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पाक पर बरसे फारूक, कहा- हम किसी की कठपुतली नहीं, भारत में आतंकियों को भेजना बंद करे पाक

पाक विदेशी मंत्री के गुपकार घोषणापत्र को समर्थन देने के बयान पर फारूक बोले -हम जम्मू-कश्मीर के लोगों के प्रति जवाबदेह हैं भारत में आतंकियों को भेजना बंद करे पाक।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 31 Aug 2020 08:44 AM (IST)Updated: Mon, 31 Aug 2020 08:44 AM (IST)
पाक पर बरसे फारूक, कहा- हम किसी की कठपुतली नहीं, भारत में आतंकियों को भेजना बंद करे पाक
पाक पर बरसे फारूक, कहा- हम किसी की कठपुतली नहीं, भारत में आतंकियों को भेजना बंद करे पाक

जम्मू, राज्य ब्यूरो। नेशनल कांफ्रेंस के प्रधान और श्रीनगर के सांसद डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि हम किसी की कठपुतली नहीं है। जम्मू-कश्मीर की मुख्यधारा वाली राजनीतिक पार्टियों की पाकिस्तान ने हमेशा आलोचना की है, लेकिन अब अचानक हमें पसंद करने लगा है।

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हाल ही में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने अनुच्छेद-370 समाप्त करने के केंद्र के फैसले के खिलाफ एकजुट होने वाले छह राजनीतिक दलों के गुपकार घोषणापत्र को समर्थन दिया था। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए फारूक ने कहा कि मैं यह साफ कर देना चाहता हूं कि हम किसी की कठपुतली नहीं है। न ही हम दिल्ली की और न ही सीमा पार किसी और की कठपुतली है। हम जम्मू-कश्मीर के लोगों के प्रति जवाबदेह हैं और उनके लिए ही काम कर रहे हैं। सीमा पार से आतंकवाद पर फारूक ने कहा कि मैं पाकिस्तान से कहना चाहता हूं कि वे आतंकवादियों को कश्मीर में भेजना बंद कर दे। हम जम्मू-कश्मीर में खून-खराबे का अंत चाहते हैं।

जम्मू-कश्मीर की सभी राजनीतिक पार्टियां अपने अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण तरीके से संघर्ष करने के लिए वचनबद्ध हैं, जिसमें पांच अगस्त 2019 को हमसे गैर संवैधानिक तरीके से जो छीना गया, वह भी शामिल है। उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत शुरू करने का आह्वान करते हुए कहा कि यह हर एक के लिए अच्छा रहेगा। संघर्ष विराम का उल्लंघन होने पर नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ के लोग मारे जा रहे हैं। यह रुकना चाहिए।

बता दें कि छह राजनीतिक पार्टियों ने 22 अगस्त को दिए बयान में अनुच्छेद-370 को बहाल करने की मांग थी। नेताओं के संयुक्त बयान को गुपकार घोषणा पत्र सेकेंड कहा जाता है। श्रीनगर में गुपकार मार्ग पर डॉ. फारूक अब्दुल्ला के घर पर बैठक के बाद बयान जारी किया गया था। इसमें कहा था कि जम्मू कश्मीर में संवैधानिक बदलाव करते समय केंद्र को लोगों को विश्वास में लिया जाना चाहिए था।


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