीर को लेकर कोई परमाणु युद्ध का खतरा मोल ले।