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आरएसएस की थी अंग्रेजों से मिलीभगत

राज्य ब्यूरो, जम्मू : गुलाम कश्मीर पर विवादास्पद बयान देने के बाद अब नेशनल कांफ्रेंस के प्रधान और

By JagranEdited By: Published: Mon, 20 Nov 2017 03:13 AM (IST)Updated: Mon, 20 Nov 2017 03:13 AM (IST)
आरएसएस की थी अंग्रेजों से मिलीभगत
आरएसएस की थी अंग्रेजों से मिलीभगत

राज्य ब्यूरो, जम्मू : गुलाम कश्मीर पर विवादास्पद बयान देने के बाद अब नेशनल कांफ्रेंस के प्रधान और लोकसभा सांसद फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि स्वतंत्रता संग्राम के समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की अंग्रेजों से मिलीभगत थी। आरएसएस नहीं चाहती थी कि देश आजाद हो।

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पार्टी मुख्यालय शेर-ए-कश्मीर भवन में रविवार को फारूक ने कहा कि आरएसएस ने आपातकाल में इंदिरा गांधी का समर्थन किया था। अब आरएसएस धर्म के आधार पर लोगों को बांट रहा है। धर्म के आधार पर विभाजन करने की संघ की कोशिश में भाजपा भी पूरा सहयोग दे रही है।

भाजपा के राष्ट्रवाद पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि जब देश के दिग्गज अंग्रेजों के कहर को झेल रहे थे तो उस समय जनसंघ अंग्रेजों के साथ मिल गई थी। संघ ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने वालों के खिलाफ अंग्रेजों के साथ मिलकर साजिश की थी। अब भाजपा राष्ट्रवाद के खोखले दावे कर रही है।

वहीं, आपातकाल के दिनों में संघ के इंदिरा गांधी को समर्थन देने का आरोप लगाते हुए फारूक ने कहा कि राजेश राव ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि संघ प्रमुख ने इंदिरा गांधी से मिलने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन वह नहीं मानीं।

युवाओं को देश के इतिहास के बारे में सही जानकारी रखने की सलाह देते हुए फारूक ने कहा कि उन्हें इतिहास की गलत जानकारी देकर गुमराह करने की कोशिश की जा रही है। देश में जम्मू-कश्मीर के विलय का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि राज्य के लोग वही मांग रहे हैं, जिन्हें देने का पंडित जवाहर लाल नेहरू ने वादा किया था। फारूक ने कहा कि नेशनल कांफ्रेंस ऑटोनामी को लेकर सकारात्मक बहस करने के लिए तैयार है।

फारूक ने कहा कि हमने अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में एनडीए सरकार के प्रतिनिधि अरुण जेटली से स्पष्ट किया था कि यहां तो वह हमें मनाए कि ऑटोनामी रिपोर्ट गलत है और देश के खिलाफ है या फिर मान लें कि यह सही है।

फारूक ने कहा कि देश के लोग महाराजा के खिलाफ नहीं सिस्टम के खिलाफ थे। यही कारण था कि उन्होंने धर्म के आधार पर बने पाकिस्तान को अस्वीकार कर धर्मनिरपेक्ष भारत से मिलना स्वीकार किया था। बांग्लादेश बनने के साथ ही इस फैसले का महत्व सामने आ गया था। इस मौके पर नेशनल कांफ्रेंस के प्रांतीय प्रधान देवेन्द्र सिंह राणा व पार्टी के अन्य कई वरिष्ठ नेताओं ने भी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया।


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